हिन्दुस्तान और पाकिस्तान में दुश्मनी बढती जा रही है. दोस्ती की गुंजाइश कम होती जा रही है. जगरनॉट से प्रकाशित हुसैन हक्कानी की किताब ‘भारत vs पाकिस्तान: हम क्यों दोस्त नहीं हो सकते’ में यही बताया गया है. हुसैन हक्कानी पाकिस्तान के चार प्रधानमंत्रियों के सलाहकार रह चुके हैं इसलिए उनकी राय, उनके विश्लेषण का अपना मतलब है.
इस किताब में उन्होंने आरम्भ में यह बताया है कि विभाजन के बाद पाकिस्तान के संस्थापक जिन्ना यह चाहते थे कि हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बीच करीबी रिश्ते रहें. उनके बीच उसी तरह का आपसी तालमेल रहे जिस तरह का तालमेल अमेरिका और कनाडा में है. साझा सेनाएं हों, खुली सीमायें हों और मुक्त व्यापार हो. वे यह नहीं चाहते थे कि दोनों देश आपस में दुश्मन की तरह रहें.
इसी तरह से महात्मा गांधी भी यह मानते थे कि भारत और पाकिस्तान का विभाजन दो भाइयों में आपसी बंटवारे की तरह था और समय के साथ अलगाव के घाव भर जायेंगे और दोनों देश एक हो जायेंगे. विभाजन के 70 साल बाद भी दोनों के बीच सम्बन्ध ठीक होने की उम्मीदें अभी भी कायम हैं लेकिन जमीनी हालात बहुत बदल चुके हैं.
हुसैन हक्कानी ने अपनी इस किताब में विस्तार से यह दिखाया है कि वे क्या कारण हैं जिनकी बिना पर यह कहा जा सकता है कि दोनों कभी एक नहीं हो सकते या दोस्त नहीं हो सकते? एक तो कश्मीर है, दूसरे सीमापार आतंकवाद है और तीसरे परमाणु बम. इसके अलावा वैश्विक हालात भी ऐसे हैं जो इन दोनों देशों को आपसी शीतयुद्ध में अगतार उलझाए रखता है. गाहे-बगाहे दोस्ताना मुलाकातें होती रहती हैं लेकिन मुल्कातों के ख़त्म होते ही दुश्मनी के हमले शुरू हो जाते हैं. इसीलिए इस बात की ऐतिहासिक जरूरत होने के बावजूद कि दोनों देश एक हो जाएँ दोनों को एक करने वाली कोशिशें कमजोर पड़ने लगती हैं. इसी कारण जब जब दोस्ती की पुरजोर पहलें की गई तब तब किसी न किसी कारण से उन कोशिशों में पलीता लग गया.
बहुत अच्छा विश्लेषण किया है हुसैन हक्कानी साहब ने दोनों देशों की दुश्मनी का और उनके कभी ख़त्म न हो सकने वाले कारणों का. अंत में लेखक ने फहमीदा रियाज़ की वह नज़्म भी उद्दृत की है- तुम बिलकुल हम जैसे निकले…
बहरहाल, कोशिशें जारी हैं और उनके लिए बस यही कहा जा सकता है- इंशाअल्लाह!
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