Home / Featured / जब अंग्रेजी के लेखक विक्रम सेठ ने ‘हनुमान चालीसा’ का अंग्रेजी अनुवाद किया

जब अंग्रेजी के लेखक विक्रम सेठ ने ‘हनुमान चालीसा’ का अंग्रेजी अनुवाद किया

सुधीश पचौरी का यह लेख बहुत पुराना है लेकिन आज भी प्रासंगिक है. सन्दर्भ है अंग्रेजी के जाने माने लेखक द्वारा हनुमान चालीसा का अनुवाद- मॉडरेटर

=====================

“एक अपनी हिंदी है, जो इतनी सेकुलर हो चली है कि अगर आज कोई हिंदी वाला ‘हनुमान’ का नाम लेता, तो कम्युनल कहलाता। साहित्यिक बिरादरी से उसका तुरंत बायकॉट हो जाता। धिक्कारा जाता। शापग्रस्त होता। रूढ़िवादी माना जाता। उसका अब तक का लिखा हुआ कूड़ा हो जाता। पतित कहलाता। उसे इतना शर्मिदा किया जाता कि कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहता।

दूसरी ओर अंग्रेजी है, जिसके एक बड़े लेखक विक्रम सेठ ने ‘हनुमान चालीसा’ का अंग्रेजी में अनुवाद किया। अगर यही काम कोई हिंदी वाला करता, तो सेकुलर गिरोह मार डालता। कहता कि देखो, यह आरएसएस वाला है। यह सांप्रदायिक है। वह कम्युनल है। हिंदी होती ही कम्युनल है। हिंदीवाला मीन्स संघी! उसे साहित्य में न घुसने देना।

विक्रम सेठ साहसी हैं, जिन्होंने लेखकीय अनुभव से निकली एक सच बात कही। उन्होंने हनुमान चालीसा का अनुवाद करते हुए एक अच्छे अनुवादक की तरह जैसा अनुभव किया, वैसा कहा। उन्होंने यह भी कहा कि हनुमान चालीसा का अंग्रेजी में अनुवाद करना किसी मौलिक किताब को लिखने से कहीं ज्यादा कठिन काम था। इस बात के लिए अंग्रेजी में उन्हें किसी ने शर्मसार नहीं किया। उन्हें अपने अनुवाद-कर्म पर न मिथ्या गर्व था, न झूठी शर्म। वह एक बड़े लेखक की तरह अपने काम के बारे में बताते रहे।

यह दो भाषाओं के साहित्यिक वातावरण का फर्क है। अंग्रेजी ने दुनिया देखी है। दुनिया पर शासन किया है। अंग्रेजी में धर्म और सेकुलर का मसला पहले ही निपट चुका है, लेकिन हिंदी में यह अभी तक अटका है। अंग्रेजी में लेखक चर्च जाकर भी सेकुलर है, हिंदी में मंदिर गया, तो तुरंत कम्युनल मान लिया जाएगा। नई कविता के सबसे अधिक प्रयोगशील और साहसी कवि अगर कोई हुआ है, तो एक अज्ञेय ही हुए। पता नहीं किस मूड में उन्होंने एक बार ‘जय जानकी जीवन’ यात्रा की ठान ली। यात्रा भी कर डाली। इस ‘अपराध’ पर सेकुलर गिरोह ने उन्हें आज तक नहीं बख्शा। कम्युनल सिद्ध करके छोड़ा। इसी तरह, एक बार निर्मल वर्मा कुंभ के मेले में चले गए और जैसे ही वहां से रिपोर्ट लिखी, तो सेकुलर गिरोह तुरंत सक्रिय हो गया। उनको कम्युनल कर दिया गया।

अंग्रेजी अंदर और बाहर एक जैसी है। हिंदी में ‘अंदर की बात’ कुछ और है, ‘बाहर की’ कुछ और। हिंदी साहित्य का इतिहास लेखकों के धर्म, संप्रदाय और जाति की बात करता है, लेकिन आज का साहित्यकार इसे छिपाता फिरता है। छिपाना ही सेकुलर होना है।

हिंदी में बहुत कुछ अपने आप वर्जित मान लिया गया है। साहित्य में धर्म की बात करना मना है। देवी-देवताओं की बात करना साहित्य जगत में अघोषित रूप से निषिद्ध है। हिंदी साहित्य में सेकुलर कुछ इस तरह से तारी हुआ कि लेखक अपने ईश्वर का नाम लेते हुए भी अपराध महसूस करता है। हिंदी का ‘गॉड’ बिना उसे बताए ‘फेल’ कर गया है। लेकिन अंग्रेजी लेखक का गॉड फेल्ड होकर भी फेल नहीं है।

विक्रम सेठ ने हिंदी वाले के सामने नया मॉडल पेश किया है : अपने अनुवाद से उन्होंने कई बातें सिद्ध की हैं। पहली, वह अंग्रेजी के नामी लेखक भले हों, हनुमान चालीसा की ब्रजी-अवधी को अच्छी तरह जानते हैं। ऐसा व्यक्ति ही निधड़क होकर धार्मिक रचना में प्रवेश कर सकता है, जिसका अपने लेखन पर पूरा विश्वास हो।

इस कुटिल का मानना है हिंदी के हर लेखक ने बचपन में हनुमान चालीसा जरूर पढ़ा होगा। बहुतों को रटा हुआ होगा। बहुत सारे उसका पाठ चुपके-चुपके करते होंगे। अपना प्रस्ताव है कि हिंदी के लेखकों के बीच हनुमान चालीसा पाठ का कंपिटीशन कराया जाए। विक्रम सेठ को उसकी अध्यक्षता करने को कहा जाए। तभी हिंदी को उसकी पिशाच योनि से मुक्ति मिलेगी।” #सुधीश_पचौरी

========================

दुर्लभ किताबों के PDF के लिए जानकी पुल को telegram पर सब्सक्राइब करें

https://t.me/jankipul

 
      

About Prabhat Ranjan

Check Also

नानकमत्ता फिल्म फिल्म फ़ेस्टिवल: एक रपट

कुमाऊँ के नानकमत्ता पब्लिक स्कूल में 26 और 27 मार्च को फिल्म फ़ेस्टिवल का आयोजन …

One comment

  1. बहुत हैरान कर रही है ये सोच

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *