राजेश प्रधान मूलतः पटना के हैं. अमेरिका के प्रतिष्ठित संस्थान एमआईटी से राजनीति शास्त्र में पीएचडी करने के साथ साथ उन्होंने वहीं से आर्किटेक्चर की पढ़ाई की और जाने माने वास्तुकार हैं. राजनीतिशास्त्र पर किताब भी लिख चुके हैं. वे कविताएँ भी लिखते हैं. कविताओं के शब्दों, भावों में प्रयोग करते हुए. पहले उनकी कविताएँ जानकी पुल पर आ चुकी हैं. आज उनकी एक नई कविता- मॉडरेटर
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बेवक़्त राजनीति
हकीकत से कभी दूर चले जाने में बड़ा फ़ायदा है
सामाजिक “सत्य” से खिलवाड़ का मज़ा ही कुछ और है
Hobbes और Rawls भी उसी पथ के राही हैं
हम उसी उम्मीद में आँखें लगाए बैठे हैं
राजनीति में शायद हम भी प्रचंड तूफ़ान मचा देंगे
पहले, समय के मनमाने बंटवारे की लकीर मिटा देंगे
बेवक़्त राजनीति में वक़्त का फिर क्या होगा?
कल के यश गौरव का दावेदार नहीं कोई होगा
आज के हालात का विश्लेषक नहीं कोई होगा
कल के वादों का बिक्रीकार नहीं कोई होगा
बच जायेगा पार्टियों को यक़ीन इतना दिलाना
की वो हैं हूबहू अवाम की तरह
अवाम लगते हैं हूबहू उनकी तरह
अवाम की झलक आईने में लिए
समय की अखंड चादर बैठक में लिए
बेवक़्त पढ़ेंगे शेर अच्छे दिन के लिए
ख़्वाबी पुलाव बाँट देंगे इंकलाब के लिए
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