Home / Featured / गर्मी के मौसम में बिजली के बिना

गर्मी के मौसम में बिजली के बिना

जब एक प्रवासी गर्मी के मौसम में बिहार अपने गाँव जाता है तो क्या हाल होता है- मुकुल कुमारी अमलास का यह वृत्तान्त यही बताता है. दिलचस्प है- मॉडरेटर
==================
दिन के चार बजे हैं और अब बिजली महारानी के दर्शन हुये हैं । जेठ की पूरी दोपहरी पसीने से लथपथ इधर से उधर करते बिता है । हाथ में बेनी (हथ पंखा) डोलाते हुये लग रहा है मैं यहाँ आकर 19 वीं शताब्दी में पहुँच गयी हूँ । पतिदेव  कह रहे हैं गर्मी में यहाँ रहना कालेपानी की सजा से कम नहीं है ।बहुत सिद्दत से महसूस कर रही हूँ कि बिहार बिल्कुल नहीं बदला । आज भी ग्रामीण क्षेत्र में बिजली की वही हालात है जो आज से चौंतीस साल पहले थी जब मैं यहाँ शादी करके आई थी। केन्द्रीय सरकार की नौकरी ने हमें लगभग पच्चीस-तीस वर्षों से अपने राज्य से बाहर ही रखा । पिछले पंद्रह वर्षों से तो महाराष्ट्र विशेष कर नागपुर शहर में ही रहना हुआ अतः स्वाभाविक रूप से मन इन दोनों राज्यों के बीच तुलना करने लगता है । गाँव में आना-जाना तो लगा रहा पर अधिकतर छठ के समय या फिर जाड़े में, कई वर्षों बाद इस बार गर्मी की छुट्टी में हमने यह प्रोग्राम बनाया कि कुछ दिन गाँव में समय बिताया जाय । गाँव के घर में भी अब तो हर सुविधा मौजूद है और कानों में बार-बार नितीश जी का वह ऐलान गूँज रहा था कि मेरी सरकार बनी तो चौबीस घंटे बिजली मिलेगी, नहीं मिली तो फिर कभी आगे मुझे वोट मत देना । सोचा था आम और लिची खायेंगे और गाँव के साग-भाजी का आंनद लेंगे । नितीश जी के राज्य में बिजली तो मिल ही जायेगी । फ्रिज और आर ओ का पानी घर में उपलब्घ है ही फिर दिक्कत किस चीज की ! लेकिन असलियत का पता तो यहाँ आकर लगा । छोटे देवर जो गाँव में ही रहते हैं, शाम होते ही छत पर पानी डाल उसे ठंड़ा कर उस पर शीतलपाटी बिछा चादर-तकिया के साथ मच्छरदानी तक का इंतजाम कर दिया । शाम को अच्छी हवा चल रही थी अतः  अच्छा लग रहा था । सोचा बिजली नहीं रहने से भी काम चल जायेगा ।लेकिन कुछ देर बाद हवा बंद हो गई और बिजली तो नदारत थी ही । फिर तो पूरी रात  बिजली और मेरे बीच जो लुकाछिपी का खेल चलता रहा कि कुछ मत पूछो । एक-दो घण्टे बाद बिजली आती थी तो मैं नीचे रूम में आ जाती जैसे ही आँख लगती बिजली चली जाती, मैं फिर छत पे आ जाती कुछ समय तक फिर से सोने का प्रयास चलता । हाथ से पंखा झेलती पसीना सुखाने की कोशिश करती रहती और गर्मी में यहाँ आने के अपने ही निर्णय पर खुद को कोसती रहती, तब तक फिर बिजली आ जाती और मैं तकिया उठा फिर नीचे को भागती । पूरी रात यूँ ही ऊपर-नीचे करने में बिता । भोर में गर्मी कुछ कम हुई  तो मेरी आँखें नींद से इतनी बोझिल थी कि मैं छत पे आख़िर सो ही गई पर थोड़ी देर में पौ-फट गई और मुझे उठाना ही पड़ा आखिर ससुराल में देर तक छत पर सोये रहना शोभा भी तो नहीं देता । सुबह उठते ही पता लगाने की कोशिश की आख़िर बिहार में  बिजली विभाग में इतनी अराजकता क्यों है । नीतीश जी के दावे का पोल तो मेरे सामने खुल ही चुका था । मेरे देवर ने बताया पुराने घरों में मीटर नहीं है जो नये घर बन रहे हैं सिर्फ उन्हीं घरों में ही मीटर लगवाना अनिवार्य है । ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार ने चौदह घंटे बिजली देने की बात कही है ।सभी घरों में बिजली का बिल फ़िक्स है ।ग्रामिण क्षेत्र में यह रकम 325 रुपये हैं चाहे आप एक ही बल्ब जलाएं या फिर घर में कितना भी ए सी या हीटर चलाएं । मैं आश्चर्य में पर गई और मुझे समझ में आया कि क्यों यहाँ लोग बिजली आते ही घर के सारे बल्ब और पंखा चला देते हैं , बिजली के बिल में तो कोई फ़र्क पड़ने वाला नहीं है ।स्ट्रीट लाइट भी दिन भर जलाता रहता है । यह बिजली की बरबादी है इसकी समझ लोगों में है ही नहीं और सरकार की नीति भी इस बरबादी को रोकने की जगह उसे पोषित करने वाली ही है । इस युग में कोई सरकार इन बातों से कैसे निर्लिप्त रह सकती है समझ में नहीं आता । नागपुर में बिजली बहुत महँगी है पर उचित सेवा तो मिलती है । लोड शेडिंग की ख़बर समाचार पत्रों से पहले ही मालूम हो जाती है, समय और अवधि निश्चित होती है, इसके अलावे अगर बिजली गई तो हम फोन से शिकायत दर्ज़ करवाते हैं, एक निश्चित शिकायत नंबर दिया जाता है और एक-आध घंटे के अंदर शिकायत का निवारण कर दिया जाता है । आख़िर ऐसी व्यवस्था यहाँ क्यों नहीं हो सकती है ! आप कह सकते हैं कि मैं बिहार के ग्रामीण क्षेत्र की तुलना महाराष्ट्र के एक बड़े शहर से कर रही हूँ , यह उचित नहीं । लेकिन मैं पूछती हूँ बिहार में ऐसी व्यवस्था क्यों नहीं हो सकती ? आखिर बिजली वितरण की जिम्मेदारी तो बिहार में भी महाराष्ट्र की भाँति निजी क्षेत्र को दे ही दिया गया है और फिर यहाँ तो एक ऐसी सरकार है जो बिजली के मुद्दे पर चुनाव जीत कर आई है । नीतीश जी का वादा क्या सिर्फ़ बिहार के कुछ शहरों को बिजली देने भर का था ? क्या यहाँ के ग्रामीण आज भी अभिशप्त  ही रहेंगे, क्या बिजली और पानी यहाँ के  लोगों के लिये आज भी अनिवार्य आवश्यकता नहीं बल्कि  विलासिता ही बनी रहेगी। आख़िर अपने साथ कौन सा सुखद अनुभव मैं लेकर जाऊँ कि कह सकूँ अब बिहार भी बदल रहा है । अभी तो स्थिति यह है कि दिन और रात कटते भर हैं कोई भी मानसिक कार्य करने की स्थिति में हम रहते ही नहीं गर्मी के मौसम में बिजली के बिना ।
                  —मुकुल कुमारी अमलास
 
      

About Prabhat Ranjan

Check Also

      ऐ मेरे रहनुमा: पितृसत्ता के कितने रूप

    युवा लेखिका तसनीम खान की किताब ‘ऐ मेरे रहनुमा’ पर यह टिप्पणी लिखी है …

One comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *