प्रसिद्ध कवि-विचारक उदयन वाजपेयी के संपादन में निकलने वाली पत्रिका ‘समास’ में उर्दू के मशहूर लेखक शम्सुर्ररहमान फारुकी का इंटरव्यू आया है, जी उदयन जी ने खुद लिया है. उस इंटरव्यू से यह पता चलता है कि आजकल फारुकी साहब लखनऊ पर उपन्यास लिख रहे हैं. उस उपन्यास का एक अंश समास में छपा भी है. बहरहाल, इंटरव्यू में फारुकी साहब ने प्रेमचंद की कहानी ‘शतरंज के खिलाड़ी’ पर, प्रेमचंद की समझ पर कुछ गंभीर सवाल उठाये हैं. प्रस्तुत है वह अंश- मॉडरेटर
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फारुकी साहब– … दो जवान शायर हैं जो शेख जुअरत के शागिर्द हैं. जुअरत दिल्ली से लखनऊ गए बड़े शायर थे. घटना 1770 और 1780 के आसपास की है. दोनों जवान शायरों का जुबान के किसी मसले पर झगडा हो जाता है. एक कहता है मामला ऐसा है दूसरा कहता है ऐसा नहीं है. जब झगड़ा बढ़ता है वे कहते हैं कि बाहर चलकर देख लेते हैं. वे गोमती के किनारे जाते हैं और तलवार निकाल लेते हैं. एक तलवार वो है जो ‘शतरंज के खिलाड़ी’ में प्रेमचंद ने निकलवाई है, हमारी संस्कृति को बदनाम करने. जो वाकया प्रेमचंद ने कहा वह जाहिर है नामुमकिन और झूठा है.
उदयन– उस कहानी में एक त्रुटि और है कि जो आदमी प्रेम या विरह की कविताएँ लिख रहा है, वह गलती पर किस तरह है, इसमें हर्ज़ क्या है? प्रेमचंद जी की कला के प्रयोजन की समझ अत्यंत संकीर्ण थी, वही मोटे रूप में आज भी चल रही है.
फारुकी साहब– सारा झूठ बोल रहे हैं कि बादशाह को फौज ले गयी जबकि न फौज आई न वौज. बादशाह ने खुद ही कहा कि हम जाते हैं, हम लड़ाई नहीं करेंगे वर्ना हमारे आदमी मरेंगे. इस तरह उन्होंने यह कहानी लिखकर पूरे लखनऊ को लांछित किया. बहरहाल वो तो किस्सा है, पर जिन तलवारों का मैं जिक्र कर रहा हूँ वह वास्तविक जिंदगी है. दोनों शायर एक दूसरे को मारने पर आमादा हैं. एक को दूसरे ने इतना ज़ख़्मी कर दिया कि वह बड़ी मुश्किल से किसी चीज पर लदकर घर आया. लोग उससे हजार मर्तबा पूछते रहे कि उसे किसने मारा, क्यों मारा, वह चुप रहा और मर गया. जब यह बात मारने वालों को पता लगी, उसने इस डर से शहर छोड़ दिया कि लोग मुझे पकड़ लेंगे. वह दिल्ली चला जाता है. दिल्ली में ‘दर्द’ का आखिरी ज़माना चल रहा है. दर्द की मौत 1785 में हुई थी. वह भागा हुआ शायर दर्द की महफ़िलों में उठने बैठने लगता है. 3-4 साल बाद वह यह सोचकर कि लोग अब भूल-भाल गए होंगे, लौटता है. जैसे ही वह शहर में दाखिल होता है लोगों को मालूम हो जाता है कि वह आ गया है. उसने जिसकी हत्या की थी, उसके घर वाले उसको मार देते हैं. इसको उपन्यास में लाना है कि लोग शतरंज के खिलाडियों की तरह नहीं शब्दों की खातिर एक दूसरे को मार देते थे. और लोगों में एका भी है कि मरने वाला यह बताता नहीं है कि उसे किसने ज़ख़्मी किया. उसके घरवालों को भी अपने आदमी से इतना लगाव है कि वे चार पांच साल बाद भी उसके कातिल को ढूंढ़कर मार देते हैं.