भारत रंग महोत्सव के नाटकों का दिल्ली के दर्शकों को बेहद इन्तजार रहता है. इसके पहले दो दिनों के नाटकों पर जानी-मानी रंग समीक्षक, कवयित्री मंजरी श्रीवास्तव की यह विस्तृत टिप्पणी उन लोगों के लिए जो नाटक देख नहीं पाए. वे इसे पढ़ते हुए उन नाटकों को फील कर सकते हैं- मॉडरेटर
===========================
उन्नीसवें भारत रंग महोत्सव का आगाज़ हुआ भवभूति के ‘उत्तर रामचरितम’ से जो राम की दो तरह की मनोस्थितियों को व्यक्त करते हुए राम का चित्रण एक पारिवारिक राम और एक राजा राम के बीच लटके हुए व्यक्ति की तरह करता है. संस्कृत नाटकों को आज तक जीवंत रखने वाले मशहूर नाट्य निर्देशक स्वर्गीय कावलम नारायण पणिक्कर द्वारा निर्देशित इस नाटक ने शास्त्रीयता और परंपरा को तो बचाए रखा है लेकिन उनका न होना, उनके निर्देशन की कमी मंच पर दिख जाती है. नाटक में रिहर्सल की कमी साफ़ नज़र आ रही थी. वरिष्ठ लेखक उदयन वाजपेयी द्वारा किया गया हिंदी रूपांतरण निस्संदेह उम्दा है पर भाषाई स्तर पर इस मायने में इसके संवाद दिल में नहीं उतरते कि इन कलाकारों की हिंदी मलयालम आच्छादित है. एक दृश्य से दूसरे दृश्य के बीच शिफ्ट होने के बीच बड़ा लम्बा-लम्बा सा शून्य है कहीं कहीं. भाषाई और व्याकरणिक पक्ष पर तो ध्यान नहीं ही दिया गया था और संगीत का भी वह स्तर सोपानम की टीम बरक़रार नहीं रख पाई जिस ऊंचाई को पणिक्कर जी छू पाते थे. एक दृश्य जहाँ राम अश्वमेध का घोड़ा छोड़ते हैं और लव उसे पकड़ लेता है जिस वज़ह से लक्ष्मण और लव में युद्ध होता है वहां पार्श्व से जो संगीत चल रहा था वह युद्ध का कम और उल्लास का ज़्यादा लग रहा था और बीट्स भी प्रॉपर नहीं थी. नर्तकों के स्टेप्स भी एक-दूसरे से मैच नहीं कर रहे थे, कोरियोग्राफी पर भी ठीक से काम नहीं हुआ था. नृत्य और संगीत संरचना बिखर सी गई थी. हाँ, अनिल पझावीडू का गायन कमाल का था और वेशभूषा पर साजी, कोमलन नायर, जी मुरलीचंद्रन सी ने बहुत उम्दा काम किया गया था. राम, सीता, लक्ष्मण, वनदेवी इस सबके वस्त्र-आभूषणों में थीम और पैटर्न और रंग-संयोजन का खास ख्याल रखा गया था. लेकिन कुल मिलाकर यह एक अंडर रिहर्सड नाटक ही था.
महोत्सव का दूसरा दिन महाकवि भास द्वारा विरचित और स्वर्गीय पणिक्कर जी द्वारा ही निर्देशित नाटक ‘मध्यमव्यायोग’ से हुआ. नाटक का केंद्रीय तत्व ‘मध्यम’ (बीच वाला) है जिसका तात्पर्य मध्यम पांडव भीम से भी है और एक ब्राह्मण के तीन पुत्रों में से बीच वाले से भी. भीम की राक्षसी पत्नी हिडिम्बा से उत्पन्न घटोत्कच एक वृद्ध ब्राह्मण, उसकी पत्नी और तीन पुत्रों का पीछा कर रहा है. उसे हिडिम्बा ने भेजा है कि वह उसके नाश्ते के लिए एक मनुष्य लेकर आये. हताश पिता अपने बड़े पुत्र से लिपट जाता है और माँ अपने छोटे पुत्र से. इस तरह बीच वाले को घटोत्कच के सामने पेश कर दिया जाता है. मध्यम पास ही एक तालाब पर पानी पीने जाता है. जब वह बहुत देर तक नहीं लौटता तो घटोत्कच उसे ‘मध्यम, जल्दी आओ’ कहकर पुकारता है. अपना नाम सुनकर भीम, जो वहीँ आसपास होता है, वहां आ जाता है. भीम यह जानने के बाद कि घटोत्कच उसी का पुत्र है ब्राह्मण के बेटे के स्थान पर अपने आप को प्रस्तुत करता है. दोनों हिडिम्बा के पास जाते हैं. हिडिम्बा अपने पति भीम और पुत्र घटोत्कच को देखकर ख़ुशी से फूली नहीं समाती. घटोत्कच भीम के चरणों में गिर जाता है और इस तरह परिवार का पुनर्मिलन होता है. बतौर निर्देशक नाटक के ‘मध्यमत्व’ को भीम के आन्तरिक औदार्य, साहस और पीड़ा को व्यक्त करने के लिए प्रभावशाली ढंग से प्रयोग किया गया है. लेकिन इसी के साथ यह ब्राह्मण परिवार के दूसरे पुत्र पर भी लागू होता है. भास का हास्यबोध यहाँ ‘भास का हास’ मुहावरे को बखूबी प्रस्तुत करता है. नाटक की संरचना इस तरह से की गई है कि सूत्रधार के रूप में हिडिम्बा की भूमिका पति-पत्नी के लम्बे बिछोह के बाद हुए आकस्मिक मिलन के क्षणों में अंत में ही होती है. भास का हास्य उस समय अपने शिखर पर होता है जब भीम अपने पुत्र को पहचान लेता है लेकिन इसे ज़ाहिर नहीं होने देता. उत्तर राम चरितम की तरह यह नाटक भी पूर्णतः एक संगीतमय प्रस्तुति है और पणिक्कर जी के बाद भी इसके संगीत को उसी तरह बचाकर और संजोकर रखा गया है. इसकी प्रस्तुति उत्तर राम चरितम से कई प्रतिशत बेहतर थी. लेकिन ये दोनों प्रस्तुतियां हमारे सामने यह सवाल खड़ा करती हैं कि क्या पणिक्कर जी की नाट्य-शैली को उसी रूप में सोपानम बचाकर रख पाएगा ?
इसी दिन और भारंगम के इन दो दिनों में जिन दो शानदार प्रस्तुतियों का ज़िक्र किया जा सकता है वह है ‘पेबेट’ और ‘महाभारत’. पेबेट में मशहूर मणिपुरी वरिष्ठ अभिनेत्री और प्रसिद्द मणिपुरी निर्देशक स्वर्गीय कन्हाईलाल जी की जीवन संगिनी सावित्री हेस्नाम जी को देखना खुद पर फ़ख्र करने जैसा है और रश्क करने जैसा है कि हमारी आने वाली पीढियां याद रखेंगी कि हमने माँ सावित्री को देखा है, गुरु माँ को देखा है. पेबेट की माँ की भूमिका निभा रही माँ सावित्री मंच पर कोई वृद्धा या वरिष्ठ नायिका नहीं लगती, बल्कि चिड़िया-सी फुदकती सोलह बरस की किशोरी या युवती लगती हैं. मंच पर कोई सेट नहीं, कोई ताम-झाम नहीं, कोई साज-सज्जा नहीं सिर्फ अपनी आवाज़, अपनी सुरीले कंठ से निकलती विभिन्न प्रकार की ध्वनियों, अपने अभिनय और भाव-भंगिमाओं से वह ऐसा जादू उत्पन्न करती हैं कि मंच पर कोई और कलाकार दर्शकों को दीखता ही नहीं. दर्शक ठगे-से, मंत्रमुग्ध से सिर्फ़ उन्हीं को निहारते रह जाते हैं. उनके अभिनय को व्याख्यायित करने के लिए मेरे पास क्या दुनिया के किसी भी व्यक्ति के पास शब्द कम पड़ जाएँ. एक और बात जो उनके कुशल अभिनेत्री होने का परिचायक है कि अपने रंग सहयात्री और जीवनसाथी कन्हाईलाल जी को खोने की वेदना से भरी होने के बावजूद उन्होंने अपने अभिनय पर अपनी वेदना, अपनी पीड़ा को भारी नहीं पड़ने दिया है. मंच पर उनका अभिनय ही उनकी वेदना पर भारी पड़ता है जबकि कल दिन में ही हुए अलायड इवेंट के ‘लिविंग लीजेंड’ कार्यक्रम के दौरान एक घंटे तो उन्होंने शोधार्थियों, रंगमंच के अध्येताओं और दर्शकों से अपनी भावनाओं पर काबू करते हुए बड़ी ही कुशलता से बातचीत की, लोगों से अपनी रंग और अभिनय यात्रा के महत्वपूर्ण अनुभवों को साझा किया लेकिन अंत तक आते आते उनकी आँखें कन्हाईलाल जी को याद करते हुए बरबस छलक पड़ी थीं.
पेबेट वह पहला नाटक है जिसमें कन्हाईलाल ने रंगमंच से सम्बंधित अपनी विचारधारा और आदर्शों को शिल्प और कथ्य के माध्यम से प्रकट किया. यह रंगमंच की एक वैकल्पिक शैली के माध्यम से बंधी-बंधाई रंग-परंपरा में हस्तक्षेप था जो जनता से जुड़ने में सफल रहा.
पेबेट एक ‘फुंगा वारि’ है जो मणिपुर की एक परंपरागत कथा-शैली है जिसमें बड़े-बूढ़े आग के पास बैठकर बच्चों को कहानी सुनाते हैं. कन्हाईलाल ने इस कहानी को आज की राजनीतिक और सांस्कृतिक स्थिति को रेखांकित करने और परिचित के व्यतिक्रमण से रंगमंच में चेतना प्रवाहित करने के लिए प्रयोग किया है.
पेबेट एक छोटी चिड़िया है जिसे बहुत समय से देखा नहीं गया है. शायद उसकी प्रजाति ख़त्म हो गई है. अपने बच्चे की हिफाज़त करते हुए माँ पेबेट शिकारी बिल्ली की चापलूसी करके उसका ध्यान बंटाने की कोशिश करती है. वह तब तक उसके मन के मुताबिक़ बातें करती रहती है जबतक कि उसके बच्चे अपनी रक्षा करने में सक्षम न हो जाएँ. जैसे ही वे बड़े होते हैं, चिड़िया बिल्ली का विरोध करती है और बिल्ली उसके सबसे छोटे चूज़े को पकड़ लेती है लेकिन चिड़िया चालाकी से बिल्ली से अपने बच्चे को छुडा लेती है. सभी पेबेट चिड़ियाँ आख़िरकार संगठित होती है और बिल्ली उनके जीवन से हमेशा के लिए चली जाती है.
इस पूरे नाटक में पेबेट चिड़ियाओं की माँ बनी सावित्री हेस्नाम, मक्कार साधु बने अभिनेता एच. तोम्बा और पेबेट के बच्चे बने अभिनेताओं जी. गोकेन, पी. त्योसन, धनञ्जय राभा, एस. बेम्बेम और एच. लोहीना सबने शानदार अभिनय किया है. माँ सावित्री ने तो कमाल का अभिनय किया है. वे सचमुच चिड़िया ही लग रही हैं. उनकी वे मुद्राएँ अद्भुत हैं जब वे अपने सबसे छोटे बच्चे को उड़ना और दाना चुगना सिखा रही हैं, जब वे बिल्ली से अपने बच्चों की हिफाज़त कर रही हैं अपने पंख फैलाकर. अपने हाथ से वे पंखों का जो दृश्य उत्पन्न करती हैं वह क़ाबिल-ए-तारीफ़ है. अपने बच्चों को लेकर, उनकी हिफाज़त को लेकर उनके चेहरे पर और उनकी आँखों में जो चिंता के भाव हैं वे लाजवाब हैं. ऐसा महसूस ही नहीं होता कि हम मनुष्यों को अभिनय करते देख रहे हैं. महसूस होता है कि मंच पर हम चिड़ियों को देख रहे हैं, किसी मक्कार बिल्ली को देख रहे हैं.
भारंगम के ये तीनों नाटक ‘उत्तर रामचरित’, ‘मध्यमव्यायोग’ और ‘पेबेट’ स्वर्गीय कावलम नारायण पणिक्कर और एच. कन्हाईलाल जी की स्मृति को समर्पित थे. इनके माध्यम से पूरे रंग जगत ने इन्हें श्रद्धांजलि दी है.
दूसरे दिन की एक और महत्वपूर्ण प्रस्तुति थी युवा निर्देशक अनुरूपा रॉय की कठपुतली प्रस्तुति ‘महाभारत’. अनुरूपा बेहद प्रतिभाशाली कलाकार हैं और अभी हाल ही में हुए जश्ने बचपन में अपनी कठपुतली प्रस्तुति डायनासोर से धूम मचा चुकी हैं. सब जानते हैं महाभारत की कहानी पर अनुरूपा का कमाल यह है कि उन्होंने इसे बिलकुल समकालीन बनाकर दर्शकों के समक्ष पेश किया है. कठपुतलियों, मुखौटों, छाया-पुतलियों और अन्य सामग्रियों के साथ यह प्रस्तुति महाभारत को एक गतिशील वृत्तांत के रूप में देखती है जो तोगालु गोम्बेयट्टा के सिल्लाकेयाटा महाभारत के हजारों वर्षों के गायन के दौरान विकसित हुआ और समकालीन पुतुलकारों की नई खोजों में भी प्रासंगिक है. आज के स्वीकृत संघर्ष कालित युग में इस कहानी की प्रासंगिकता तो निःसंदेह है ही, इस तरह इसके पात्र भी हर संघर्ष में प्रतीक की हैसियत पा चुके हैं फिर चाहे वह संघर्ष विश्व की राजनीति में हो, समुदाय में हो या फिर परिवार के स्तर पर, और इसका वृत्तांत राजनीतिक, सांस्थानिक और सामाजिक स्थितियों के लिए एक बड़ा रूपक बन गया है लेकिन अनुरूप इस नाटक के माध्यम से केंद्रीय प्रश्न यह उठाती हैं कि क्या कुछ ऐसा हो सकता था कि महाभारत का युद्ध न हुआ होता ? वह कौन सा चुनाव था जो कोई पात्र किसी और ढंग से भी कर सकता था ? वह कौन सी भूमिका थी जिसे किसी और द्वारा किसी और ढंग से निभाया जा सकता था ? और हम खुद अपने किस चुनाव और किस भूमिका को बदल सकते हैं ? किन स्थापित धारणाओं और मान्यताओं पर प्रश्न करके हम भविष्य में ऐसे किसी युद्ध से बचे रह सकते हैं और क्या हम यहाँ से यह मानते हुए एक नई शुरुआत कर सकते हैं कि इस तरह के युद्ध में कोई नहीं बचता, इसलिए हमें इससे बचना चाहिए, कोशिश करना चाहिए कि इसकी पुनरावृत्ति न हो.
इसी दिन की आख़िरी प्रस्तुति पहली विदेशी प्रस्तुति थी ‘अ स्ट्रेंजर गेस्ट’ जिसका निर्देशन किया था इज़रायल की युवा निर्देशक वेरा बर्ज़ाक श्नाइडर ने. यह नाटक मॉरिस मैतरलिंक के नाटक ‘दि इंट्रयुडर’ से प्रेरित एक दृश्यात्मक प्रस्तुति है. यह कहानी है एक ऐसे परिवार के घर की एक शाम की जिसमें एक माँ बीमार पड़ी है और उसकी दो बेटियाँ अपने पिता के साथ चिंतामग्न हैं. डॉक्टर यह कह कर जाता है कि उसकी स्थिति अब बेहतर हो रही है फिर भी घर का वातावरण कुछ और ही संकेत करता दिखाई देता है, पूरे घर में मृत्यु के संकेत दृष्टिगोचर हो रहे हैं, घर मृत्युगंध से भर जाता है, पिता और दोनों पुत्रियों को मृत्यु की पदचाप सुनाई देती है और वहां उस माँ के और उस पूरे परिवार के भाग्य से सम्बंधित एक रहस्य का भाव भी मौजूद है. परिवार के सदस्य मौसी के आने की प्रतीक्षा कर रहे हैं. इस विशेष शाम को कुछ विचित्र और असामान्य-सा घट रहा है. हर चरित्र अलग-अलग तरीके से इसका अनुभव लेता है और शाम के दौरान एक भिन्न बिंदु पर कोई व्यक्ति या कोई चीज़ घर की ओर आ रही है और इसके पास आने का एहसास और उसकी अदृश्य उपस्थिति उनलोगों को उत्तरोत्तर बेचैनी का आभास करा रही है. दरअसल यह नाटक एक दुखप्रद सामान्य स्थिति और हमसे अभिन्नता से जुड़े व्यक्ति की बीमारी के बारे में है. नाटक परिवार के सदस्यों के भीतरी संसार में झांकता है. भावनात्मक स्थिति और अंतर्द्वंद्व जिनसे वे गुज़र रहे हैं और साथ ही साथ उनके मध्य के सम्बन्ध खोने के उस भय से हर कोई किस तरह जूझता है…कौन हठपूर्वक आशाओं से चिपका पड़ा है और कौन अधिक यथार्थवादी है, कौन-सी स्मृतियाँ उनके मस्तिष्कों में रही हैं. मुद्राओं, गतियों, प्रकाश, ध्वनि और साथ ही साथ पाठ के माध्यम से निर्देशक ने इन भावनाओं और तीन अलग-अलग व्यक्तियों के माध्यमों से तीन प्रकार के मनोविश्लेषणों को समझने और व्याख्यायित करने का एक ईमानदार और प्रामाणिक प्रयास अभिनेताओं और निर्देशक ने किया है. इस नाटक का सेट से लेकर साइलेंस तक शानदार था. एक ऐसी चुप्पी तारी थी प्रस्तुति के दौरान कि नाटक ख़त्म होने तक पूरी दर्शक दीर्घा में मौत की सी मनहूसियत और मातमी सन्नाटा छा गया था, यहाँ तक कि दर्शक स्तब्ध थे और मृत्युगंध और उस अदृश्य उपस्थिति को महसूस करते हुए मृत्युबोध से भर गए थे और यह एहसास इतना हावी था कि नाटक ख़त्म होने पर दर्शक ताली बजाना तक भूल गए थे. मंच पर अमिचई पार्दो, शाकेद सबग और हदस वीसमैन ने शानदार अभिनय किया. अलेक्सांद्र एल्हारर के प्रकाश-परिकल्पना और अलेक्सांद्र नोहाम के प्रकाश संचालन ने इस सायकोलोजिकल हॉरर को सस्पेंस से भर दिया था. और ध्वनि अभिकल्पना देखिये ज़रा कि रसोई के नल से पानी की एक बूँद के निरंतर टपकने से इस सस्पेंस में एक अजीब सा हॉरर भर दिया था ध्वनि अभिकल्पक ओसिफ़ उन्गेर ने.
This paragraph will assist the internet users for setting up new weblog
or even a weblog from start to end.
You need to take part in a contest for one of the highest quality sites online.
I most certainly will highly recommend this blog!
Hi, I do think this is an excellent blog. I stumbledupon it 😉 I am going to come back once again since I
book-marked it. Money and freedom is the best way
to change, may you be rich and continue to guide others.
Quality posts is the secret to interest the visitors to visit the web
page, that’s what this site is providing.
I needed to thank you for this good read!! I definitely enjoyed every bit of
it. I have got you bookmarked to check out new stuff you post…
Hi there, You’ve done a fantastic job. I will certainly digg it
and personally suggest to my friends. I’m confident they’ll be benefited from this site.
I’m amazed, I have to admit. Rarely do I encounter a blog that’s equally educative and engaging, and let me tell you, you’ve hit
the nail on the head. The issue is something too few people are speaking intelligently about.
I’m very happy that I came across this in my hunt for something relating to this.
Hello to all, the contents present at this web site are
actually amazing for people experience, well, keep up the good work fellows.
I was able to find good info from your content.
Wow that was unusual. I just wrote an incredibly long comment but after
I clicked submit my comment didn’t show up. Grrrr…
well I’m not writing all that over again. Anyway, just wanted to say wonderful blog!
We’re a bunch of volunteers and starting a new scheme in our community.
Your website provided us with helpful info to work on. You’ve done an impressive task and our entire neighborhood might be thankful to you.
Hello Dear, are you in fact visiting this website regularly,
if so then you will absolutely take fastidious knowledge.
With havin so much content do you ever run into any problems
of plagorism or copyright violation? My blog has a lot of unique content I’ve either authored
myself or outsourced but it appears a lot of it is
popping it up all over the internet without my permission. Do
you know any ways to help reduce content from being ripped off?
I’d really appreciate it.
Kudos, Helpful stuff!
I always emailed this website post page to
all my contacts, as if like to read it then my contacts will too.
Its such as you read my thoughts! You seem to understand so much approximately
this, such as you wrote the e-book in it or something.
I feel that you just could do with a few % to power the message home a
bit, however other than that, that is excellent blog.
A fantastic read. I will definitely be back.
Tremendous things here. I’m very satisfied to look your
post. Thanks a lot and I am taking a look forward to
touch you. Will you kindly drop me a mail?
Hello there! This is my first visit to your blog! We are a team of volunteers and starting a new initiative in a community in the same niche.
Your blog provided us beneficial information to work on. You have done a marvellous job!
Awesome post.
Wow, this paragraph is pleasant, my younger sister is analyzing these things, so I am going to inform
her.
Do you have a spam issue on this website; I also
am a blogger, and I was wondering your situation; many of us have created some
nice practices and we are looking to trade techniques with
other folks, be sure to shoot me an email if interested.
What you posted made a lot of sense. But, think about this,
suppose you typed a catchier title? I am not saying your information is not good, however what
if you added a title that makes people want more? I mean उन्नीसवां भारत रंग महोत्सव २०१७
: प्रथम चरण के नाटक – जानकी पुल – A Bridge of World's
Literature. is a little vanilla. You ought to look at Yahoo’s front page and note how they create news headlines to
grab viewers to click. You might try adding a video or a pic or two to get readers interested about
everything’ve written. In my opinion, it might make your posts a little livelier.
Post writing is also a fun, if you know after that you can write otherwise it is
complicated to write.
Hello! I realize this is sort of off-topic but I had to ask.
Does building a well-established blog such as yours take
a massive amount work? I am completely new to operating
a blog but I do write in my diary daily. I’d like to start a blog so I can easily share my
experience and feelings online. Please let me know if you
have any recommendations or tips for brand new aspiring bloggers.
Appreciate it!
If you wish for to obtain much from this post then you have to apply such methods to your won web site.
You are so interesting! I do not suppose I’ve truly read through a single thing like that before.
So good to find another person with a few original thoughts on this
topic. Seriously.. many thanks for starting this up. This site is something that is required on the web, someone with some
originality!
you’re in reality a excellent webmaster. The website loading velocity is incredible.
It seems that you’re doing any unique trick. In addition, The contents are masterpiece.
you’ve done a wonderful task in this topic!
Greetings! Very helpful advice in this particular article!
It is the little changes that make the greatest changes. Thanks a lot for sharing!
I’m excited to discover this page. I want to to
thank you for ones time for this wonderful read!!
I definitely enjoyed every little bit of it and I
have you bookmarked to check out new information in your website.
Great beat ! I wish to apprentice while you amend your website,
how can i subscribe for a blog web site? The account aided me a
acceptable deal. I had been tiny bit acquainted of this your broadcast provided bright clear idea
Nice weblog here! Also your website so much up fast!
What host are you the usage of? Can I am getting your affiliate hyperlink on your host?
I desire my website loaded up as fast as yours lol
Thanks for finally writing about >उन्नीसवां भारत
रंग महोत्सव २०१७ : प्रथम चरण
के नाटक – जानकी पुल – A Bridge of World’s Literature.
<Loved it!