Home / Featured / पुरबिया उस्ताद ‘महेंदर मिसिर’ पर निराला बिदेसिया का लेख

पुरबिया उस्ताद ‘महेंदर मिसिर’ पर निराला बिदेसिया का लेख

आज भोजपुरी गीतों में पुरा-नायक का दर्जा रखने वाले महेंदर मिसिर की जयंती है. निराला बिदेसिया का यह लेख उनको बहुत अच्छी तरह से याद करता है. उनके महत्व को रेखांकित करता है- मॉडरेटर

=======================================

भ्रम और भंवरजाल में फंसे भोजपुरी के एक बड़े पुरोधा महेंदर मिसिर का आज जन्मदिन है. लोग उन्हें पुरबिया उस्ताद कहते हैं. पिछले कुछ साल से उनका नाम फलक पर उभार पा रहा है. रामनाथ पांडेय ने महेंदर मिसिर’ और पांडेय कपिल ने ‘फुलसुंघी’ नाम से उन पर बहुत पहले ही कालजयी उपन्यास लिखा था, उनके गीत कई दशक से उनके गीत आकाशवाणी से गूंजते रहे हैं लेकिन इधर कुछ सालों से दूसरी वजहों से चरचे में हैं. एक बड़ी वजह फिल्मी दुनिया की उनमें बढ़ती रुचि है. करीब आधे दर्जन से अधिक फिल्मकार, निर्माता, निर्देशक, अभिनेता, अभिनेत्री आदि प्रकारांतर से इच्छा जता चुके हैं कि वे पुरबिया उस्ताद पर काम करने की तैयारी में हैं.बड़ी-बड़ी फिल्म निर्माण कंपनियां रुचि ले रही हैं, ऐसी सूचना है. कई ने अभिनेता तक तय कर लिये हैं, करार कर लिये हैं लेकिन बात आगे नहीं बढ़ पा रही. आर्थिक मोरचे पर एक परेशानी है लेकिन उससे ज्यादा लोच्चा कहानी को लेकर है. जिंदगी भर प्रेम को ही बदलाव और आजादी का अहम हथियार- माननेवाले महेंदर मिसिर को देशभक्त और राष्ट्रवादी रूप में पेश करने की सारी जुगत लगायी जा रही है लेकिन उनके प्रेम का रूप इतना विराट है कि वह संभव नहीं हो पा रहा. मजेदार कहें या कि फिर अफसोस कि बात कि जो महेंदर मिसिर के सो कॉल्ड जानकार हैं या कि भोजपुरी भाषी हैं, वे भी उन्हें राष्ट्रवादी रंग में रंगने में ही उर्जा लगाये हुए हैं और प्रकारांतर से यह साबित करना चाहते हैं कि महेंदर मिसिर की मूल पहचान एक सच्चे देशभक्त के रूप में मानी जाए, जो अंग्रेजों से लड़ने के लिए नोट छापते थे, देशभक्तों को बांटते थे, गोपीचंद नामक एक जासूस ने उन्हें पकड़वा दिया था. संभव है, यह घटना सच हो लेकिन इस एक घटना को सच मानकर, इसे ही पहचान की प्रमुख रेखा बनाकर, देशभक्ति और राष्ट्रवाद की परिधि में बांधकर एक ऐसे सांस्कृतिक नायक को भी सदा-सदा के लिए मारने की तैयारी है, जो सच में अपने समय का एक बड़ा नायक था. सामाजिक आजादी का पक्षधर नायक. महेंदर मिसिर को समझने के लिए सबसे कारगर सामग्री उनकी रचनाएं हैं. उनके गीतों की दुनिया है. उनके गीतों में राष्ट्रवाद और आजादी की लड़ाई की चर्चा कम ही मिलती है. न के बराबर. हमरा निको नाही लागेगा गोरन के करनी… जैसे कुछ गीत मुश्किल से मिलते हैं जबकि महेंदर मिसिर के विशालतम रचना संसार से गुजरने पर 90 प्रतिशत से अधिक गीत प्रेम, भक्ति और जीवन के सौंदर्य के गीत होते हैं. अपूर्ण रामायण से लेकर राधाकृष्ण के प्रेम विरह तक के दर्जनों कालजयी गीत, प्रेम के रस से सराबोर दर्जनों पुरबिया गीत, दर्जनों प्रेम के गजल, कई बेमिसाल निरगुण गीत मिलते हैं. अपने अधिकांश गीतों के जरिये महेंदर मिसिर स्त्री को आजाद करने की कोशिश करते हैं. स्त्री के सुख, दुख, खुशी, गम को व्यक्त कर. महेंदर मिसिर को सबसे रसिया गीतकार माना जाता है भोजपुरी में लेकिन उनके किसी गीत में स्त्री का देह नहीं उभरता. वे स्त्री के लिए जीवन भर रचते रहे. अगर महेंदर मिसिर के इसी रूप को रहने दे भोजपुरी समाज तो शायद वे सदैव लोकमानस में जिंदा रहेंगे. महेंदर मिसिर जिस भाषा में रचना कर रहे थे, वह कई मायने में पीढ़ियों से एक बंद समाज रहा है. प्रेम वर्जना का विषय रहा है उस समाज में. कई प्रेम कहानियां दफन होती रही हैं. महेंदर मिसिर अपने समय में प्रेम के विविध आयाम को केंद्रीय विषय बनाकर बंद समाज में भविष्य में स्त्री के लिए संभावनाओं के द्वार खोल रहे थे. वे स्वर देने की कोशिश कर रहे थे कि आज नही तो कल स्त्री जब अपनी इच्छा-आकांक्षा व्यक्त करे. प्रेम की दुनिया में विचरे. स्त्री भी प्रेम गीतों के साथ गाये-नाचे. स्त्री अपनी इच्छा—आकांक्षा व्यक्त करेगी, प्रेम का राग गायेगी तो उसके मन का भाव व्यक्त होगा.उस पर पहरेदारी होगी तो फिर दूसरा उसके तन को उभारेगा.महेंदर मिसिर को राष्ट्रवादिता और देशभक्ति की परिधि में समेट उनकी इस मूल को पहचान को खत्म करने से भोजपुरी समाज का भंवरजाल और बढ़ेगा. भोजपुरी समाज को सहज ही समझना चाहिए कि राष्ट्रवादी लड़ाई और देशभक्ति के लिए उसके पास नायकों की कतार है. महेंदर मिसिर, भिखारी ठाकुर अगर उस कतार में शामिल नहीं भी होंगे तो भी भोजपुरी समाज कोई कम राष्ट्रवादी और देशभक्त समाज नहीं माना जाएगा और अगर महेंदर मिसिर या भिखारी ठाकुर को देशभक्ति की चाशनी में नहीं डुबोयंगे तो उभी उनके नायकत्व में कोई कमी नहीं आनेवाली!

‘प्रभात खबर’ से साभार 

 
      

About Prabhat Ranjan

Check Also

‘वर्षावास’ की काव्यात्मक समीक्षा

‘वर्षावास‘ अविनाश मिश्र का नवीनतम उपन्यास है । नवीनतम कहते हुए प्रकाशन वर्ष का ही …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *