आज जैसी जीवन्त, सार्थक अनौपचारिक साहित्यिक गोष्ठी शायद ही पहले कभी हुई हो। ‘सृजन संवाद’ में सबसे पहले तो डॉ. भास्कर राव ने अपनी बदरीनाथ-केदारनाथ की यात्रा के संस्मरण खूब रस लेकर सुनाए और श्रोताओं को दिल खोल कर हँसने का मौका मिला। लोग मुद्दतों बाद इतना हँसे होंगे। इसके पश्चात पटना से आए पत्रकार-उपन्यासकार विकास कुमार झा ने अपने पत्रकार जीवन का एक रोचक संस्मरण सुनाया। फ़िर उन्होंने अपने नए उपन्यास ‘वर्षा वन की रूप कथा’ की रचना की मजेदार पृष्ठभूमि सुनाई। उन्हें अपने दोनों उपन्यासों की कथा घुमक्कड़ी के दौरान मिली। उनके पहले उपन्यास ‘मैक्लुस्कीगंज’ को कथा यू के पुरस्कार प्राप्त हो चुका है। दोनों उपन्यासों में कई पात्र अपने नाम के साथ आते हैं और उनसे आज भी मिला जा सकता है। ‘वर्षा वन की रूप कथा’ दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य के शिमोगा में घटित है लेकिन इसका विस्तार पूरे भारत में है। यह उपन्यास किंग कोबरा रिसर्च सेंटर, मालगुड़ी सीरियल के शूटिंग स्थाल और उसके अभिनेताओं, फ़िल्मी दुनिया, नाटक से जुड़े लोगों और सबसे बढ़ कर वर्षा वन के सरल-सहज जीवन से पाठक को परिचित कराता है। गोष्ठी में सबने डॉ. विजय शर्मा को उनकी नई पुस्तकों, ‘तीसमार खाँ तथा देवदार के तुंग शिखर’ हेतु बधाई दी। गोष्ठी का संचालन डॉ. विजय शर्मा ने किया। डॉ. नेहा तिवारी, अखिलेश्वर, डॉ. चन्द्रावती, अभिषेक मिश्र, डॉ. संध्या सिन्हा, आभा विश्वकर्मा की उपस्थिति से गोष्ठी को बल मिला। इस तरह रविवार का दिन साहित्यिक बातचीत के साथ हँसी-खुशी व्यतीत हुआ। प्रो. सत्य चैतन्य ने फ़ोटो खींच कर गोष्ठी को स्थायित्व प्रदान किया।
११. ०६. २०१७, रविवार