रंजन ऋतुराज ‘दालान’ पर पुराने दिनों के किस्से लिखते हैं. अब उन्होंने गर्मी का यह किस्सा लगा कि अपनी गर्मियों के दिन याद आ गए. वह एक दौर था जो बीत चुका है. उस बीते दौर की बड़ी अच्छी बानगी इस छोटे से लेख में मिलती है- मॉडरेटर
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इस बार गर्मी का कुछ मजा नहीं आ रहा है :गर्मी पड़ती थी हम लोगों के जमाने में! भोरे भोरे छत से नीचे आना, एक हाथ में लपेटाया हुआ भागलपुरी पीला ‘अंटी’ चादर और दूसरे में ‘मसनद’ ! नीचे आते ही, जहाँ जगह मिला ‘लोंघडा’ जाना, इसके लिए ‘सोफा’ मस्त जगह होता था, क्या आलस लगता था, ऐसा जैसे की कोई नशा भी फेल है टाईप ! अभी फिर से एक नींद नहीं मारे कि तब तक घर के बड़े बुजुर्ग का ‘प्रवचन’ / ‘श्लोक’ चालू! कनखिया के उनको देखना और अखबार लेकर सीधे बाथरूम में! सीधे नहा धो के बाहर निकलना! अब गर्मी ऐसा कि नहा के निकले कि कंघी करते वक़्त पसीना है कि पानी, कुछ पता नहीं ! फिर रंजन ऋतुराज पटना के ‘सब्जी बाग़’ वाला टिपिकल कुरता में, बिना बनियान के और पैजामा ऐसा कि पूरा घर बहरा जाए ! फिर बिछावन के नीचे से चुपके से ‘मनोहर कहानियाँ’ / ‘सत्यकथा’ निकाले , तब तक तब बिजली गायब ! अब बरामदे में , बेंत वाली कुर्सी और सामने ‘दही – चिउरा – चीनी’ ! तले …हमरे जैसा दू चार और आइटम आ गया ! दे गप्प …दे गप्प …दे गप्प !
दोपहर को चावल, अरहर की दाल, नेनुआ की सब्जी, आम के टिकोला वाला चटनी खा के …पक्का ज़मीन पर चटाई बिछा के …मसनद लगा के …फोंफ …! दे फोंफ …दे फोंफ …दे फोंफ ! इस हिदायत के साथ कि पापा के शाम लौटने के पहले मुझे जगा दिया जाए.
शाम को नीन्द से उठ के, फिर से एक स्नान! आमिर खान टाईप कॉलर उंचा कर के पियर टी शर्ट, काला जींस और चार्ली सेंट! एक राऊंड कंकडबाग, राजेंद्र नगर, उधर से ही समोसा ( सिंघाड़ा ) वाला चाट खाते हुए, थम्स अप ढरकाते हुए, चार बार अपना बाल पर हाथ फेरते हुए , कनखिया के ‘खिड़की / बालकोनी/ ओसारा ‘ देखते / झाँकते हुए …घर वापस ! शाम को बिजली नहीं ही रहेगा सो आते ही सीधे छत पर ! दे गप्प …दे गप्प ..दे गप्प ! अब लालटेन और मोमबत्ती में कौन पढ़े! अगला सोमवार से पढ़ा जायेगा …फिर छत पर पानी पटाना! दे बाल्टी …दे बाल्टी …दे बाल्टी ! रात में भर कटोरा ‘दूध – रोटी’ खा के …छत पर ….वही मसनद …वही भागलपुरी ‘अंटी’ चादर और एक रेडिओ …”दिल तो है दिल …दिल का ऐतबार क्या कीजिए”
ना कोई अतीत , ना कोई भविष्य …ना कुछ पाना है …ना कुछ खोना है …इसी ख्याल के साथ …फिर से एक बार ..दे फोंफ …दे फोंफ …दे फोंफ …
एक हेवी डायलोग – ” जो पढ़ेगा वो भी शमशान घाट जाएगा , जो नहीं पढ़ेगा वो भी शमशान घाट जाएगा – फिर काहे को पढ़ेगा “
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