औरत को लेकर हर किसी का अपना एक नज़रिया होता है। होना भी चाहिए। यहाँ तक कि ख़ुद औरतों का भी। कोई किसी से इत्तिफ़ाक़ रखे या न रखे, ये अलग बात है। आज पूरी दुनिया #WomensDay मना रही है। यहाँ भी आप सुबह से कई पोस्ट पढ़ चुके हैं। मगर अब तो दिन के दरवाज़े पर शाम भी दस्तक दे कर जा चुकी है। आइए पढ़ते हैं आज का आख़िरी पोस्ट। उर्दू की एक नज़्म, जिसे लिखा है पास्कितान के युवा शायर अली ज़रयून ने। जानकीपुल के पाठकों के लिए ये नज़्म उपलब्ध कराने के लिए शायर दोस्त महेंद्र कुमार ‘सानी’ का बेहद शुक्रिया – त्रिपुरारि
तुम ने मुझ को जनम दिया
और माँ कहलाईं
सीने से लग कर जब तुम ने ‘बाबा’ बोला
तुम बेटी थीं
मैं टूटा तो तुम ने मुझ को गले लगाया
दिल कहलाईं
राखी और चादर ने मुझ को
रिश्तों की तहज़ीब सिखाई
मैं पत्थर था
तुम कोंपल के जैसे मेरे अंदर फूटीं
और आदम ने शब्द लिखा था
जीवन के सारे रिश्तों में तुम बेहतर हो
वो जो तुम को ‘आधा बेहतर’ कहते हैं
वो ख़ुद आधे हैं
तुम पूरी हो !
पूरी औरत
अपने पूरेपन में कोई शक मत करना
जितने दिन हैं
सारे दिन औरत के दिन हैं
जितने दिल हैं
सारे दिल औरत के दिल हैं
जब तक दिन हैं
जब तक दिल हैं
तुम पूरी ही कहलाओगी
तुम जीवन को महकाओगी!