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जहाँ फ़नकार को हर तरह की आज़ादी हो जहाँ हर एक को हासिल ख़ुशी बुनियादी हो

दिल्ली विश्वविद्यालय में विचारधाराओं की जंग के कारण माहौल बिगड़ रहा है, दूषित होता जा रहा है. इस माहौल में दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र त्रिपुरारि ने एक नज़्म लिखी है- मुल्क– मॉडरेटर

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हम ऐसे मुल्क में पैदा हुए हैं, ऐ लोगों
जहाँ ईमान की क़ीमत लगाई जाती है
जहाँ उजले दुकानों में खिलौनों की तरह
बड़े करीने से औरत सजाई जाती है

जहाँ गर आग सी भड़के किसी के सीने में
तो फिर उस शख़्स की हिम्मत बुझाई जाती है
जहाँ पंछी किसी दरिया को चाहे बेवजह
तो उसके होंठ की हसरत मिटाई जाती है

हम ऐसे मुल्क में पैदा हुए हैं, ऐ लोगों
जहाँ पर नाम ही क़ातिल का अब मसीहा है
कि जिसके दिल में कोई दर्द का मौसम ही नहीं
किसी के वास्ते वो शख़्स, कब मसीहा है

कि जिसकी आँख में शामिल ज़माने भर का दुख
हमारे वास्ते वो शख़्स, तब मसीहा है
कोई कहता था ये हमको हमारे बचपन में
यही इक बात सच लगती है, रब मसीहा है

हम ऐसे मुल्क में पैदा हुए हैं, ऐ लोगों
जहाँ सरकार तो है, पर बड़ी बीमार है वो
इसे तुम फूँक दो हर तरह से मिट जाने दो
नज़र जिस सिम्त भी जाती है, हाँ, बेकार है वो

यहाँ चूल्हा है सबका और सबकी रोटी भी
मुझे हैरानगी होती है के हर बार है वो
कि जिससे ख़ुश नहीं हैं लिखने औ’ पढ़ने वाले
मैं कैसे मान लूँ इस मुल्क की सरकार है वो

नए इक मुल्क का मैं ख़्वाब कोई बुनता हूँ
सितारा, चाँद, आफ़ताब कोई बुनता हूँ
जहाँ हर आँख में हो प्यार औ’ दिल में चाहत
मैं ऐसे शख़्स का इक बाब कोई बुनता हूँ

जहाँ इंसान की दुनिया में बस इंसान रहे
ज़मीन-ओ-आसमां हर वक़्त जिस्म-ओ-जान रहे
न मंदिर की ज़रूरत हो न मस्जिद की कोई
जहाँ हर चीज़ हो नीयत से, बस ईमान रहे

जहाँ पर प्यार ही हर चीज़ की बुनियाद बने
न हो कोई भी फ़रियादी न ही फ़रियाद बने
जिधर भी देखिए चेहरे पे हो इक ताज़ा हँसी
लरज़ते होंठ पर आवाज़ भी आज़ाद बने

जहाँ हर रोज़ आए ईद फिर दीवाली हो
जहाँ पर दिन न हो मातम न रातें काली हो
जहाँ बुद्धा महावीरा गुरु नानक भी रहे
जहाँ दोहा कबीरा से ग़ज़ल से हाली हो

जहाँ पर रस्म हो कोई न सिर झुकाने की
जहाँ पर रीत हो हर तरह मुस्कुराने की
जहाँ पर दिल दिमाग़ों में न होशियारी हो
जहाँ पर बात हो कुछ दिल से दिल लगाने की

जहाँ नद्दी भी अपनी ही अदा में बहती हो
जहाँ मीठी हवा हर कान में कुछ कहती हो
जहाँ पर फूल भी खिलते हों अपनी मर्ज़ी से
जहाँ पर ख़ुशबुएँ हर इक दुआ में रहती हो

जहाँ फ़नकार को हर तरह की आज़ादी हो
जहाँ हर एक को हासिल ख़ुशी बुनियादी हो
धरम के नाम पर दहशत न कोई फैलाए
भले दिल्ली हो या कश्मीर की ही वादी हो  

 
      

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