Home / Featured / याक और बच्चे की दोस्ती की कहानी ‘हिमस्खलन’

याक और बच्चे की दोस्ती की कहानी ‘हिमस्खलन’

चीनी बाल एवं किशोर कथाओं में प्रकृति, मिथकों के साथ इंसान के आदिम संबंधों की कथा होती है. ‘हिमस्खलन’ ऐसी ही किताब है, जिसमें एक बच्चे और एक याक की दोस्ती की कहानी है. जांग पिंचेंग की इस किताब का अंग्रेजी से अनुवाद मैंने किया था. जिसका प्रकाशन रॉयल कॉलिन्स प्रकाशन ने किया. उसी पुस्तक का एक अंश- प्रभात रंजन

———————————————————————–

हिम स्खलन

तुम्हारे रिकुवा पहाड़ की चोटी के ऊपर पहुँचने से पहले अचानक अचानक तेज बर्फानी तूफ़ान आया। उत्तर से आने वाली बर्फीली हवा, तेज सीटी बजा रही थी, हवा अंग्रेजी के वी अक्षर के आकार की घाटी से आ रही थी, बर्फ़बारी उसके सामने कमजोर पड़ रही थी, उसके कारण पहाड़ों के कोनों से सूखे पत्ते फ़ैल रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे पहाड़ का सारा रास्ता घास फूस के दलदल में बदल चुका था और वह पूरी तरह से सूखे फूल-पत्तियों से ढका हुआ था।

तुमने स्त्री याक एडी के नितम्ब के ऊपर चाबुक चलाया, जिससे वह और तेज चले, ताकि अँधेरा होने से पहले ही रिकुआ पहाड़ की चोटी को पार कर जाए। पहाड़ के संकरे घुमावदार रास्ते में कई जगह बिलकुल सीधी चढ़ाई थी; इंसान और बहुत तरह के जानवरों के खुरों के पड़ते रहने के कारण पथरीला रास्ता कुछ मुलायम और चमकीला हो गया था। बर्फ से ढके होने के कारण रास्ता तेल की तरह फिसलन भरा हो गया था। अँधेरे में उस रास्ते को पार कर पाना इतना आसान नहीं था।

एडी के ऊपर तुम बचपन से ही सवारी कर रहे थे और उसने इस बात को साबित कर दिया; उसको तुम्हारी चिंताओं का अच्छी तरह से पता था। वह पूरी रफ़्तार से भाग रही थी, उसके पीछे पीछे डेढ़ साल का धारीदार चेहरे वाला बछड़ा भी था, जिसका नाम हुआमियाजई था। शांत घाटी में रौंदे जा रहे बर्फ के टूटने की आवाज गूँज रही थी। पहाड़ के एक मोड़ की ऊंचाई पर रिकुका पहाड़ की चोटी थी। दियानबेई पठार के ऊपर के पहाड़ अच्छी तरह पके हुए फलों के गुच्छों जैसे थे। लेकिन रिकुका पहाड़ की चोटी इसका एकमात्र अपवाद था, वह समतल जमीन के ऊपर खड़ा था, ऐसा लगता था जैसे झुके हुए आसमान को कोई खम्भा सहारा दे रहा हो। उस समय, सफ़ेद बर्फ से ढकी घाटियों और दर्रों के कारण रिकुका पहाड़ इस तरह से फुला हुआ लग रहा था मानो उसने भेड़ की चमड़ी का बड़ा का कोट पहन रखा हो। घुमावदार रास्ते से जाने वाली ढलान पर इतनी मोटी बर्फ थी कि वह किसी बड़े सफ़ेद राक्षस की याद दिला रहा थी, मानो वह वहां उकडूं बैठा हो, मानो वह किसी भी समय नीचे कूदकर सब कुछ खा जाएगी। यह कोई ऐसी अनहोनी भी नहीं थी क्योंकि हर साल जाड़े के अंत में वहां बहुत जबरदस्त हिमस्खलन होता था।

अन्य खूंखार बर्फीले पहाड़ की तरह, रिकुका पहाड़ की चोटी किसी रक्षक पहाड़ जैसी थी जहाँ कभी भी अचानक हिमस्खलन नहीं हुआ था और पहाड़ के नीचे से गुजरने वाले इंसान और जानवर कभी बर्फ के नीचे दबकर नहीं मरे। आम तौर पर हिमस्खलन आने से आधे घंटे पहले बर्फ के कुछ फाहे सपाट पहाड़ से नीचे घाटी में गिरते थे, पहले वे चावल के पतले नूडल्स जैसे होते थे; धीरे धीरे वह उस तरह की बेल्ट में बदलने लगते थे जिस तरह की बेल्ट प्राचीन चीन में ऊंचे अधिकारी पहना करते थे; हिमस्खलन होने से कुछ मिनट पहले ऐसा दिखाई देने लगता था  मानो बर्फ का जलप्रपात जैसा गिर रहा है, ऐसा लग रहा था मानो वह कई फीट चौड़ा हो, और पहाड़ी रास्ते के पास उनकी चमक दिखाई देने लगती थी। इस बीच जोर की गर्जना होती थी जिससे वहां से गुजरने वालों को इस बात की चेतवानी मिल जाती थी कि जितनी जल्दी हो सके वे वहां से भाग जाएँ। रिकुका पहाड़ की दया के कारण हर साल हिमस्खलन होने के बावजूद न तो पहाड़ पर बसने वाले किसी आदमी को कोई नुक्सान होता था न ही किसी पालतू जानवर को।

तुम्हारा औपचारिक नाम शंवाज़ी था, जिसका मतलब होता है पहाड़ का बेटा। तुम पहाड़ों में ही बड़े हुए थे इसलिए तुम हिमस्खलन को बहुत अच्छी तरह से जानते थे।

खड़ी चढ़ाई वाला पहाड़ खामोश रहा, और तुम दुस्साहस के साथ आगे बढ़ते रहे। पथरीले रास्ते के ऊपर बर्फ पड़ी हुई थी जिसकी वजह से उसके ऊपर बहुत फिसलन थी।

अचानक हुआमियाजई का पैर फिसला और वह पहाड़ के रास्ते से नीचे गिर गया। एक बर्फीले पत्थर पर उसका पैर थोड़ा सा हिला और वह उस बर्फीले पत्थर के साथ चट्टान के नीचे आ गया। इससे पहले कि तुम उसकी पूंछ पकड़ कर उसका संतुलन बिठाने की कोशिश करते, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। वैसे वह बहुत गहरा नहीं था लेकिन उस चट्टान के ऊपर बहुत पानी था। हुआमियाजई नीचे एकदम सर के बल गिरा। बर्फ की धूल जैसी आंधी उड़ी, और उसके बाद बछड़े की पसलियों के टूटने की आवाज की गूँज सुनाई दी।

माँ याक एडी अपने बेटे के आगे आगे चल रही थी। वह जोर से चिल्लाई और उस संकरे पहाड़ी रास्ते के ऊपर बेतहाशा भागने लगी। वह एक ढलान के पास आई, जमी हुई बर्फ के ऊपर खड़ी हो गई, उर उसका थुलथुल शरीर चट्टान के नीचे की तरफ ऐसे लुढ़कती हुई गई मानो वह किसी झूले से नीचे जा रही हो। देखते ही देखते घाटी में माँ बेटे की चीत्कार की आवाजें गूंजने लगी।

तुम्हारे पास इसके अलावा कोई और चारा नहीं रह गया था कि तुम मुश्किल से लड़खड़ाते हुए चट्टान के नीचे की तरफ पहुंचे। वह घाटी किसी मर्तबान जैसा था; वह बहुत बड़ा नहीं था, लेकिन उसके कारण लोगों को ठंढ लगती थी और लोग उदास भी रहते थे। मेंग्मा गाँव के लोगों ने उसका नाम काली घाटी रखा हुआ था। असल में, जाड़े के मौसम में वह घाटी बर्फ की चादर से ढकी रहती थी, गर्मी के मौसम में हरी काई से; उसकी किसी काली चीज से कोई सम्बन्ध नहीं था। लेकिन उसका नाम काली घाटी रखा गया था; और इस रंग से अनिष्ट का संकेत होता था।

चीख पुकार का पीछा करते हुए तुमको जल्दी ही यह पता चल गया कि एडी और उसका बेटा कहाँ थे। हुआमियाजई एक उबड़ खाबड़ चट्टान के ऊपर पड़ा हुआ था, उसके वजन से बर्फ कुछ इंच नीचे की तरफ धंसा हुआ था। तुम घुटनों के बल बैठकर उसके शरीर को देखने में लग गए। जमीन पर खून नहीं था, लेकिन वह किसी और बुरी बात की ओर इशारा था। अगर खून दिखाई देता तो उसका मतलब यह होता कि बछड़े को थोड़ा बहुत जख्म था, लेकिन किसी तरह के खून के नहीं होने का मतलब था कि हड्डियों और मांसपेशियों में गंभीर जख्म था। तुम चिल्लाने लगे और तुमने हाथ में घास की एक टहनी ले ली और उस बछड़े को उसके नितम्ब के ऊपर मारने लगे। तुमको ऐसा लगा था कि बछड़ा संघर्ष करेगा और उठ खड़ा होगा, लेकिन जल्दी ही तुमको निराश हो जाना पड़ा, उसने अपनी पतली गर्दन को हिलाते हुए यह बताया कि वह उठना तो चाहता था लेकिन उसका शरीर हिल नहीं रहा था, जो पत्थर जैसा भारी था। तुम इस बात को नहीं मानना चाहते थे कि उसके पैर टूट गए थे, इसलिए तुमने एक बार फिर से अपने हाथ की टहनी को ऊंचा उठाया और उसको उठाने की फिर से कोशिश की। अचानक एडी गुस्से में चिल्लाने लगी, उसकी बड़ी बड़ी आँखें तुम्हें ऐसे घूर रही थी, जैसे वह ताम्बे का कोई घंटा हो; हुआमियाजई ने भी तुम्हारी तरफ नाराजगी के साथ देखा और फिर दुःख के मारे कराहने लगा।

वैसे तुम्हारी उम्र बस 14 साल थी लेकिन तुमको चरवाही करने का छह साल का अनुभव था। तुमको एडी के गुस्से का अंदाजा था, और तुम यह समझ रहे थे कि वह तुमको इस बात के लिए चेतावनी दे रही थी कि गंभीर रूप से घायल बछड़े को तुम परेशान मत करो। और वह बछड़ा तुमको बार बार यह सन्देश दे रहा था कि तुम्हारे साथ चालाकी करने के लिए उसके पास दिमाग नहीं बच गया था और उसके अन्दर खड़े होने की भी ताकत नहीं रह गई थी।

तुम क्या करते? हुआमियाजई की उम्र महज डेढ़ साल थी, लेकिन उसका वजन सौ पौंड से भी अधिक था। तुम तो उसको पकड भी नहीं सकते थे, उठाकर घर ले जाना तो बहुत दूर की बात थी। एडी बहुत मजबूत थी, लेकिन वह न तो अपने बेटे को माँ बन्दर की तरह पीठ पर हुआमियाजई को लेकर चल सकती थी न ही शेर और सिंह की तरह अपने बच्चे को मुंह में लेकर चल सकती थी।

अगर तुमको पहले से यह पता चल गया होता कि आधे रास्ते में हिमस्खलन होने वाला था तो तुम कभी एडी के साथ हुआमियाजई को दो बोरी में भरकर तीतर लाने के लिए लेकर नहीं आते। तुम्हारे पापा ने यह कहा था कि बर्फीले पहाड़ी शहर की यात्रा लम्बी थी और बछड़े को मुश्किल हो सकती थी। लेकिन तुमने अपने पापा की बात नहीं मानी। अब बहुत देर हो चुकी थी।

बर्फ़बारी तेज से तेज होती जा रही थी, और आकाश में बादल और काले हो गए थे। तुम कर ही क्या सकते थे? आम तौर उस पहाड़ी रास्ते पर बहुत कम ही लोग चलते थे, और इसलिए यह कोई हैरानी की बात नहीं थी कि उस बर्फीले तूफ़ान में कोई आदमी नहीं दिखाई दे रहा था। ऐसा लग रहा था कि दो ही रास्ते थे कि या तो मेंगमा गाँव वापस जाकर मदद मांगी जाए। तुम्हारे पापा फिर लूंगा चाचा और ऐनु को हुआमियाजई लादकर वापस लाने के लिए भेज देते, हाथ में टोर्च लेकर तथा साथ में बांस और रस्सी के साथ। तुमने एडी के नाक की रस्सी खींचने की कोशिश की, लेकिन उसने गर्दन सीधी करके गुस्से भरी नजर से देखा। तुम समझ गए, वह अपने बेटे के साथ रहना चाहती थी। अच्छा ठीक है, तुमने खुद से कहा, अगर एडी यहाँ रहा तो न कोई भेड़िया, लोमड़ी या पहाड़ी चीता हुआमियाजई को नुक्सान पहुंचाने का साहस नहीं कर पायेगा। एडी के सर के ऊपर लाल रंग के दो सींग चाकू जैसे तेज थे, और अपने बच्चे की रखवाली कर रही माँ याक शेरनी से भी अधिक खतरनाक हो जाती थी। रिकुका पहाड़ से मेंगमा गाँव जाने आने का रास्ता करीब तीन घंटे का था। तुमको इस बात की चिंता नहीं थी कि याक काली घाटी की बर्फीली हवा में जमकर मर जाते क्योंकि बहुत बड़े बड़े रोयें के साथ पैदा होते थे, ठंढ से वे अपना बचाव करने में सक्षम होते थे। तुमने एडी का घेरा उतार लिया और उसके ऊपर सामान टांगने के लिए जो बोरी बाँध रखी थी वह भी उतार ली। बर्फीले पहाड़ी शहर में तीतर बहुत ऊंचे दामों में बिक गए थे; इसलिए एडी की पीठ से बोरी उतारने में तुमको कोई दिक्कत नहीं हुई क्योंकि वह खाली थी।

तुमने भेड़ कि चमड़ी का कोट अच्छी तरह से बाँध लिया और तुम काली घाटी जाने के लिए तैयार थे। तुमको अपने चेहरे पर ऐसा महसूस हुआ जैसे बर्फ की बहुत तेज ठंढी फुहार पड़ी हो जिससे तुमको बहुत दर्द महसूस हुआ। वह हवा के साथ चेहरे से टकराने वाली बर्फ की फुहार नहीं थी। नाचती हुई आनेवाली बर्फ की फुहार बहुत हलकी और मुलायम होती थी, उससे ठंढक महसूस होती थी और खुजली जैसा महसूस होता था, लेकिन उससे दर्द नहीं होता था। इसके अलावा, ऐसा भी नहीं था कि तेज हवा के कारण बर्फ के कण चेहरे से टकरा रहे हों क्योंकि बर्फ के कणों से ऐसी हाड़ कंपा देने वाली ठंढ नहीं आ सकती थी। अचेत जैसी हालत में तुम कुछ कदम आगे बढे, और अचानक तुम्हारे चेहरे से वह अजीब सा भाव गायब हो गया। जब तुम अपनी पहले वाली जगह पर लौटे तो तुम्हारे चेहरे पर वह अदृश्य फुहार फिर से पड़ा। हैरान होते हुए तुमने अपना सर ऊपर उठाया तो देखा कि रिकुका पहाड़ ऊंचा खड़ा था, सीधा खड़ा पहाड़ सफ़ेद बर्फ से ढक चुका था, ऐसा लग रहा था जैसे वह ऊपर से बहुत भारी हो और काँप रहा हो। तुम पहाड़ी ढाल के सामने थे, जिसके ऊपर अस्पष्ट सा कुछ बह रहा था। शाम की कालिमा में तुमने जो देखा उसके ऊपर तुमको यकीन नहीं हुआ; तुमने अपनी आँखों को मला; हे ईश्वर! पहाड़ की ढाल पर जो अस्पष्ट सा बहता हुआ दिखाई दे रहा था वह अब साफ़ होता जा रहा था, ऐसा लग रहा था जैसे स्वर्ग ने सफ़ेद रेशम की चादर बिछा दी हो। अचानक तुम्हारा खून जम गया; भय के मारे हाथ पाँव कांपने लगे। तभी तुमको चेहरे पर ठंढा सा झोंका महसूस हुआ था, वह बर्फ के टुकड़े थे जो बर्फीली चोटियों से बहकर आ रहे थे। तुमको अब पक्का यह लग रहा था कि पहाड़ की ढाल से बर्फ के टुकड़ों के आने का क्या मतलब था। आधे घंटे से भी कम समय में भयानक हिमस्खलन होने वाला था, और रक्षक चोटी पहले से इसकी चेतावनी दे रही थी।

पहाड़ की ढाल से बहती हुई बर्फ और स्पष्ट होती जा रही थी, और बर्फ के टुकड़े बड़े होते जा रहे थे।

उसके बाद तुमने अपने पीछे एडी और हुआमियाजई को चट्टान के ऊपर देखा, वह यह सोच रहा था कि चाचा ऐनु ने जो भविष्यवाणी की थी वह सच होने वाली थी: क्या एडी के भाग्य में यह पहले से ही बदा था कि उसको कोई बच्चा नहीं होगा, एक जन्म लेकर मर जायेगा?

 
      

About Prabhat Ranjan

Check Also

पुतिन की नफ़रत, एलेना का देशप्रेम

इस साल डाक्यूमेंट्री ‘20 डेज़ इन मारियुपोल’ को ऑस्कर दिया गया है। इसी बहाने रूसी …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *