कहते हैं- इंसान उम्र नहीं तजरबा से बड़ा होता है। जो शायर अपने तजरबे को जितनी ख़ूबसूरती से क्राफ़्ट में ढालता है, उसकी शायरी उतनी ही चमक रखती है। मौजूदा वक़्त में जहाँ हर कोई अपने जज़्बात का बयान लिखकर कर ज़ाहिर करने पर अमादा है, ऐसे में बहुत कम लोग हैं जिन्हें लिखने का हुनर हासिल होता है। ऐसा ही एक हुनरमंद नौजवान शायर है- शहबाज़ ‘रिज़वी’। आइए पढ़ते हैं कुछ ग़ज़लें। पसंद आए तो हौसला अफ़ज़ाई ज़रूर कीजिएगा – त्रिपुरारि
1.
उसने मुझसे तो कुछ कहा ही नहीं
मेरा ख़ुद से तो राबता ही नहीं
कुजागर रोज़ दस्त बदले है
मुझको ईजाद तो किया ही नहीं
अपने पीछे मैं छिप के चलता हूँ
मेरा साया मुझे मिला ही नहीं
कितनी मुश्किल के बाद टूटा है
एक रिश्ता कभी जो था ही नहीं
बाद मरने के घर नसीब हुआ
ज़िंदगी ने तो कुछ दिया ही नहीं
बेवफ़ाई तुझे मुबारक हो
हमने बदला कभी लिया ही नहीं
2.
पराये शहर में ख़ुशबू तलाश लेते हैं
जो अहले दिल हैं वो उर्दू तलाश लेते हैं
हमें तलाश है ऐसे निगाह वालों की
जो दिन के वक़्त भी जुगनू तलाश लेते हैं
मैं जानता हूँ कुछ ऐसे उदास लोगों को
जो कहकहों में भी आँसू तलाश लेते हैं
उन्हें भी अपनी तरफ खींच लो वफ़ा वालों
जो ख़ून बेच के घुँघरू तलाश लेते हैं
मेरी तरफ़ से उन्हें भी दुआएँ दो ‘रिज़वी’
जो ख़्वाब बोते हैं, बाजू तलाश लेते हैं
3.
यहाँ पर रात है न चांदनी है
ज़मीं पर चाँद कितना अजनबी है
कई चीज़ों का मालिक है वो तनहा
मगर अपनी अलग वाबस्तगी है
जिसे देखो उदासी ढूँढ़ता है
ख़ुशी के साथ भी तो ज़िन्दगी है
तुम्हारे हिज्र में अब दर्द कम है
हमारे इश्क़ में कोई कमी है
उसे तो इल्म ने अंधा किया है
तुम्हारे पास तो शाइस्तगी है
मुझे तुम शहर में ढूँढ़ोगे कैसे
मेरी पहचान तो आवारगी है
4.
ख़्वाब से दिल्लगी न कर लेना
नींद से दुश्मनी न कर लेना
आज से ज़िंदगी तुम्हारी है
तुम मगर ख़ुदकशी न कर लेना
दर्द बढ़ जाए तो दवा लेना
ज़ख़्म से दोस्ती न कर लेना
वस्ल की शब भले ही काली हो
हिज्र में रोशनी न कर लेना
ज़लज़ले भी उदास होते हैं
दिल की बस्ती घनी न कर लेना
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