कल इन्डियन एक्सप्रेस में एक छोटी सी खबर ने सबका ध्यान खींचा कि 20 मई को पत्रकारिता के प्रतिष्ठित संस्थान आईआईएमसी में पत्रकारिता के मौजूदा हालात पर दिन भर के सेमिनार का आयोजन किया जायेगा, जिसकी शुरुआत ढाई घंटे के यज्ञ से होगी. पत्रकारिता पर पीएचडी कर चुके, वहां के पूर्व छात्र रह चुके पत्रकार अरविन्द दास ने इस पूरे घटनाक्रम पर लिखा है. देखिये- मॉडरेटर
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इंडियन एक्सप्रेस (17/5) में ‘Yagna Journalism’ शीर्षक से एक छोटी सी ख़बर छपी कि आईआईएमसी में 20 मई को पत्रकारिता के मौजूदा हालात पर पूरे दिन एक सेमिनार का आयोजना होगा. शुरुआत ढाई घंटे के यज्ञ से होगी! इस सेमिनार का विषय दिया गया है- वर्तमान परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रीय पत्रकारिता और उद्घाटन सत्र में पांचजन्य (राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ का मुखपत्र) के संपादक हितेश शंकर की उपस्थिति दर्ज है.
भले ही बेनडिक्ट एंडरसन ने राष्ट्र की अवधारणा को कल्पना में साकार (Imagined Community) बताया और इसके निर्माण में मीडिया की भूमिका को रेखांकित किया है, मोदी सरकार के आने के बाद मौजूदा समय में राष्ट्र, राष्ट्रवाद और राजद्रोह की अवधारणा सत्ता के एजेंडे से तय होने लगी है और उसमें मीडिया, ख़ास कर न्यूज चैनलों की भूमिका एक पिछल्लगू से ज्यादा नहीं दिखती. ऐसे में राष्ट्रीय पत्रकारिता की अवधारणा ही संदेह के घेरे में है.
बहरहाल, एक पुराने छात्र के नाते इस सेमिनार के आयोजन के सिलसिले में मैंने संस्थान के महानिदेशक केजी सुरेश ( वे लंबे समय तक विवेकानंद फांउडेशन से जुड़े रहे) और मयंक अग्रवाल (एडीजी) के ऑफिस में फोन किया. दोनों ऑफिस में मौजूद नहीं थे, हालांकि उनके सचिवों (पीएस) ने यज्ञ को लेकर अपनी अनभिज्ञता जाहिर की.
फिर मैंने पोस्टर पर (मीडिया स्कैन की देख-रेख में यह आयोजन किया जा रहा है) दिए मोबाइल नंबर पर फोन लगाया. मीडिया स्कैन के एक सज्जन वसंतने फोन उठाया और कहा कि इंडियन एक्सप्रेस में आई यज्ञ की ख़बर गलत है. फिर मुझसे पूछा कि किसी का QUOTE है क्या? मैंने कहा नहीं. उन्होंने कहा कि ढाई घंटे हवन की कोई बात नहीं. आगे उन्होंने जोड़ा कि हवन पूरे दिन भी हो सकता है और दस मिनट भी. उन्होंने यह भी कहा कि डीजी (सुरेश) के परमिशन के बाद ही यज्ञ होगा और अभी यह TENTATIVE है. मैंने फिर एक परिचित प्रोफेसर को फोन लगाया. वो तो नहीं पर एक अन्य प्रोफेसर से बात हुई जिनकी संवेदना वाम राजनीति से जुड़ी है. उन्होंने भी यज्ञ के बारे में कहा कि ‘मुझे कोई आइडिया नहीं है.’
जाहिर है, इस मुद्दे पर संस्थान ने चुप्पी साध रखी है. जो संघ-बीजेपी के साथ जो जुड़े हैं उनका कहना है- यज्ञ परंपरागत कर्म है और किसी को कोई ऐतराज नहीं होना चाहिए. लेकिन सवाल है कि क्या भारत सरकार के किसी शिक्षा संस्थान का काम हवन करवाना है, वैदिक कर्मकांडों को बढ़ावा देना है जिसका वैज्ञानिक सोच और आधुनिक संचार के सिद्धांतो, पत्रकारिता के कर्म से दूर-दूर तक नाता नहीं है. यदि भारतीय जनसंचार संस्थान को यही सब करना है तो फिर न्यू मीडिया और डेवलपमेंट कम्यूनिकेशन जैसे कोर्स पढ़ने-पढ़ाने का ढोंग क्यों?
वैसे यहां इस बात का उल्लेख प्रासंगिक है कि ख़ुद प्रधानमंत्री मोदी हिंदूओं के देवता गणेश को Cosmestic Surgery का और महाभारत के पात्र कर्ण को Reproducticve Genetics का सफल उदाहरण बता चुके हैं. एम एस यूनिवर्सिटी, बड़ौदा अपने ऑफिसियल कैलेंडर में प्राचीन महात्माओं को न्यूक्लियर तकनीक से लेकर रॉकेट और हवाई जहाज का आविष्कारक बता चुकी है.
मेरी समझ से 20 मई को हवन के साथ-साथ आईआईएमसी का तर्पण भी कर देना चाहिए. और फिर ‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्यूनिकेशन’ की जगह ‘पांचजन्य स्कूल ऑफ मास कम्यूनिकेशन’ शुरू कर देना चाहिए. संचार को हिंदू संस्कृति के रूप में (Communication as Hindu Culture), पढ़ने में फिरउन्हें आसानी होगी. अभी तक तो हम संचार को एक ऐसी सांकेतिक प्रक्रिया के रूप में परखते आए हैं जहाँ यथार्थ का उत्पादन होता है, इस पांचजन्य स्कूल के बाद नारदीय भक्ति भाव से हम ऐसे यर्थाथ से रू-बरू होंगे जहाँ सिर्फ अच्छे दिन दिखेंगे!
