कल किन्डल पर ऋषि कपूर की आत्मकथा ‘खुल्लमखुल्ला’ 39 रुपये में मिल गई. पढना शुरू किया तो पढता ही चला गया. हिंदी सिनेमा के सबसे बड़े सबसे सफल घराने कपूर परिवार के पहले कपूर की आत्मकथा के किस्सों से पीछा छुड़ाना मुश्किल था. सबसे पहले अफ़सोस इस बात का हुआ कि मीडिया में किताब के आने के बाद जिन कारणों से चर्चा हुई किताब में उससे अधिक बहुत कुछ है. यह कहा गया कि ऋषि कपूर ने अवार्ड खरीदने के लिए पैसे दिए थे, या यह कि नर्गिस और वैजयंतीमाला के साथ राज कपूर के अफेयर थे. वैजयंतीमाला के साथ जब राज कपूर इश्क लड़ा रहे थे तो बात इतनी बढ़ गई कि उनकी पत्नी कृष्णा कपूर अपने बच्चों के साथ घर छोड़कर चली गई थीं. ये सब ऐसी बातें नहीं हैं जो पत्र पत्रिकाओं के गॉसिप कॉलम्स में न छपती रही हों. हाँ, यह जरूर है कि पहली बार कपूर परिवार के किसी ने इस बात को खुद लिखा है.
लेकिन इस किताब में और भी बहुत कुछ है. सबसे अधिक तो यह कि यह उस तरह से आत्मकथा नहीं है, बल्कि ऋषि कपूर ने किताब में खुद से अधिक कपूर परिवार के दूसरे लोगों पर लिखा है. सबसे अधिक राज कपूर जो न सिर्फ उनके पिता थे बल्कि आजादी के बाद के दौर के सबसे सफल फिल्म अभिनेताओं और निर्देशकों में एक थे. किताब को पढ़ते हुए लगता है कि ऋषि कपूर उनको अपना रोल मॉडल मानते थे. किताब में ऋषि कपूर ने अपने चाचा शम्मी कपूर से जुड़े किस्से भी खूब शेयर किये हैं. एक किस्सा है शम्मी कपूर को दोनों हाथ में बियर की बोतल पकड़कर पैर से जीप चलाने का शौक था. इसी तरह उनके स्टार लाइफ से जुड़े एक से एक किस्से किताब में हैं. ऋषि कपूर ने लिखा है उनको अपने पिता को देखकर कभी नहीं लगता था कि वे स्टार थे लेकिन शम्मी कपूर स्टार की तरह लगते थे, रहते थे.
किताब को पढ़ते हुए लगता है कि कपूर परिवार में कितनी अधिक पारिवारिकता है. अपने भाइयों, बहनों पर भी ऋषि कपूर ने खूब लिखा है. सबसे अधिक रणधीर कपूर पर और सबसे कम अपने छोटे भाई राजीव कपूर पर. इसी तरह अपने चाचा शशि कपूर पर भी ऋषि कपूर ने बहुत कम लिखा है.
किताब से पता चलता है कि 1982 में जब ऋषि कपूर की शादी हुई थी तब संगीत में गाने के लिए पाकिस्तान से नुसरत फ़तेह अली खान को बुलाया गया था. एक मजेदार किस्सा था कि उस शादी में नर्गिस भी आई थी, जिन्होंने 1956 के बाद कभी भी आर के स्टूडियो में कदम नहीं रखा था. जब वह अपने पति सुनील दत्त के साथ आई थी तो थोड़ी सकुचाई हुई थीं, लेकिन कृष्णा कपूर उनके पास गई और बोली कि पिछली बातों को भूल जाओ, अब हम दोस्त हैं और इस तरह से उन्होंने नर्गिस को सहज बनाया.
किताब में सबसे अधिक अफसोस ऋषि कपूर ने इस बात के ऊपर जताया है कि वे रोमांटिक हीरो थे, सफल थे, लेकिन पता नहीं क्यों उनको गुलजार के साथ काम करने का मौका नहीं मिला. इसी तरह ऋषिकेश मुखर्जी, बासु चटर्जी, शक्ति सामंत के साथ काम न कर पाने का अफसोस भी किताब में दिखाई देता है.
किताब में दिलीप कुमार और राज कपूर कि दोस्ती को लेकर भी ऋषि कपूर ने खूब लिखा है. एक बड़ा मार्मिक प्रसंग दिलीप कुमार के 90 वें जन्मदिन के आयोजन से जुड़ा हुआ है. तब तक दिलीप कुमार की स्मृति जा चुकी थी. जब उन्होंने कपूर परिवार के सभी लोगों को देखा और राज कपूर को नहीं तो दिलीप कुमार यह कहकर रोने लगे कि राज नहीं आया, राज नहीं आया…
बहुत दिनों में किसी फिल्म अभिनेता की इतनी बेबाक आत्मकथा पढने को मिली जिसमें बहुत सहज रूप से ऋषि कपूर ने सब कुछ लिखा है, कुछ भी छुपाने की मंशा नहीं है. यहाँ तक कि इस बात को भी उन्होंने बहुत फख्र से लिखा है कि उनके दादा पृथ्वीराज कपूर के बाद कपूर परिवार में कोई कॉलेज में पास नहीं हुआ, अधिकतर तो कॉलेज गए भी नहीं. जिनमें खुद ऋषि कपूर भी हैं.
-प्रभात रंजन
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