वट सावित्री पूजन के अवसर पर डॉ. विनीता परमार का लेख – दिव्या विजय
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भारत की लगभग दो-तिहाई आबादी आज भी गाँवों में निवास करती है जिनका नाता परेशानियों से सदैव रहा है । इन जीवट भारतीयों ने अपने जीवन की राह को सरल बनाने के लिए अपने रोज़मर्रा में त्योहारों को शामिल कर लिया । उत्तर भारत में ज्येष्ठ माह के अमावस्या को तथा दक्षिण के कुछ भागों में ज्येष्ठ पूर्णिमा को वट सावित्री व्रत मनाया जाता है । बरगद के पेड़ का नाम लेते ही मन में गाँव की चौपाल याद आती है जिसके चारों ओर लोग बैठ कर अलगू चाचा और जुम्मन शेख की समस्या सुलझाते थे । वट वृक्ष की छांव में राधा – कृष्ण ने रास रचा तो वनवास के समय यही वृक्ष राम- सीता की शरणस्थली बनी । सुजाता ने बुद्ध को इसी वृक्ष के नीचे खीर खिलायी तो ॠषभदेव ने इस वृक्ष की छाँव में तपस्या की थी ।
मान्यता है कि महाभारत काल में वट के नीचे सावित्री की गोद में सर रख उनके पति सत्यवान सो रहे थे तभी यमराज उनके पति को लेने आये । सावित्री ने यमराज के हाथों से अपने पति को बचा लिया । इसी मान्यता को ध्यान में रखते हुए अपने अखंड सुहाग की कामना के साथ महिलायें वटवृक्ष के नीचे पूजा करती है ।108 बार धागे को बरगद के चारों ओर अपनी साँसों के प्रतीक के रूप में बांधती हैं ।
भारतीय संस्कृति में पर्यावरण संरक्षण की बात बेमानी लगती है क्यूँकि पूजा के बहाने ही पीपल,नीम,केला,महुआ,आंवला आदि की पूजा हम करते आ रहे हैं ।केला के तने को हम काटते हैं और नया पेड़ उगा लेते हैं तो वट वृक्ष अक्षय है अर्थात केला शरीर है तो बरगद आत्मा ,केला हमारा गृहस्थ जीवन बताता है तो बरगद संन्यास । पुराणों के अनुसार बरगद एक ऐसा पेड़ है जिसकी जड़ों में ब्रह्मा ,तने में विष्णु तथा पतियों में शिव का वास बताया गया है ।
समानतया मृत्यु से भय और यम का निवास मानने के कारण इस वृक्ष को गाँव या आबादी से बाहर लगाया जाता है ।वैज्ञानिक दृष्टि से यह वृक्ष 20 घंटे ऑक्सीजन देता ,20-30 मीटर ऊँचा यह वृक्ष अपनी प्ररोह (बरोह) जमीन के ऊपर की जड़ों के कारण प्रकृति की अनुपम सौगात है । इसके जमीन के नीचे की जड़ भू-जलस्तर को ऊपर करती है तो कभी-कभी इसकी जड़ें बोरिंग के लिये परेशानी बन जाती है ।विरोधाभास है कि इस वृक्ष के नीचे घास तक भी नहीं पनप पाता इस कारण विवाह या संतानप्राप्ति के बाद की रस्में इस वृक्ष के नीचे नहीं की जाती है । लेकिन अग्निपुराण के अनुसार यह उत्सर्जन का प्रतीक होता है इस कारण संतान प्राप्ति हेतु पूजा करते हैं । इसे औषधियों में उपयोग किया जाता है इसके दूध का उपयोग चोट ,विवाई ,दांत दर्द ,दस्त ,कमर दर्द आदि में किया जाता है ।
अंग्रेजों ने फाइकस बेंघालेसिस यानि वट वृक्ष को, बनिया वर्ग के द्वारा इस वृक्ष के नीचे की जानेवाली सभाओं के कारण बनियान ट्री कहना शुरू कर दिया । आज भी कुछ वृक्ष उपलब्ध हैं लेकिन हमारी एकजुटता गायब है ,फ्लैट संस्कृति ने वट सावित्री व्रत को वृक्ष पूजा से दूर करते हुए बोनसाई तक सीमित कर दिया है ।आज जरूरत है बरगद की इसके छाँव की आइये हमसब मिलकर अक्षय बनाये वट वृक्षों को ।