साहित्य के नजरिये को बदल कर रख देने वाले लेखक गैब्रिएल गार्सिया मार्केज़ का आज जन्मदिन है. उनके असाधारण गद्य लेखन से हम सब अच्छी तरह से परिचित हैं. लेकिन उन्होंने कविता भी लिखी थी यह कम लोगों को पता होगा. वैसे यह कविता उनकी है या नहीं इसको लेकर विवाद है. फिर भी अच्छी कविता है. शब्दों का वही जादू. मेरे अनुवाद में कितना उतर पाया है पता नहीं लेकिन आप इसे पढ़ते हुए इस कविता के जादू से बच नहीं पायेंगे- दिव्या विजय
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the puppet(पुतला)
अगर क्षण-भर के लिए ईश्वर यह भूलकर कि मैं चिथड़ों का गुड्डा हूँ, मुझे जीवन की एक कतरन दे सके, तो भले ही मैं वह सब न कहूं जो मैं सोचता हूँ, पर जरूर मैं हर उस बात के बारे में सोचूंगा जो मैं कहता हूँ.
मैं चीज़ों की कीमत उनके मूल्य के आधार पर नहीं बल्कि उनकी अहमियत के आधार पर लगाऊंगा.
मैं कम सोऊंगा, ख़्वाब ज्यादा देखूँगा. मैं जानता हूँ हर उस एक मिनट, जब हम अपनी आँखें बंद करते हैं, हम रोशनी के साठ क्षण खो देते हैं.
मैं तब चलूंगा जब बाकी लोग थम जाते हैं, मैं तब जागूंगा जब बाकी लोग सोते हैं.
जब दूसरे बोलेंगे तब मैं एक अच्छी चॉकलेट आइसक्रीम खाते हुए उन्हें सुनूँगा.
अगर ईश्वर मुझे जीवन की एक कतरन से नवाज़ दे तो मैं सादगी से खुद को संवारूंगा, मैं न सिर्फ अपनी देह बल्कि अपनी रूह उघाड़ कर सूरज के नीचे सपाट लेट जाउंगा.
मेरे प्रभु, अगर मेरे पास दिल होगा, मैं अपनी नफरत बर्फ पर लिखूंगा और सूर्य के निकलने की प्रतीक्षा करुँगा.. वैन गॉग का स्वप्न देखते हुए बेनेदेत्ती की कविता सितारों पर लिखूंगा और सेरात का गीत मैं चाँद के लिए गाऊँगा.
अगर मेरे पास जीवन का एक छोटा सा टुकड़ा हो तो…मैं अपने अश्रुओं से गुलाबों को सींचूंगा, जिस से मैं उनके काँटों की पीड़ा और उनकी पंखुड़ियों के अवतीर्ण चुम्बनों को महसूस कर सकूं,
जिन लोगों से मैं प्यार करता हूँ, मैं एक भी ऐसा दिन नहीं जाने दूँगा जब मैं उनसे न कहूं कि मैं उनसे प्यार करता हूँ.
मैं प्रत्येक स्त्री-पुरुष को विश्वास दिलाउंगा कि वे मेरे प्रिय हैं और मैं प्रेम के प्रेम में जीवन बिताउंगा.
मैं पुरुषों को साबित कर दूँगा कि उनका यह सोचना कितना ग़लत है कि उम्रदराज़ होने पर प्रेम नहीं हो सकता. वे यह नहीं जानते कि वे वृद्ध तब होते हैं जब प्रेम करना बंद कर देते हैं. मैं अपनी संतान को पंख दूँगा, पर मैं उसे स्वयं उड़ना सीखने दूँगा. वृद्धों को मैं सिखाऊंगा कि मृत्यु बढती उम्र के साथ नहीं वरन भूलते जाने के कारण आती है. पुरुषों, मैंने तुमसे कितना कुछ सीखा है…
मैंने सीखा कि सभी पर्वत के शिखर पर रहना चाहते हैं बगैर यह अनुभव किये कि वास्तविक प्रसन्नता चढ़ाई तय करने के तरीके में निहित है.
मैंने सीखा जब एक नवजात पहली बार अपने पिता की अंगुली को अपनी नन्हीं मुट्ठी में भींचता है, उसी क्षण वह उसे चिरकाल के लिए अपना बना लेता है.
मैंने सीखा एक मनुष्य ही दूसरे मनुष्य का उस वक़्त तिरस्कार कर सकता है जब असल में दूसरे मनुष्य को उसकी मदद की दरकार हो. मैंने तुमसे कितनी बातें सीखीं हैं, पर अंत में वे सब किसी काम की नहीं क्योंकि जब वे मुझे संदूक में बंद कर रहे होंगे तब दुर्भाग्य से मेरी मृत्यु निकट होगी.
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