आज कुमार गन्धर्व की जयंती है. शास्त्रीय संगीत के इस अप्रतिम गायक को याद करते हुए नॉर्वे प्रवासी डॉ. प्रवीण कुमार झा ने यह बहुत अच्छा लेख लिखा है. एकदम आम आदमी के नजरिये से- मॉडरेटर
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बिना फेफड़े के कोई महान गायक बन सकता है? वो भी हिंदुस्तानी संगीत का? ऐसा व्यक्ति जो किसी घराने का न हो? असंभव लगता है। परंपरा से हटकर। परंपरा से हटकर जब अक्षय कुमार को राष्ट्रीय सम्मान मिलता है तो भी अजीब लगता है। बॉब डिलन को नोबेल मिलता तो भी।
कुमार गंधर्व जी के साथ तो न परंपरा थी न भौतिकी। एक फेफड़े से कोई क्या तान छेड़ेगा? और वह सदी के महानतम गायकों में हैं।
कुमार गंधर्व जी जब कहते कि उनका कोई घराना नहीं, तो नैपथ्य में कुछ लोग कहते उनका ‘एक-लंगी’ घराना है। मजाक उड़ाते उनकी कमजोरी का। एक फेफड़े का। उनका एक फेफड़ा टी.बी. की बीमारी ले गई। यह तो शुक्र कि एक नयी दवाई आ गई ‘स्ट्रेप्टोमाइसिन’ और उनका दूसरा फेफड़ा बच गया।
कुमार गंधर्व मेरी नजर में संगीत के वैज्ञानिक थे। वो वह प्रयोग करते जो कोई नहीं करता। उनके पास घराना नहीं था, वह बड़े नैचुरल गायक थे, जो जन्म से सीख कर आया हो। वो LP रिकॉर्ड सुन कर ही तान छेड़ देते। बिना सीखे-सिखाए। एक किंवदंती है कि उनको एक बार एक महाराज साहब ने एक कठिन रिकॉर्डिंग की शुरूआती आलाप बजाई और बंद कर दी। कुमार गंधर्व ने लगभग हू-ब-हू वही तान छेड़ दी। सोचिए किसी ने सालों रियाज कर वह कम्पोजिशन गाई होगी, उन्होनें बिना सुने अपनी कल्पना से गा दिया। यह दैविक शक्ति नजर आती है।
उनकी निंदा होती है कि वो ‘विलंबित’ यानी संगीत का धीमा (स्लो) हिस्सा बेकार गाते थे। जो उस्ताद अमीर खान को पसंद करते हों, वह तो सिरे से कुमार गंधर्व को खारिज कर देंगें। पर कुमार गंधर्व तो संगीत के ‘ऐक्शन-हीरो’ थे। अक्षय कुमार। वो किसी की नहीं सुनते, और उनको सुनने वालों की भीड़ जमती। उनको सुनेंगें तो आपको साफ-साफ शब्द सुनाई देंगे, समझ आएँगें। वह शब्द चबाते या खींचते नहीं, साफ उच्चारण करते हैं। कुछ-कुछ आगरा घराने वालों की तरह। कबीर के निर्गुणी भजन को मेरी नजर में कुमार गंधर्व से बेहतर किसी ने नहीं गाया। बालगंधर्व की बंदिशों को भी कुमार गंधर्व ने खूब गाया।
कोई भी व्यक्ति जो संगीत का नवीन श्रोता हो, उसे कुमार गंधर्व जी से शुरूआत करनी चाहिए। इसलिए नहीं कि वो निचले स्तर के गायक हैं, बल्कि इसलिए कि वो संगीत के ‘आम आदमी’ हैं। उनसे आप शायद रिलेट कर पाएँ। पर इसका दूसरा पहलू यह भी है, उन्हें महानता विरासत में नहीं मिली, वो पैदा ही महान हुए।
आपको शायद पता हो, ‘स्पाइडरमैन’ जवानी में जा कर स्पाइडरमैन बने। जबकि सुपरमैन तो पैदा ही सुपरमैन हुए, उन्हें कुछ आवरण नहीं डालना होता। वैसे ही कुमार गंधर्व ‘सुपरमैन’ थे। बने नहीं, बस थे। आपको मेरी बात अजीब लग रही होगी, पर सुना हो तो शायद आप कुछ सहमत होंगें।
जब वो दुनिया छोड़ कर गए तो उनके एक शिष्य ने कहा, “लोग मरने के बाद स्वर्ग जाते हैं। पर कुमार गंधर्व तो आए ही स्वर्ग से थे। अब कहाँ जाएँगे?”
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