तरकश प्रदीप की गजलों में एक अलग तरह की ताजगी है. नई नस्ल के एक अच्छे ग़ज़लगो की कुछ नई-पुरानी ग़ज़लें एक साथ पढ़ते हैं- मॉडरेटर
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1.
हम अस्ल बात समझने का फ़न भी रखते हैं
मगर मज़ा है बहकने में सो बहकते हैं
है वस्ल-वुस्ल का ये काम यूँ तो मुश्किल ही
पर आप चाहें तो आसान कर भी सकते हैं
हमारे जी में लगी आग का ये सदक़ा है
हमारी आँख के आँसू जो हैं दहकते हैं
तसव्वुरात ए हविस के सियह मनाज़िर ये
बदन पे टूट के पड़ते हैं तो चमकते हैं
न जाने कौन हमें घर से खींच लाता है
न जाने किस के तआ’क़ुब में हम भटकते हैं
2.
न जाने कितने मरासिम तुम्हारे बाद रहे
ग़ज़ब हुआ तो बस इतना कि तुम ही याद रहे
तुम्हीं न थे वो जिसे आई थी अदाकारी
गुमान ओ वह्म की दुनिया में हम भी शाद रहे
ये हम हैं तो ये ग़नीमत है वर्ना ख़ैर कहाँ
जो हम को याद रहा गर किसी को याद रहे
ये कौन अब भी हमें टोकता है रह रह कर
ज़मीर नाम की शै है तो ज़िंदाबाद रहे
रह ए सुख़न में कोई हमसफ़र ज़रूरी है
तो अपने साथ बस अर्बाब-ए-फ़न की दाद रहे
3.
रात की साँस बहुत देर से अटकी हुई है
वो सहर है के न होने ही पे उतरी हुई है
मैं यहाँ नींद को दुश्वार किये जाता हूँ
वो मेरे ख़ाब की दहलीज पे बैठी हुई है
ये तेरा दर्द है जो मुझको समेटे हुए है
ये मेरी ज़ात है जो दर्द में बिखरी हुई है
एक वो शख़्स था जो अब मुझे भूला हुआ है
ये वो नाकाम तमन्ना थी जो पूरी हुई है
आपको गुज़रे हुए कितने बरस गुज़रे हैं
आपकी ख़ुशबू अभी तक यहाँ ठहरी हुई है
4.
इतना आसान कहीं कार ए मसीहा होता
कि मेरे चाहने भर ही से सब अच्छा होता
तुमने उस रोज़ क़यामत ही उठा रक्खी थी
तुमने उस रोज़ मुझे देखते देखा होता
मैनें क्या क्या न नज़ारे तेरे दरपेश किये
ऐ मेरे दिल तू किसी खेल तो बहला होता
ऐसा होता है कि मैं सोचता ही रहता हूँ
ऐसा होता तो ये मुमकिन था कि ऐसा होता
अपने झगड़े को जो मिल बैठ के सुलझा लेते
हम में फिर और किसी बात का झगड़ा होता
5.
हम भी वैसे हैं जैसे सारे हैं
हम भी तो हिज्र ही के मारे हैं
हम जो हैं ना तुम्हारे होने के
बाक़ी जितने भी हैं तुम्हारे हैं
हमको इस बात का सहारा है
हम तेरी बात के सहारे हैं
मुस्कुराहट के इक तसव्वुर ने
डूबते लाखों दिल उबारे हैं
देखिये कौन लौट आता है
हमने कुछ नाम तो पुकारे हैं
इसके आगे बहुत अँधेरा है
हम यहाँ आख़िरी सितारे हैं
6.
अब तो हैरत भी नहीं होती है ऐसे कैसे
ये मुहब्बत भी दिखाती है तमाशे कैसे
मैं बहुत देर से आईना तके जाता हूँ
तुम को भी लोग पसन्द आते हैं कैसे कैसे
किसने पूछी है वजह याद नहीं करने की
आप तो इतना बताएँ मुझे भूले कैसे
अपनी ज़ुल्फ़ों को ज़रा ज़ोर से झटके कोई
और देखे कि मेरी जाँ पे बन आए कैसे
7.
हो के मुख़ालिफ़ आप ही के लम्हा भर का मैं
सामान करते जाता हूँ अपने ही सर का मैं
कुछ भी सराब के सिवा देखे तो बात हो
क़ाइल कहाँ से होऊँगा वर्ना नज़र का मैं
इसने कहा कि यूँ करो तो मैनें यूँ किया
आख़िर ग़ुलाम ठहरा दिले मोतबर का मैं
ऐ दिल मेरे तू ख़ुद को अकेला न जानीओ
शाना ब शाना हूँ तेरे औक़ात भर का मैं
8.
जो हमारा है हमें जान से प्यारा ठहरा
हू ब हू चाँद सितारों का उतारा ठहरा
हम इसे छोड़ के तुझ पास अब आएँ कैसे
सर ए आईना दिल आवेज़ नज़ारा ठहरा
देख सकते हुए भी देख नहीं सकता मैं
जिसको देखूँ हूँ तेरे हुस्न का मारा ठहरा
जो किसी तौर मुहब्बत का भरम रखना है
तो ये आज़ार ए रफ़ाकत भी गवारा ठहरा
और ता हद्दे-नज़र एक भंवर है ग़म का
दिल की कश्ती को तबस्सुम का सहारा ठहरा
9.
हम पे थोड़ा करम हुआ तो है
जी का रोना रक़म हुआ तो है
आवेगी याद कब तलक देखो
सिलसिला दम ब दम हुआ तो है
हम जो अब घर से कम निकलते हैं
शह्र का शोर कम हुआ तो है
हम बहुत ख़ुश हैं तेरे जाने से
झूठ कहते हैं ग़म हुआ तो है
कुछ का कुछ हम दिखाई देते हैं
तुम को भी कुछ भरम हुआ तो है
10.
जो न कुछ अहवाल ने वबाल किया है
दिल ने मगर अब के भी कमाल किया है
हमने किसी और को कही है ग़ज़ल ये
हमने किसी और को ख़याल किया है
हाय कि खुलने को है ज़बान अब उनकी
हाय कि हमने भी क्या सवाल किया है
हम को कब इस हाल से नज़ात मिलेगी
माज़ी ओ फ़र्दा को हम ने हाल किया है
यार के मातम का जब कभी भी हुआ जी
देर तईं अपना ही मलाल किया है
कुछ भी सम्भलते न बन पड़े है यहाँ तो
क्या ही ग़मे जाँ ने मालामाल किया है
जंग जो होती है तेरी याद से ‘तरकश’
हमने तेरी याद ही को ढाल किया है