आज से दिल्ली के त्रिवेणी कला संगम में भारतीय कविता की द्विवार्षिकी (बिनाले) ‘वाक्’ की शुरुआत हो रही है. रज़ा फाउंडेशन द्वारा आयोजित यह कार्यक्रम अपने ढंग का पहला ही आयोजन है. सिर्फ कविताक-पाठ, कविता चर्चा के आयोजन इससे पहले नहीं हुए हैं. तीन दिन तक चलने वाले इस आयोजन में कविता पाठ के कुल 11 सत्र होंगे और तीन सत्र कविता-चर्चा के होंगे. इसमें भारतीय भाषाओं के लगभग 45 कवि हिस्सा लेंगे.
आज के इन्डियन एक्सप्रेस में कवि-विद्वान तथा रज़ा फाउंडेशन के एक्जीक्यूटिव ट्रस्टी श्री अशोक वाजपेयी ने एक साक्षात्कार में कहा है कि इस आयोजन का मकसद है इस गद्यमय होते जाते समय में पद्य की बुलंद उपस्थिति दर्ज करवाई जाए. एक बड़ा मकसद यह भी है कि सैयद हैदर रज़ा कविता के बड़े प्रेमी थे. उनकी याद में कविता का आयोजन अपने आप में एक सार्थक आयोजन होगा. अशोक जी ने कहा है कि यह पहला बिनाले है जी भारतीय कविता पर केन्द्रित है, 2019 में दूसरा आयोजन एशियाई कविता पर होगा तथा 2021 में तीसरा आयोजन विश्व कविता पर एकाग्र होगा.
ऐसे समय में जब अभिव्यक्ति की विविधता को दबाने की कोशिश की जा रही है, एक तरह की आवाज मुखर होती जा रही है कविता भारतीय परम्परा की बहुलता को सबसे बेहतर तरीके से मुखरित करती है. इसलिए कविता के इस बिनाले के माध्यम से बहुलता का एक सन्देश भी जायेगा.
भारतीय भाषाओं की अलग-अलग पीढ़ी के अनेक ऐसे कवियों को देखने सुनने का सुयोग इस आयोजन में मिलेगा जो दिल्लीवासियों को पहले शायद ही कभी मिला हो. सच में इस समय लोकप्रिय माध्यमों द्वारा, लोकप्रियता के मानकों के आधार कविता को हाशिये पर डालने की कोशिश की जा रही है. बाजार के मानकों के आधार पर यह कहा जाने लगा है कि कविता बिकाऊ नहीं होती इसलिए उसके प्रकाशन का कोई अर्थ नहीं है. जबकि यही वहस अमे है जब सबसे अधिक कविताएँ लिखी जा रही हैं.
इस तरह का आयोजन न केवल कविता के वर्तमान को एक मजबूत आधार देने का कम करेगा बल्कि उसके भविष्य के प्रति भी आश्वस्त भी करेगा.