।। 1 ।। अनायास
तुम्हें अलग होना हो तो उस तरह अलग होना
जैसे पका फल पेड़ से अलग होता है
—-अनायास—-
हर सांस में सवेरा उतर सके
हर गिरता हाथ संभल सके
खिलना ऐसे
लिखना ऐसे
शब्द और शून्य में
भाषा और जीवन में
आकृति की कृति में
स्वयं निराकार होते हुए
।। 2 ।। पाण्डुलिपि
अचानक किसी क्षण में मेरा सारा समय ख़त्म हो जाएगा
मैं शब्दों में मर जाऊँगा या खिल आऊँगा?
हो सकता है
इस जीवन को जीने के लिए एक और दिन मिल जाय
या उत्तर कविताओं में नये नाम मिलें
दो अँधेरे
जब रात में अकेले जगता रहता हूँ
सफ़ेद पाण्डुलिपि पढ़ते हुए
।। 3 ।। फूल
मेरी जेब में अब कोई जवाब नहीं बचे
अपने फूलों से प्यार करते हुए
शान्ति से
जो हँसने के दिन होगा वह
अभी और यहीं है
यह देख रहा हूँ :
फूल यूं खिल रहे हैं मानो
मेरे शव पर चढ़ाने हों
।। 4 ।। रचाव
आँख में मन्दिर की शान्ति
अभी उतरी नहीं
गो शब्द न जाने कब
चले गये
—-दाग़दार है पर
मौन
रचाव के रंगों से
घुलता हुआ
सब मिट गया
।। 5 ।। अतिथि
आवाज़ की जगह पर वह भी था वहाँ —
वैसे ही जैसे समुद्र में बूँद। ऐसे ही वह एक बार और
मिल रहा था —- जैसे एक बार सहसा निकल पड़ा
वीणा स्वर फिर उसमें छिप जाता है : क्या
दृश्य को छोड़ दिया गया है? कौन है जो
इस तरह तिरोहन में है
जैसे गरमी में बरफ़ का ढेला
आँख की आग से
धनुष से छूटे तीर से
अब अतीत है जवाब : वह चला गया है
एक अच्छे अतिथि की तरह
।। 6 ।। नाम
अपने पदचिह्न पर नाम लिख रहा हूँ
जब पदचिह्न पर चलेगा कोई
मिट जाएगा नाम
।। 7 ।। उचार
कभी-कभार शब्दों को वह काम कर सकना चाहिए जो रंगबिरंगे फूल करते हैं, लेकिन याद रहे : फूल अप्राप्य हो और शब्द ऐसा हो जो सब उचार सके।
।। 8 ।। स्वप्न में साधु
मैं श्रद्धालु हूँ : मेरी आँख में पृथ्वी घूम रही है। मेरा मुख
आईने में सच देखता है : अपने अंधेरों में
खोये शब्द उचरने लगते हैं लिखने से
अक्षरों को हृदय सींच रहा है : पौ फटते रात
पूर्ण है और चाँद
तिरोहित : छिपा हुआ प्राचीन से
विस्तार लेता है : भीतर
बारिश हो रही है
हर स्वर समुद्र ओर भाग रहा है
हर साँस अपने में स्थापत्य रचते मुझे सोख गयी है
और मेरा माथा टकराया है पोढ़ी भीत से
कौन है वह पार्थिव साधु जो छत पर खड़े
अन्न-से शब्द हवा में छितरा रहा है ?
।। 9 ।। अपने लिए
ऐसा सफ़ेद नहीं जानता
कोई भी
प्रवेश केवल
ह्रदय से
अपने लिए एक बार फिर
परदा गिरा लेता हूँ
।। 10 ।। शब्द में शंख
न समाप्त होने वाली संगीतमय पंक्ति में
सब से सुखी सुन्दरी है
वह ऐसे है जैसे शब्द में शंख बज रहा हो
वह ऐसे है जैसे दृश्य में अदृश्य उजागर हो
वह तिलिस्म रचना का है
वह साँस मृत्यु की है
आनन्दी सब अपना लेती है
वह कल्पना का वरदान है
एक अनाम फूल मेरे लिए
जिसे देखते ही
स्वर्गीय हो जाऊँगा
मैं
मेरा डाक-पता :
Piyush Daiya
C/O Yogita Shukla
GF–1, Plot No. 324,
Sector–4, Vaishali
Ghaziabad– 201010
मोबाइल : 9212395660
अनायास, पाण्डुलिपि, रचाव, अतिथि, शब्द में शंख आदि सभी कविताएं बहुत बढ़िया लगीं, वैसे सभी कविताएं अच्छी हैं।