जो लोग उर्दू-हिंदी लिटरेचर से तआल्लुक़ रखते हैं, उनके ज़ेहन में होली के ख़याल के साथ नज़ीर अकबराबादी की नज़्म ‘होली की बहारें’ ज़रूर आती होगी। मन गुनगुनाने लगता होगा, ‘जब फागुन रंग झमकते हों, तब देख बहारें होली की’। ये बहुत मशहूर नज़्म है। लेकिन इसके अलावे भी उर्दू में होली पर कई शायरों ने नज़्में कही हैं। आज होली के मौक़े पर आइए पढ़ते हैं कुछ बेहतरीन शायरों की ख़ुशरंग नज़्में। जानकीपुल की ओर से आप सभी को होली मुबारक!
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साग़र ख़य्यामी की नज़्म-
छाई हैं हर इक सम्त जो होली की बहारें
पिचकारियां ताने वो हसीनों की क़तारें
हैं हाथ हिना-रंग तो रंगीन फुवारें
इक दिल से भला आरती किस किस की उतारें
चंदन से बदन आब-ए-गुल-ए-शोख़ से नम हैं
सौ दिल हों अगर पास तो इस बज़्म में कम हैं
मेहराब-ए-दर-ए-मै-कदा हर आबरू-ए-ख़मदार
बल खाने से शोख़ी में बने जाते हैं तलवार
कहता है हर इक दिल कि फ़िदा-ए-लब-ओ-रुख़्सार
सब इश्क़ के सौदाई हैं माशूक़ ख़रीदार
सूरज भी परस्तार है बिंदिया की चमक का
हर ज़ख़्म मज़ा लेता है चेहरे के नमक का
रंगीन फुवारें हैं कि सावन की झड़ी है
बूँदों के नगीनों ने हर इक शक्ल जड़ी है
चिल्लाते हैं आशिक़ कि मुसीबत की घड़ी है
वो शोख़ लिए रंग जो हाथों में खड़ी है
तस्कीन मिलेगी जो गले आन लगेगी
पानी के बुझाए से न ये आग बुझेगी
तस्वीर बनी जाती है इक नाज़-ओ-अदा से
पानी हुई जाती है कोई शर्म-ओ-हया से
रेशम सी लटें रुख़ पे उलझती हैं हवा से
बुड्ढे भी दुआ करते हैं जीने की ख़ुदा से
माशूक़ कोई रंग जो चेहरे पे लगा दे
हम क्या हैं फ़रिश्ते को भी इंसान बना दे
हैं गंदुमी चेहरे तो बदन सब के हरे हैं
रंगीन फुवारों से चमन दिल के भरे हैं
उस दिल को ही दिल कहिए क़दम जिस पे धरे हैं
दिल पाँव-तले शोख़ जो पामाल करे हैं
है जश्न-ए-बहाराँ तो चलो होली मनाएँ
इस रंग के सैलाब में सब मिल के नहाएँ
नफ़रत के तरफ़-दार नहीं साहिब-ए-इरफ़ाँ
देते हैं सबक़ प्यार के गीता हो कि क़ुरआँ
त्यौहार तो त्यौहार है हिन्दू न मुसलमाँ
हम रंग उछालें तो पकाएँ वो सिवय्याँ
रंजीदा पड़ोसी जो उठा दार-ए-जहाँ से
ख़ुशियों का गुज़र होगा न फिर तेरे मकाँ से
नज़ीर बनारसी की नज़्म-
कहीं पड़े न मोहब्बत की मार होली में
अदा से प्रेम करो दिल से प्यार होली में
गले में डाल दो बाँहों का हार होली में
उतारो एक बरस का ख़ुमार होली में
मिलो गले से गले बार बार होली में
लगा के आग बढ़ी आगे रात की जोगन
नए लिबास में आई है सुब्ह की मालन
नज़र नज़र है कुँवारी अदा अदा कमसिन
हैं रंग रंग से सब रंग-बार होली में
मिलो गले से गले बार बार होली में
हवा हर एक को चल फिर के गुदगुदाती है
नहीं जो हँसते उन्हें छेड़ कर हंसाती है
हया गुलों को तो कलियों को शर्म आती है
बढ़ाओ बढ़ के चमन का वक़ार होली में
मिलो गले से गले बार बार होली में
ये किस ने रंग भरा हर कली की प्याली में
गुलाल रख दिया किस ने गुलों की थाली में
कहाँ की मस्ती है मालन में और माली में
यही हैं सारे चमन की पुकार होली में
मिलो गले से गले बार बार होली में
तुम्हीं से फूल चमन के तुम्हीं से फुलवारी
सजाए जाओ दिलों के गुलाब की क्यारी
चलाए जाओ नशीली नज़र से पिचकारी
लुटाए जाओ बराबर बहार होली में
मिलो गले से गले बार बार होली में
मिले हो बारा महीनों की देख-भाल के ब’अद
ये दिन सितारे दिखाते हैं कितनी चाल के ब’अद
ये दिन गया तो फिर आएगा एक साल के ब’अद
निगाहें करते चलो चार यार होली में
मिलो गले से गले बार बार होली में
बुराई आज न ऐसे रहे न वैसे रहे
सफ़ाई दिल में रहे आज चाहे जैसे रहे
ग़ुबार दिल में किसी के रहे तो कैसे रहे
अबीर उड़ती है बन कर ग़ुबार होली में
मिलो गले से गले बार बार होली में
हया में डूबने वाले भी आज उभरते हैं
हसीन शोख़ियाँ करते हुए गुज़रते हैं
जो चोट से कभी बचते थे चोट करते हैं
हिरन भी खेल रहे हैं शिकार होली में
मिलो गले से गले बार बार होली में
जूलियस नहीफ़ देहलवी की नज़्म-
हम से नज़र मिलाइए होली का रोज़ है
तीर-ए-नज़र चलाइए होली का रोज़ है
बढ़िया शराब लाइए होली का रोज़ है
ख़ुद पीजिए पिलाइए होली का रोज़ है
पर्दा ज़रा उठाइए होली का रोज़ है
बे-ख़ुद हमें बनाइए होली का रोज़ है
संजीदा क्यूँ हुए मिरी सूरत को देख कर
सौ बार मुस्कुराइए होली का रोज़ है
यूँ तो तमाम उम्र सताया है आप ने
लिल्लाह न अब सताइए होली का रोज़ है
बच्चे गली में बैठे हैं पिचकारियाँ लिए
बच बच के आप जाइए होली का रोज़ है
दुनिया ये जानती है ग़ज़ल-गो ‘नहीफ़’ हैं
उन की ग़ज़ल सुनाइए होली का रोज़ है