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ट्विंकल खन्ना की पुस्तक ‘लक्ष्मी प्रसाद की अमर दास्तान’ का एक अंश

पूर्व अभिनेत्री ट्विंकल खन्ना की किताब ‘द लिजेंड ऑफ़ लक्ष्मी प्रसाद’ जब अंग्रेजी में आई थी तो खूब चर्चा हुई थी. अब जगरनॉट बुक्स से वह किताब हिंदी में भी आ रही है ‘लक्ष्मी प्रसाद की अमर दास्तान’ के नाम से. प्रस्तुत है किताब का एक रोचक अंश- मॉडरेटर

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अगर मौसम की इजाज़त हो

इंडियन एक्सप्रेस अख़बार में मौसम विभाग के पूर्वानुमान में एक हफ़्ते तक अच्छी धूप निकलने की बात कही गई थी लेकिन जिस दिन एलिज़ा थॉमस तीसरी बार एक ही इंसान से शादी कर रही थीं तो अचानक बारिश होने लगी।

तीन दिन पहले बांद्रा के कोर्ट हाउस में जब एक सामान्य रस्मअदायगी का मौका था तो आसमान में बादल तक नहीं थे। हालांकि कल जब एलीज़ा का नाम बदलकर अपने पति के मज़हब के मुताबिक आयशा कर दिया गया था, तब आसमान बादलों से भरा हुआ था। हालांकि ये रस्म बमुश्किल बीस मिनट में खत्म हो गई और उस अच्छी भली क्रिश्चियन लड़की ने जैसे ही लखनऊ के किसी ज़रदोज़ी के हाथ के बने और सोने की बारीक कढ़ाई वाले गहरे हरे रंग के कुर्ते और सिल्क के चमकते शरारे को देह से उतारा, वो अपना नया नाम भी भूल ही गई।

आज सेंट थॉमस मारथोमा सीरियन चर्च में उसकी तीसरी बार शादी हो रही थी लेकिन बाहर हो रही मूसलाधार बारिश की वजह से खिड़कियों से बाहर कुछ भी नज़र नहीं आ रहा था और चर्च की अंदर की नक्काशी स्याह और उदास लग रही थी।

हालांकि एलीज़ा थॉमस उस चिड़चिड़े और सुस्त पादरी के सामने काफी शांत और संयत दिखने की कोशिश कर रही थी लेकिन उसकी बेचैन नज़रें बार-बार खिड़की के पार बगीचे की तरफ़ जाती थीं जहां इस रस्म के बाद होने वाली गार्डन पार्टी रखी गई थी और उसे चिंता थी कि कहीं बारिश की वजह से सारा जश्न फीका न पड़ जाए।

एलीज़ा के नैन-नक्श शानदार थे। वो दूल्हे से तीन इंच लंबी थी और उसके लंबे और गहरे भूरे बालों को उसके कॉफी की रंगत वाले चेहरे से पीछे की तरफ़ अच्छी तरह खींचकर गोल जूड़ा बनाया गया था और उसकी कमानीदार भौहें उसकी छोटी-छोटी आंखों को और बड़ा बना रही थीं। आज उसने एक शानदार सफ़ेद साड़ी पहनी थी और सिर पर लाल सिल्क की साड़ी लपेटी थी जिसे वो रिसेप्शन पर पहनने जा रही थी।

उसके पति जावेद गाज़ी ने काला सूट पहना था और वो एक प्रोफेशनल फोटोग्राफर था जिसकी उम्र भले ही सैंतीस साल हो चुकी थी लेकिन जिसके दिल में अभी भी भारतीय क्रिकेट टीम में तेज़ गेंदबाज़ के तौर पर खेलने का सपना ज़िंदा था।

एलीज़ा के पिता पोथेन थॉमस जिन्हें वो प्यार से अचन बुलाती थी, सबसे आगे की सीट पर कुछ यूं बैठे हुए थे कि वो ऐसे अभिभावक हों जो अपने समुदाय की इज़्ज़त की रक्षा करते-करते हार गए हों। इससे पहले वो एक जंग हार चुके थे जब उनकी बड़ी बेटी राहेल ने एक पंजाबी बैंकर से शादी कर ली थी। हालांकि ऐसा नहीं था कि एलीज़ा उनकी गोद में निनान और चेरियन जैसे नाम वाले घुंघराले बालों वाले तीन चार पोते-पोतियां देने वाली थी लेकिन ऐसा मंज़र देखने की मजबूरी ने उन्हें भीतर ही भीतर और कमज़ोर कर दिया था।

वो अपनी पत्नी जिन्सी की तरफ़ मुखातिब हुए जिसने अपने भारी बदन पर मैरून रंग की साड़ी पहनी थी, हाथों में दर्जनों अंगूठियां डाली थीं और बालों में नारंगी रंग के कानाकंबरम फूलों की लड़ी लगाई थी, और फुसफुसाते हुए बोले, ‘कितने अच्छे-अच्छे मलयाली आईपीएस अधिकारियों को हम हम चाय-बिस्किट के लिए घर पर बुलाते रहे, सबको इसने मना कर दिया और देखो अब इस जावेद से शादी कर रही है।’

पोथेन थॉमस की आंखें चेहरे पर चढ़े मोटे काले चश्मे के पीछे नम हो चली थीं, वो बोले, ‘तुम ही बताओ मुझे, करोड़ों लोगों के इस हिंदुस्तान में उसको एक ढंग का लड़का नहीं मिला, चलो क्रिश्चियन न सही, मलयाली भी न सही लेकिन कम से कम हिंदुस्तानी तो होता। वो भी कहां से एक बांग्लादेशी मुस्लिम शरणार्थी को खोज लाई।’

जिन्सी, जिसकी आंखें अभी भी अपने होने वाले दामाद और अपनी बेटी पर जमी हुई थीं और जिसने होंठों पर बमुश्किल मुस्कान ओढ़ी हुई थी, धीमे से फुसफुसाई, ‘पोथेन मेरी बात लिखकर ले लो, ये शादी छह महीने भी नहीं चलेगी।’

लेकिन जिंसी थॉमस की बात गलत थी, शादी तो नौ महीने चल गई।

(ट्विंकल खन्ना के कहानी संग्रह लक्ष्मी प्रसाद की अमर दास्तान से यह अंश प्रकाशक जगरनॉट बुक्स की अनुमति से प्रकाशित)

 
      

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