इस साल अन्तरराष्ट्रीय पुस्तक मेले दिल्ली में राधाकृष्ण प्रकाशन से राकेश रंजन का का कविता संग्रह आया ‘दिव्य कैदखाने में’. कई अच्छी अच्छी कविताएँ हैं इसमें लेकिन आज इस कविता ने ध्यान खींचा. साथ में एक और छोटी सी कविता- मॉडरेटर
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बनारस में
स से सांड, साड़ी, सुरसरि, सीढ़ी, साधू-संत
चीजें हैं अनन्त देखो स से बनारस में।
कान का मणि ही नहीं, शीश का शशि ही नहीं
खासे-खासे देवता हैं खासे बनारस में।।
ज्ञान में, गुरुजन में, गली-गली गोबर में
मेरे प्राण पग-पग रसे बनारस में।
रंजन है नाम मेरा, हाजीपुर धाम मेरा
दिल आठों याम मेरा बसे बनारस में।।
क्या होऊं
हरा होता हूँ
तो हिन्दू मारते हैं
केसरिया होता हूँ तो मुसलमान
हत्यारे और दलाल मारते हैं
सफ़ेद होने पर
तुम्हीं कहो मेरे देश
क्या होऊं
जो बचा रहूं शेष?