आज अरुण चन्द्र रॉय की कविताएँ. अरुण चन्द्र रॉय अनुवादक हैं, प्रकाशक हैं लेकिन मूलतः कवि हृदय हैं. अपने समकाल पर कविताओं के माध्यम से मारक टिप्पणियां करते रहते हैं. ‘खिड़की पर समय’ नाम से इनका एक कविता संग्रह प्रकाशित हो चुका. कुछ कविताएँ प्रस्तुत हैं- मॉडरेटर
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हिंदुस्तान की राजधानी
हुज़ूर
कहाँ है हिन्दुस्तान की राजधानी !
क्या कहा दिल्ली !
वही दिल्ली जहाँ देश भर से बिजली काट काट कर
पहुचाई जाती है रौशनी
वही दिल्ली न
जहाँ तरह तरह के भवन हैं
पूर्णतः वातानुकूलित
करने को हिंदुस्तान और हिन्दुस्तानियों की सेवा
हाँ उन्ही भवनो की खिड़कियों पर लगे हैं न शीशे
जहाँ हिन्दुस्तान की आवाज़ न पहुचती है
हुज़ूर यह नहीं हो सकती हिन्दुस्तान की राजधानी
राजपथ पर चलते हुए जहाँ
हीनता से ग्रस्त हो जाता है हिंदुस्तान
लोहे के बड़े बड़े सलाखों से बने दरवाजों के उस ओर राष्ट्रपति
अपने राष्ट्रपति नहीं लगते
सुना है राजधानी में है कोई संसद
जिसकी भव्यता से हमारी झोपड़ी की गरीबी और गहरी हो जाती है
ऐसी भव्य नहीं हो सकती हिन्दुस्तान की राजधानी
यह वही दिल्ली हैं न
जहाँ प्रधानमंत्री अक्सर गुजरते हैं
और खाली कर दी जाती है सड़के
ठेल ठाल कर उनके मार्ग से किनारे कर दिए जाते हैं हम
कितना दूर है मेरा गाँव , देहात , क़स्बा
क्या इतनी दूर हो सकता है हिंदुस्तान की राजधानी !
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कच्ची सड़क
कच्ची सड़को को छोड़
जब चढ़ता हूँ
पक्की सड़क पर
पीछे छूट जाती है
मेरी पहचान
मेरी भाषा
मेरा स्वाभिमान !
कच्ची सड़क में बसी
मिटटी की गंध से
परिचय है वर्षो का
कंक्रीट की गंध
बासी लगती है
और अपरिचित भी
अपरिचितों के देश में
व्यर्थ मेरा श्रम
व्यर्थ मेरा उद्देश्य
लौट लौट आता हूँ मैं हर बार
पीठ पर लिए चाबुक के निशान
मनाने ईद , तीज , त्यौहार
कहाँ मैं स्वतंत्र
मैं हूँ अब भी गुलाम
जो मुझे छोड़नी पड़ती हैं
कच्ची सड़क !
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औसत बारिश
मेरे गाँव में
बारिश नहीं हुई
जब रोपनी हो रही थी
धान की
फिर आया
भीषण बाढ़
मेरे गाँव में
और बह गया
रहा-सहा धान
तब भी बारिश नहीं हुई
जब फूटना था
बाढ़ से बचे हुए धानों को
जैसे तैसे धान फूटे
और कटनी के समय
बादल बरसा खूब
मेरे गाँव में
इण्डिया गेट पर तब
नहाये खूब बच्चे
भीगे रूमानी मौसम में खूब जोड़े
अखबारों ने छापे
हरे भरे, साफ़ सुथरे वृक्षों के चित्र
जब माथे पर हाथ धरे
रो रहे थे मेरे गाँव के किसान
मौसम विभाग ने बुलाकर प्रेस कांफ्रेंस कहा
इस साल भी हुई औसत बारिश
मेरा खलिहान रहा खाली
जिसका जिक्र नहीं होगा
किसी रिपोर्ट में !
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बंद
वे चाहते हैं
होठ सिले रहें
और बंद हो जाये
स्वर
और बंद हो जाये
स्वर
ताकि न लगे कोई
नारा कभी
शासन के विरुद्ध
नारा कभी
शासन के विरुद्ध
चाहते हैं वे
उँगलियाँ
न आयें कभी साथ
बनाने को मुट्ठी
न आयें कभी साथ
बनाने को मुट्ठी
जो उठे प्रतिरोध में
ठिठके रहे
कदम
एक ताल में
न उठे कभी
सदनों की ओर
वे चाहते हैं
छीन लेना
हक़ जीने का
विरोध जताने का।
हक़ जीने का
विरोध जताने का।
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देश: आपके लिए – हमारे लिए
१.
आपके लिए
बनी सड़क
आई बिजली
बने पब्लिक स्कूल
नए नए कालेज
हमारे लिए
हुए हर साल
वादे
२.
आपके लिए
बने नए शहर
हुए निवेश
आयात हुई प्रौद्योगिकी
हमारे लिए
हुए हर साल
नए नए वादे
३.
आपके लिए
सहज हुई नीतियाँ
आसान हुई नीलामियाँ
सरकार बनी गारंटर
हमारे लिए
हुए हर साल
कुछ और नए वादे