युवा शायर सीरीज में, आज पेश है पूजा भाटिया की ग़ज़लें – त्रिपुरारि
1.
यूँ ही चलते रहने से भी क्या होगा
अपना कहने को बस इक रस्ता होगा
सहरा, जंगल, दश्त न वीराना कोई
दीवाने का घर जाने कैसा होगा
तुम भी दरिया को दरिया बन कर देखो
तुम सा ही उसका चेहरा सूखा होगा
मैं पानी के सहरा में भटकी थी जब
वो भी रेत के दरिया में डूबा होगा
उसको लगता है मैं बिल्कुल तनहा हूँ
किसके साथ मुझे उसने देखा होगा!
उसका डर मेरे डर से मिल कर बोला
हम न हुए तो इन दोनों का क्या होगा?
वो लहरें जो अपने मन से बहती हों
साहिल उनके ही पीछे चलता होगा
पानी में तस्वीर बनी जब पानी की
पानी ने फिर पानी को देखा होगा
चौराहे पर पाकर मंज़िल हैरां हूँ
कोई सीधे रस्ते पर भटका होगा
एक कँवारी ख़ुशबू फैली जंगल में
एक गज़ाल भी झरने पर आया होगा
जीने के कितने सामां है सबके पास
मैं हूँ खाली हाथ मुझे मरना होगा
मेरे ख़्वाबों में भी हैं बस नींद के ख़्वाब
अब इस बेदारी का कुछ करना होगा
2.
तमाम रंग मिला कर के बेज़ुबानी का
बदल रहा था कोई रंग मुझ कहानी का
वो कैसी फ़िल्म थी किरदार सब अधूरे थे
न हाथ आया कोई भी सिरा कहानी का
पलक तलक था जो अब तक कहो हुआ क्या वो
कहीं मिला ही नहीं है सुराग़ पानी का
बयान दे दूँ मैं उसके ख़िलाफ़ पर मुझको
दिखाई दे तो सही चेहरा कोई पानी का
कमाल शै है ये तश्नालबी भी कहते ही
मेरी तरफ़ को बढा इक हुजूम पानी का
3.
वो जो पहला था अपना इश्क़, वही
आख़री वारदात थी दिल की
साथ मन्ज़िल पे मेरा छोड़ दिया
राह फिर उम्र भर भटकती रही
उसकी उड़ती नज़र पड़ी दिल पर
फूल महका कहीं कली चटकी
रह गया दिलमें एक तीर दबा
बात अरमान की तरह निकली
फिर वही ख़ाब वो पुराना ख़ाब
और फिर सुब्ह वो ही बोझल सी
ख़ाब आँखों में मौजज़न थे मेरे
लहर ने तोड़ दी पलक खिड़की
ख़ुदकुशी का किया इरादा फिर
बेइरादा ही ज़िन्दगी चुन ली
4.
बेनियाज़ी जो मेरी आदत थी
वो मेरी ज़ात की ज़ुरूरत थी
क्या? बिछड़ने के फ़ायदे भी हैं
सुन के हमको बड़ी ही हैरत थी
इक इसी बात का था डर उसको
मुझमें इनकार की भी हिम्मत थी
सब तमाशे थे उसके मेरे लिए
उसकी बातें थीं मेरी हैरत थी
वक़्त रहते मिला न वक़्त कभी
वक़्त पे वक़्त की ज़ुरूरत थी
5.
रहे कुहरे के हम कुहरा हमारा
कभी मौसम नहीं बदला हमारा
तुम्हारे लम्स ही बिखरे पड़े थे
वो था कहने को बस कमरा हमारा
कहानी पर थे हम ग़ालिब वगरना
ज़ुरूरी था नहीं मरना हमारा
मुसलसल याद से इक बच रहे थे
इसी में कट गया रास्ता हमारा
ज़माने भर के कमरे में है खिड़की
पर इक खिड़की में है कमरा हमारा
हुई मालूम कुछ बातें नयी भी
सुनाया उसने जब क़िस्सा हमारा
बहुत अच्छी ग़ज़लें .. जश्न ए रेख्ता में ख़वातीन के मुशायरे में सुना था .. बहुत ही अच्छी ग़ज़लें लिखती हैं औऱ सुनाती हैं उसी खूबसूरत अंदाज़ में।
वाह पूजा जी ,
कमाल कित्ता तुस्सी
क्या ही खूब ग़ज़लें कहीं
मुबारक हो
नज़ीर नज़र