पिछले दिनों इंडियन आइडोल में एक सरदार प्रतिभागी को गाते देख मुझे हिन्दी फ़िल्मों के उस भुला दिए गये सरदार गायक की याद हो आई जिसके गीत दो मौक़ों पर हम स्वयमेव गा बैठते हैं। होली के पर्व पर ‘जोगी जी धीरे–धीरे // नदी के तीरे–तीरे‘ गीत और किसी सफ़र के दौरान अपने पार्टनर को ड्राइविंग सीट पर बैठे देख छेड़ते हुए ‘कौन दिसा में लेके चला रे बटोहिया // ऐ! ठहर–ठहर ये सुहानी–सी डगर‘ गीत ख़ुद-ब-ख़ुद हमारे होठों पे थिरकने लगते हैं। पर इनके पीछे की ये सरल, दिलफ़रेब और गँवई सुगंध लिये मेल वॉयस के मालिक का नाम कितने लोग जानते हैं?
इन जैसे कई मशहूर गीतों के पेशे से वकील गायक जसपाल सिंह अमृतसर में जन्मे। कॉलेज टाइम से ही फ़ेमस जसपाल ने एक बार अपने पिता के डर से कॉलेज जलसे में गाने से मना कर दिया था, इस पर प्रिंसीपल इतना नाराज़ हुआ कि जसपाल को कॉलेज से सस्पेंड ही कर दिया। शुरू से ही मो. रफ़ी को प्रेरणा मान फ़िल्मों में गीत गाने के लिए जसपाल 1968 में बम्बई अपनी बहन के यहाँ चले आए। पिता चाहते थे कि जसपाल घर का बिज़नेस सँभाले पर वे तो महेंद्र कपूर की शागिर्दी में बस अपने पहले ब्रेक के इंतज़ार में थे। 1968 में संगीतकार उषा खन्ना ने पहले सोलो गाने का ब्रेक तो दिया पर वो पॉपुलर नहीं हो पाया। फिर 1975 में आई राजश्री बैनर की फ़िल्म ‘गीत गाता चल’ के नये हीरो सचिन के लिए एक फ़्रेश आवाज़ की तलाश में रवींद्र जैन ने जसपाल को बुला भेजा।
यह वो दौर था जब एक ख़ास सिंगर एक ख़ास हीरो की मार्कड वॉयस बन जाता था। मो. रफ़ी-शम्मी कपूर, किशोर कुमार-राजेश खन्ना से लेकर 90 के दशक में उदित नारायण-आमिर ख़ान तक यह ट्रेंड रहा। हालाँकि रवींद्र जैन जसपाल से ‘गीत गाता चल’ का बस एक ही गीत ‘धरती मेरी माता पिता आसमान‘ गवाना चाहते थे और टाइटल सॉंग को किसी बड़े गायक से परन्तु राजश्री के बड़जात्या के ज़ोर देने पर रवींद्र जैन इस फ़िल्म के टाइटल सॉंग के लिए भी जसपाल की आवाज़ प्रयोग करने पर राज़ी हो गये। और फिर तो जसपाल की गायकी का वो समाँ बना कि इस फ़िल्म के सभी गीत उन्होंने ही गाये। सचिन के हिट गीतों को हम आज भी उन्हीं की आवाज़ से पहचानते हैं।
हिन्दी फ़िल्मों के गीतों में उर्दू शायरी के शब्दों दिल, जिगर, सनम का ही ज़ोर रहा है पर इस भीड़ में हिन्दी शब्दों वाले गीतों की दस्तक को हमारे कान जसपाल की आवाज़ में ही जानते हैं। ‘गीत गाता चल 1975’ की चौपाइयाँ ‘मंगल भवन अमंगल हारि‘ हों या ‘श्याम तेरी बंसी पुकारे राधा नाम‘ भजन या ‘अखियों के झरोखों से 1978’ का दोहे कंपटीशन ‘बड़े बड़ाई न करें, बड़े न बोलें बोल‘ वाला गीत। दोहे गाते वक़्त तो आज भी जसपाल को ही कॉपी किया जाता है। ‘नदिया के पार 1982’ के गीतों को सुनते हुए कभी नहीं लगा कि ये डिक्शन किसी शहराती गायक का होगा और वो भी पंजाबी मातृभाषा वाले व्यक्ति का। ‘जोगी जी‘, ‘कौन दिसा में‘, ‘साँची कहें तोरे आवन से हमरे‘, गीतों को सुन जसपाल और सsचिन का ड्यूओ ऐसा फ़िट लगता है कि इसी फ़िल्म में सचिन के लिए सुरेश वाडेकर द्वारा गाये बस एक गीत में उनकी आवाज़ ऑड-सी लगने लगती है। सचिन के साथ जसपाल का आवाज़ का यह सुहाना मिलन हमें ‘श्याम तेरे कितने नाम 1977’ में भी सुनाई दिया। जसपाल ने सिर्फ़ रवींद्र जैन ही नहीं बल्कि राजश्री बैनर की अन्य फ़िल्म जैसे ‘सावन को आने दो 1979’ में संगीतकार राजकमल के साथ भी वही गमक पैदा की और अरुण गोविल पर भी उनकी आवाज़ ख़ूब सूट की। हिन्दी कविताई के गीतों की पहचान के लिए जसपाल सदैव याद किए जायेंगे।
दिव्या विजय