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वक़्त तय करेगा कि बसने से पहले और कितनी बार उजड़ना है उसे

आज पहली बार स्मिता सिन्हा की कविताएँ जानकी पुल पर. स्मिता जी की कविताएँ पत्र पत्रिकाओं में नियमित रूप से छपती रहती हैं. उनकी कविताओं में पर्सनल टच है जो पढ़ते हुए अपने निजी जैसा लगने लगता है. आज उनकी कविताएँ- मॉडरेटर
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वक़्त तय करेगा
कि बसने से पहले
और कितनी बार उजड़ना है उसे
और कितनी बार उतरना है उसे
उस गहरी अंधेरी खाई में
जहां रोज़ उतरते हैं
सूरज , चाँद , सितारे
और कितनी बार उगना है उसे
उस पहाड़ की पीठ पर
जिसपर फिसलती सी चली जाती है
मुट्ठी भर पीली चटख धूप
उचाट सी छाँव की परत जमने से पहले
गहरी उदासी के बीच
चुपचाप गुजरता है उसका वक़्त
और तब भी
एक बारीक सी मुस्कान
चिपकी रहती है उसके चेहरे पर
जिसमें शेष रह जाते हैं
कुछ चमक
कुछ अकुलाहट
और वही बेचैन सा एक सवाल
बसंत आने में लगेंगे
और कितने साल…….
(वक़्त ठिठका सा खड़ा रहता है वहीं……मूक , मौन )
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रात की पैरहन में लिपटा चाँद
जब सोता है होकर बेसुध
मैं झक्क सफ़ेद रौशनी में
नहाये दिन में ढल जाना चाहती हूँ
चाहती हूँ कि बन जाये
ये गुलाबी देह
बेख्याली में बहती नदी
और तुम चुपचाप सुनो
उसके उतरते चढ़ते आलापों को
पर नहीं
तुम्हारी चुप्पी मारती है मुझे
अटकती है मेरी सांसो में
जैसे सदियों से अटकी पड़ी हो
एक आह कंठ में फूटने से पहले
आह , जो भेदना चाहती हो सारे रहस्य
आह , जो बजना चाहती हो स्वरलहरियों सी
और पहुँचना चाहती हो सौ सौ आसमानों के पार
आह , जो जप तप से करना चाहती हो खुद को अभिमंत्रित
और बनना चाहती हो तुम्हारी कथा की एक किरदार……..
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देह में चुभती
स्मृतियों को
खरोंच कर निकालना
उतना ही यातनामय होता है
जितना कि रोकना
एक अंधेरी थकान को
घर के दरवाजे पर ही
मैं लौटा लौटा देती हूँ
धूल धुआँ कोलाहल
और आँधियों का वेग
कि सम्भव नहीं
इनकी मुक्ति मेरे पास
अपने सिरहाने रखती हूँ मैं
बस मुट्ठीभर छाँव
बारिश की बौछारें
और टेसू के फूल
कि चुभता है मुझे
एक शांत नदी में
किसी पत्थर को फेंकना……..
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मौन गीत
उस विहंगम काली रात में
जब सन्नाटे गा रहे थे मौन गीत
वे शिल्पी सिर झुकाए बैठे थे
कर रहे थे आकलन
खोये पाये का
कुछ चिंताग्रस्त से
ओह ! ये कैसे हो गया ?
सृष्टि की सबसे सुन्दर रचना
इतनी कलुषित,इतनी मलिन
वे कर रहे थे गणना
उस नक्षत्रमंडल का
जिसके दूषित काल में
इनकी परिकल्पना की गयी
कोस रहे थे उस मातृगर्भ को
जिसकी मिट्टी से इन्हें गढ़ा गया
और एक एक कर वे तोड़ने लगे
अपने उन अप्रतिम कृतियों को
कि वे प्रश्नचिह्न बन चुकी हैं अब
 इनके अस्तित्व पर
कि उनका ख़त्म होना ही
बचा सकता है अब इनका वजूद
वे बन चुकी है विद्रोही
बदजुबान हो चुकी हैं वो
आ खड़ी होती हैं अक्सर
अपने धारदार तर्कों के साथ
और
दूर कोहरे में लिपटी
वे अनबुझ आकृतियाँ
जिन्हें कभी रचा गया था
पुरुषों के लिये
खड़ी थीं आज निर्लिप्त ,मौन
देख रही थीं कहीं दूर
ज़िंदगी के धुंध के परे
उस चमकीले रास्ते को
जो कर रही थी आलिंगन
क्षितिज पर उग रहे
एक नये सूरज को……..
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तटस्थता
उस दिन
उस एक दिन
जब एक सभ्यता का विनाश जारी था
घिरा हुआ था मैं भी वहीं कहीँ
उन भग्नावशेषों के मलबों में
बेबस ,बदहवास शक्ल
और चेहरे पर बिखरे खून के साथ
चुप होने से पहले
मैंने आवाज़ लगाई थी तुम्हें
चिल्लाया था अपने पूरे दम से
पर तुम निर्लिप्त बने रहे
पूरे आवेग से टटोली थी मैंने
ज़िंदगी को उस घुप्प अँधेरे में भी
बदलना चाहा था परिदृश्य
पर संवेदनाएँ गुम होती चली गयीं
मैं चाहता था निकल भागूं
दूर कहीं अज्ञात में
उस चमकीली रौशनी के पीछे
बाँध डालूं अपने सारे मासूम सपनों को
उस एक सम्भावना की डोर से
बचा पाऊँ अपने बचपन को
बिखरने से पहले
पर नहीं
मैं कतरा कतरा रिसता रहा
अपने जख़्मों में
और मेरी नज़रों के सामने
छूटती गयी ज़िंदगी
पता है तुम्हें
इतनी तटस्थता यूँ ही नहीं आती
कि इतना आसान भी नहीं होता
जिंदा आँखों को कब्र बनते देखना
बावजूद इसके
यकीन मानो
मैं बचा ले जाऊँगा
विश्व इतिहास कि कुछ अंतिम धरोहरें
कि मैंने उठा रखा है
अपने कंधों पर उम्मीदों का ज़खिरा………..
(उफ़्फ़ !! ओमरान दकनिश ,तुम्हारे मौन में भी कितना शोर है ।)
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छूटना एक शहर का
छूटना
रिक्त होना होता है
शून्य तक
उन धुंधलाती स्मृतियों में……..
छूटना
सहेजना होता है
पिछली सारी
चमकती सुबहों को
ढलती शामों को……….
छूटना
इकठ्ठा करना होता है
सारे दस्तावेज़
उन तमाम बिखरे
विस्मृत अवशेषों में……….
छूटना
गिनना होता है
पुराने रास्तों पर
चल चुके
सारे क़दमों को………
छूटना
बढ़ना होता है
फ़िर से
अपनी मंज़िल की ओर………
छूटना
शुरु करना होता है
एक नया सफ़र
नये सपनों के साथ…………
छूटना
छोड़ना होता है
एक शहर को
या कि
तुम्हारा छूट जाना
वहीं उसी शहर में……….
 
      

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8 comments

  1. स्मिता को बधाई
    उसके सार्थक कविताओं के लिए, उसके शब्दों के विस्तार के लिए
    सुन्दर रचनाएँ

  2. बहुत बढ़िया सुदंर और मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति …बहुत बहुत शुभकामनाएँ युवा व होनहार कवियित्री को….

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