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देवदत्त पट्टनायक की सीता और उनका तीसरा निर्णय

देवदत्त पट्टनायक की पुस्तक सीता के पांच निर्णय का एक अंश. किताब राजपाल एंड सन्ज प्रकाशन से आई है. अंग्रेजी से इसका अनुवाद मैंने किया है- प्रभात रंजन

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समुद्र के ऊपर बहुत लम्बी यात्रा के बाद सीता ने खुद को लंका द्वीप में पाया, जहाँ उन्होंने खुद को रावण के महल में अशोक वाटिका में देखाI पूरा शहर सोने का बना थाI महल भी सोने का बना था, जिसकी रखवाली राक्षस-स्त्रियाँ कर रही थींI

“तुम हमारे स्वामी से विवाह क्यों नहीं कर लेती?” उन राक्षस स्त्रियों ने गुस्से में पूछाI “वह सुदर्शन हैं, अमीर हैं, होशियार हैं, हुनरमंद हैं, शक्तिशाली हैं, उनसे सभी डरते हैं और वे तुमको बहुत प्यार करते हैंI उन्होंने तो तुमको अपनी रानी बनाने का भी वादा किया हैI फिर भी तुम मना कर रही होI ऐसा क्यों?”

बहुत आराम से, सीता ने जवाब दिया, “मेरी शादी राम से हुयी हैI इसलिए मैं उनकी पत्नी हूँI मैं सदा उनकी पत्नी रहूंगीI यहाँ कोई और विकल्प नहीं है; इसके कुछ कायदे होते हैंI तुम्हारे राजा कायदों को समझ नहीं पा रहे हैं, क्योंकि उनके ऊपर उनकी ख्वाहिश भारी हैI अगर वे सच में मेरी परवाह करते हैं तो उनको मुझे कायदों का पालन करने देना चाहिए, उन कायदों का जो मुझे सूर्यवंशी राजकुमार की पत्नी के रूप में करना चाहिए, न कि उनको मुझे बंदी बनाकर रखना चाहिएI”

लंका की स्त्रियों ने उसके बारे में सोचा जो उसने कहा था, और फिर वे इस बात के ऊपर सहमत हुयी कि रावण असल में सीता के ऊपर जबरदस्ती अपनी इच्छा थोप रहा थाI

फिर उन औरतों ने सीता से पूछा, “आप क्या करेंगी? आपके पति बहुत दूर हैंI आप जंगल के बीच में हैं समुद्र से घिरे द्वीप पर जहाँ चारों तरफ राक्षस ही राक्षस हैंI”

सीता ने जवाब दिया, “मैं इन्तजार करुँगीI क्योंकि मेरा अपने पति के ऊपर विश्वास हैI एक दिन वे जरूर आएंगेI”

सीता इन्तजार कर रही थी, उन औरतों ने उनसे यह बताया कि किस तरह राक्षस ब्रह्मा से निकले थेI

“सृष्टि के कर्ता ब्रह्मा का एक बेटा था जिसका नाम कश्यप था, जिनकी अनेक पत्नियाँ थीं जिनसे असुरों, देवताओं, मनुष्यों, पक्षियों मछलियों, सांप तथा जंगल के अन्य जानवरों का जन्म हुआ थाI उनका एक और बेटा था जिसका नाम पुलत्स्य था, जिसकी पत्नियों से यक्षों एवं राक्षसों का जन्म हुआ, जो जंगल में रहते हैंI”

उन औरतों ने सीता को रावण के जन्म के बारे में बताया और यह भी बताया कि अपने सौतेले भाई कुबेर से उसकी कैसी दुश्मनी थीI

“वैश्रव नाम के एक ऋषि ने दो स्त्रियों से विवाह किया, जिनमें एक यक्ष थी और एक राक्षसI यक्ष स्त्री ने कुबेर को जन्म दिया और राक्षस स्त्री ने रावण को जन्म दियाI कुबेर धनी, प्रतिभाशाली और सफल थाI उसने समुद्र के बीच में एक द्वीप पर सोने की नगरी लंका का निर्माण करवाया, और पुष्पक विमान का आविष्कार कियाI रावण कुबेर से ईर्ष्या करने लगा, और देवताओं की पूजा के माध्यम से उसने अनेक शक्तियां हासिल कर लीं, जिसके माध्यम से उसने कुबेर और उसके यक्षों को बाहर भगा दिया, खुद को लंका का राजा घोषित कर लिया और पुष्पक विमान पर भी कब्ज़ा कर लियाI अब बेचारा कुबेर उत्तर में कहीं अलका नगरी में रहता हैI”

सीता इससे प्रभावित नहीं हुयीI “मेरे राम ने अपना राज्य भरत को दे दियाI जबकि आपके रावण ने कुबेर को अपने राज्य से भगा दियाI”

इस बीच, रावण ने अनेक तरह की चालें चलीं ताकि सीता उसकी पत्नी बनकर महल में आ जायेI उसने प्यार भरे शब्दों और गीतों का इस्तेमाल किया और उससे कहा कि वह कितनी प्यारी थी और वह उसको चाहता थाI उसने उसको धमकी दी कि वह उसको मारेगा और खा जायेगाI रावण ने सीता के ऊपर फूलों और उपहारों की वर्षा कीI लेकिन सीता ने उसकी किसी चाल में किसी तरह की दिलचस्पी नहीं दिखायीI उसने जोर देते हुए कहा, “मुझे मेरे पति के पास वापस जाने दोI” लेकिन रावण ने उसकी बात को अनसुना कर दियाI

(मैं रावण से डरना चुन सकती हूँ या राम में विश्वास को चुन सकती हूँ)

महीनों गुजर गए; बारिश आयी और चली गयीI एक रात जब राक्षस स्त्रियाँ रखवाली कर रही थीं सीता को नींद आ गयी और खर्राटे भरने लगी, ऊपर पेड़ से उनके सामने कुछ आकर गिराI वह इतना चमकीला था कि फल नहीं हो सकता थाI उसने उसको उठाया तो पाया कि वह एक अंगूठी थी- राम की अंगूठी! उसने उसको पहचान लिया और ऊपर देखाI ऊपर पेड़ की शाखा के ऊपर एक बन्दर बैठा हुआ थाI

बन्दर कूद कर नीचे आया और उसने उसके सीता के सामने झुकते हुए कहा, “मैं हनुमान हूँ, वायु का पुत्रI मेरी माँ का नाम अंजनी है और मेरे पिता केसरीI मैं किष्किन्धा के राजा सुग्रीव का चाकर हूँ, और उनके आदेश पर मैं आपके पति राम का दूत बनकर आया हूँI”

वह ऐसा बंदर था जो बात करता था! वे उन जाने माने वानरों में थे जिनके बारे में उसने सुन रखा था- जो दक्षिण के जंगलों के बीच में रहते थेI

अपना परिचय देने के बाद हनुमान ने सीता को राम के बारे में समाचार दियाI “कुछ महीनों पहले वर्षा ऋतु से ठीक पहले हमने देखा कि जंगल में दो अजनबी दक्षिण की तरह यात्रा कर रहे थे, न सो रहे थे, न कुछ खा रहे थे, हर पेड़ और पत्थर के पीछे देख रहे थेI पम्पा झील के किनारे एक बूढी आदिवासी स्त्री, जिसका नाम शबरी था, ने उनको खाने के लिए बेर दिएI वह हर बेर को जूठा कर रही थी और केवल मीठे बेर उनको खाने के लिए दे रही थीI राम ने उनको स्वीकार कर लियाI लेकिन लक्ष्मण ने नहींI”

हनुमान ने आगे कहा, “उत्सुकतावश, मैंने अपना परिचय दियाI उसके बाद, जब मुझे यह समझ में आ गया कि उनसे किसी तरह का खतरा नहीं था तो मैं उनको अपने राजा सुग्रीव से मिलवाने के लिए ले गयाI राम ने हमें यह बताया कि वे अपनी पत्नी सीता की तलाश कर रहे थे जिनका अपहरण रावण ने कर लिया था और दक्षिण की तरफ लेकर गया थाI हमें उस अपहरण के बारे में पता था क्योंकि हम ने यह देखा था कि राम अपने पुष्पक विमान में उड़ कर जा रहा था, उसकी बांहों में एक स्त्री थी जो    कलप रह थीI हम ने राम को वे आभूषण दिखाए जो आपने नीचे गिराए थेI राम ने तब सुग्रीव से कहा की वह वह आपको खोजने में उनकी मदद करेंI सुग्रीव ने मदद करने का भरोसा दिलाया कि वह मदद करेंगे, लेकिन इस शर्त पर कि राम सुग्रीव को उनके भाई बालि को हराने में मदद करेंगे और सुग्रीव को किष्किन्धा का राजा बनायेंगेI

बालि और सुग्रीव किष्किन्धा के पूर्व राजा रिक्षा के जुड़वां पुत्र थेI मरने से पहले रिक्षा ने दोनों भाइयों को यह निर्देश दिया कि वे साम्राज्य के कायदों को मानेंगेI दुर्भाग्य से, बालि सुग्रीव के ऊपर भरोसा नहीं करता था और थोड़ी सी गलतफहमी के बाद बालि ने सुग्रीव को किष्किन्धा से बाहर निकाल दियाI राज्य को वापस पाने का एक ही तरीका था कि बालि का वध किया जाएI सुग्रीव ने राम से कहा, “मैं अपने भाई को द्वंद्व युद्ध के लिए ललकारूंगा, और जब हमारे बीच द्वंद्व चल रहा होगा तो आप झाड़ी के पीछे से छिपकर बाण चलाकर बालि को मार गिराएंगेI” राम मान गएI उन्होंने सुग्रीव को यह सुझाव दिया कि वह अपने गले में एक माला डाल ले ताकि वे उसको पहचान सकेंI कारण यह था कि दोनों एक जैसी लगती थींI इसलिए, अपनी गर्दन में माला डालकर सुग्रीव ने बालि को द्वंद्व के लिए चुनौती दी, और जब दोनों के बीच लड़ाई चल रही थी तो राम ने बाण चलाया जिसे बालि मारा गया, उसके सुग्रीव वानरों का राजा बन गयाI”

बालि को पीछे से बाण चलाकर तब मारना जब वह सुग्रीव से लड़ाई कर रहा था- क्या यह धोखा नहीं हुआ, सीता ने सोचाI

हनुमान ने आगे कहा, “यह सुग्रीव की लड़ाई थी, न कि राम कीI बालि ने ताकत का इस्तेमाल करके सुग्रीव को बाहर कर दियाI सुग्रीव चालाकी के द्वारा ही अपने ताकतवर भाई को हरा सकता थाI राम बस उसके माध्यम थे, वह सुग्रीव के निर्देशों का पालन का रहे थेI इसके अलावा, अगर राम ने बालि के ऊपर सामने से हमला किया होता तो वानरों ने उनको ही अपना राजा बना लिया होता न कि सुग्रीव कोI

“राजा बनने के बाद”, हनुमान ने कहा, “सुग्रीव ने अपना वादा पूरा करने की दिशा में सोचाI उन्होंने मुझे दक्षिण में जाकर आपकी खोज करने के लिए कहाI जिसका मतलब था बहुत सारे पहाड़ों और नदियों एवं जंगलों को पार करना- और आखिर में एक बहुत बड़ा समुद्र पार करना, जिसमें राक्षस भरे हुए थेI यह आसान नहीं था, लेकिन मैं हाजिर हो गया, आपको आपके पति के पास वापस ले जाने के लिएI क्योंकि मैं कोई सामान्य वानर नहीं हूँ; मैं समुद्र को छलांग मार कर पार कर सकता हूँI इसलिए आप मेरी पीठ पर बैठ जाइए मैं आपको राम के पास वापस लेकर जाऊँगाI”

सीता ने जवाब दिया, “बहुत बहुत धन्यवाद हनुमान, आपने मदद के लिए कहा यह बड़ी बात हैI लेकिन मैं यह चाहती हूँ कि मेरे पति समुद्र को पार करें, रावण को मारें और मुझे खुद आजाद करें, इस तरह से अपने परिवार की इज्जत को वापस दिलाएंI राम एक राजकुमार हैं और राजकुमारों के लिए राजकीय प्रतिष्ठा का बहुत महत्व होता है, खासकर सूर्यवंशियों के लिएI”

यह सीता का तीसरा चयन था

इंसानों का ढंग भी अजीब होता है, हनुमान ने सोचा, लेकिन उसने सीता के इस चयन का सम्मान कियाI “कृपया मुझे अपना कुछ दें जो मैं आपके पति को दिखा सकूँ, जिससे कि उनको इस बात का भरोसा हो जाए कि मैंने सच में आपको खोज लिया है”, हनुमान ने आग्रह कियाI सीता के पास एकमात्र आभूषण बचा हुआ था- उनके जूड़े में लगाया जाने वाला आभूषण, जिसको संस्कृत में चूडामणि कहते हैंI

फिर हनुमान ने कहा, “मैं बहुत दूर चलकर आया हूँ, इससे बहुत भूख लग गयी हैI क्या मैं कुछ खाने के लिए ले सकता हूँ?”

सीता ने जवाब दिया, “यह वाटिका फलों से लदी हुयी है, जो मन है खाओI”

हनुमान एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर कूदने लगे, खाने लगे और आनंद उठाने लगेI जब उनका पेट भर गया तो वे उन्होंने पेड़ों की शाखाओं को हिलाना शुरू कर दिया, और बगीचे में कोहराम मचा दियाI शोर सुनकर अशोक वाटिका की रक्षक राक्षसिनियाँ उठीं तो उन्होंने वहां एक बन्दर को देखा तो वे घबराकर रक्षकों को बुलाने के लिए भागींI

रक्षक अन्दर आये, और बहुत संघर्ष के बाद वे हनुमान को पकड़ने में सफल रहे(या उन्होंने खुद को पकडे जाने दिया?)I वे हनुमान की पूंछ पकड़ कर खींचते हुए उनको रावण के पास लेकर गएI

रावण ने हनुमान की तरफ देखा और पूछा, “कौन हो तुम?”

हनुमान ने मुस्कुराते हुए घोषणा की, “मैं राम का दूत हूँ और मैं समुद्र पार करके आपसे यह कहने के लिए आया हूँ कि राम अपनी पत्नी को वापस ले जाने के लिए निकल चुके हैं और वे रास्ते में हैंI अब मुझे जाने दीजियेI क्या आपके राज्य में दूतों के साथ इसी तरह का बर्ताव किया जाता है?”

रावण को किसी तरह की हैरानी नहीं हुयीI उसने उस बदमाश बन्दर को सबक सिखाने के बारे में सोचाI

“इसकी पूंछ में आग लगा दो!” उसने आदेश दियाI

हनुमान ऐसे जता रहे थे मानो वे डर गए हों लेकिन जैसे ही रक्षकों ने उनकी पूंछ में आग लगायी, उन्होंने खुद को उनके चंगुल से आजाद कर लिया और हँसते हुए एक छत से दूसरी छत पर कूदने लगे और महल तथा शहर में अपनी पूंछ से आग लगाने लगेI हनुमान ने बस एक स्थान पर आग नहीं लगायी वह अशोक वाटिका थी, जहाँ सीता रह रही थींI

जब लंका जल रही थी तो हनुमान समुद्र के पार कूद गए और जंगल में लौट गए, जहाँ वे राम और सुग्रीव से जा मिलेI उन्होंने उन दोनों को सीता के बारे में बताया और राम को सीता के जूड़े में लगाया जाने वाला आभूषण दिया जो इस बात का सबूत था कि हनुमान ने सीता की खोज कर ली थीI उन्होंने उन लोगों को यह भी बताया कि सीता क्या चाहती थीं- कि वह लंका में तब तक इन्तजार करेंगी जब तक कि राम उनको बचाने के लिए नहीं जाते हैंI

“फिर चलते हैं”, राम ने कहाI

सुग्रीव की मदद से राम ने वानरों और भालुओं की सेना बनायी, और जानवरों की यह विशाल सेना दक्षिण की दिशा में चल पड़ीI दक्षिण तट पर पहुँचने के बाद राम ने अपना धनुष उठाया और समुद्र के देवता वरुण को चेतावनी दी कि अगर उन्होंने समुद्र के बीच से उनको जाने देने के लिए रास्ता नहीं बनाया तो वे उसको नुक्सान पहुंचाएंगेI

वरुण राम के सामने प्रकट हुए और बोले, “अगर आपने ऐसा किया तो अनेक मछलियाँ मर जाएँगीI बेहतर तो यह होगा कि आप समुद्र के ऊपर एक पुल का निर्माण करेंI मछ्लियाँ नीचे से सहारा देकर पत्थरों को ऊपर बहाती रहेंगीI”

“फिर ठीक है, यही करते हैं”, राम ने कहाI हनुमान के निर्देश पर बंदरों ने धरती से पत्थरों को इकठ्ठा करना शुरू कर दियाI उन्होंने पत्थरों को समुद्र में फेंकना शुरू कियाI मछलियों ने उन पत्थरों को पानी के ऊपर बनाए रखाI साथ मिलकर, वे कुछ ऐसा कर रहे थे जो पहले किसी ने भी नहीं किया था- लंका के लिए पुल बनानाI

 
      

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