बिहार में इंटरमीडिएट का रिजल्ट पिछले दो साल से रोमांचक कथा की तरह बना दिया जाता है. पिछले साल टॉपर लड़की का इंटरव्यू दिखाकर परीक्षा के नतीजों का ‘असली सच’ दिखाया गया. इस बार महज एक तिहाई बच्चों के पास होने का रोना रोकर. यह सही है कि बिहार में इंटर स्तर पर देश में सबसे खराब रिजल्ट आया है. कुल पास होने वालों के आंकड़ों के हिसाब से यह सही है. लेकिन इस तरह के ख़बरों को दिखाकर-छापने वाले इस खबर पर ध्यान क्यों नहीं देते कि पंजाब में इंग्लिश में सबसे अधिक बच्चे क्यों फेल हो रहे हैं? सबसे अधिक एनआरआई वाले राज्य में सबसे अधिक बच्चे अंग्रेजी भाषा में फेल हो रहे हैं. यूपीएससी की परीक्षाओं में जिस राज्य के बच्चे सबसे अधिक पास होते हैं उसी राज्य में सबसे अधिक विद्यार्थी इंटर स्तर की परीक्षा में फेल हो जाते हैं.
बात तथ्य से आगे कहानी लगने लगती है जब यह खबर आने लगती है कि आर्ट्स का टॉपर मीडिया के डर से छिप गया है. उसने 24 साल की उम्र में इंटर की परीक्षा क्यों दी? वह घर से इतनी दूर पढने के लिए क्यों आया? उसने होम साइंस जैसा सब्जेक्ट क्यों लिया? यानी चाहे अधिक विद्यार्थी पास हों या फेल चर्चा में बिहार की स्कूली शिक्षा ही रहेगी. क्योंकि बिहार में शिक्षा की ऐसी छवि बन चुकी है.
विद्यार्थी कम अधिक पास फेल होते रहते हैं. लेकिन ‘सुशासन’ के दौर में राज्य की शिक्षा व्यवस्था बदतर गई है. इस साल का इंटरमीडिएट का रिजल्ट इसका बहुत बड़ा उदाहरण है. इस सच्चाई से मुंह नहीं फेरा जा सकता है लेकिन जिस तरह से बिहार की शिक्षा को लेकर चुटकुले बनाए जा रहे हैं, मजाक उड़ाया जा रहा है वह दुखद है.
क्या कोई है जो इस तरफ ध्यान देगा और टाईट एक्जाम बनाम लाईट एक्जाम से ऊपर उठकर सोचेगा. जिस राज्य में शिक्षा का कोई भविष्य नहीं होता उस राज्य का कोई भविष्य नहीं होता.