Home / Featured / अरुंधति रॉय के नए उपन्यास में सब कुछ है और कुछ भी नहीं

अरुंधति रॉय के नए उपन्यास में सब कुछ है और कुछ भी नहीं

 

अरुंधति रॉय के बहुचर्चित उपन्यास ‘द मिनिस्ट्री ऑफ़ अटमोस्ट हैप्पीनेस’ पर यशवंत कोठारी की टिप्पणी- मॉडरेटर

=======================================================

अरुंधती रॉय  का दूसरा उपन्यास –मिनिस्ट्री ऑफ़ अटमोस्ट हैप्पीनेस(चरम प्रसन्नता का मंत्रालय ) आया है. इस से पहले वह ‘मामूली चीजों का देवता’ लिख कर बुकर पुरस्कार जीत चुकी हैं- गॉड ऑफ़ स्माल थिंग्स अंग्रेजी में 338 पन्नों का है लेकिन हिंदी में यह मात्र 296 पन्नों का बना. अंग्रेजी वाला मोटे फॉण्ट में छितराए अक्षरों में था. व्यावसायिक मज़बूरी.

ताज़ा उपन्यास के बारे में गार्जियन ने अरुंधती  रॉय का एक साक्षात्कार और उपन्यास के २ पाठ छपे हैं, साथ  में कव्वे का एक चित्र भी. देखकर मुझे निर्मल वर्मा की कहानी कव्वे और काला पानी की याद हो आई .उपन्यास रिलीज़ होने के दूसरे दिन ही मिल गया, बाज़ारवाद का घोडा बड़ा सरपट भागता है.

ताज़ा उपन्यास में कहानी एक किन्नर के जन्म के साथ शुरू होती है जिसे लेखिका ने बार बार हिंजड़ा कह कर संबोधित किया है. खुशवंत सिंह ने भी दिल्ली उपन्यास  की नायिका एक किन्नर भागमती को ही बनाया है. महाभारत के युद्ध का पासा भी एक शिखंडी ने ही बदल दिया था. कहानी में तुर्कमान गेट भी है, गुजरात भी है, जंतर मन्तर के आन्दोलन भी है अगरवाल साहब के रूप में केजरीवाल भी है, कश्मीर व उत्तर पूर्व की समस्याओं को भी वे बार बार उठाती हैं, जन्तर मंतर को लिखते समय वे बाबा का वर्णन नहीं कर पाई या जानबूझ कर छोड़  दिया.

हिजड़ा प्रकरण में वे लिखती हैं- ही इज शी , शी इज ही ,ही शी … यही वाक्य कपिल शर्मा के शो में भी कई आया था. विभिन्न घोटालों पर भी एक पूरा पेराग्राफ है. प्रेम कहानी के आस पास यह रचना बुनी गयी है ,जहाँ जहाँ प्रेम कहानी कमज़ोर पड़ी राजनीति आगे हो गई, जहाँ राजनीति कमज़ोर पड़ी प्रेम कहानी को उठा लिया गया.

उनके पहले वाला उपन्यास पुरुष प्रधान था. अधूरे सपनों की अधूरी दास्ताँ थी- पसंद किया गया.

इस  नए उपन्यास में धैर्य की कमी है. कुछ समय और लेती तो यह रचना एक क्लासिक बनती और शायद नोबल तक जाती.

उपन्यास के एक अंश का हिंदी अनुवाद भी आ गया है. लेकिन यह उपन्यास हिंदी में ज्यादा नहीं चलेगा. प्रकाशक थोक खरीद में भिड़ा दे तो बात अलग है.

434 पन्नों के उपन्यास में कुल 12 चैप्टर हैं. एक छोटा सा चैप्टर मिनिस्ट्री ऑफ़ अटमोस्ट हैप्पीनेस पर भी है. यही इस उपन्यास की जान है. चरित्र के रूप में डा. आजाद भारतीय सबसे ज्यादा जमते है ,वे उस नए भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं जो हर तरह से फर्जी है ,आगे जाते है और व्यवस्था का सफल पुर्जा बनते हैं.

इन दो उपन्यासों के बीच में अरुंधति रॉय ने कई अन्य विषयों पर लिखा और अच्छा लिखा मगर यह स्पस्ट नहीं होता की उनके सपनों का भारत कैसा होना चाहिए. वे कोई विजन नहीं दे पातीं.

सब सपने देखने की बात तो करते हैं लेकिन यह कोई नहीं बताता की इन सपनों को हकीकत में कैसे बदला जाय. कश्मीर हो या दक्षिण भारत समस्याएं एक जैसी हैं. अस्पृश्यता पर भी लिखा गया है, मगर निदान नहीं है.

नागा और तिलोतमा का चित्रण अन्य के साथ गड्डमड्ड हो जाता है. प्रेमी और व्यवस्था अपनी रोटी सेकने में व्यस्त हो जाते हैं.

दूसरी ओर किन्नरों की कथा भी चलती रहती है, साथ में राजनीति, युद्ध, एनकाउंटर ,प्रेम, सेक्स, अपशब्द, लोक में चलती गालियां- सब कुछ जो बिक सकता हैं वह यहाँ पर है. कथा के बीच बीच में कविता, शेरो शायरी, बड़े लेखकों के कोटेशन भी हैं. अनुवाद और रोमन लिपि के कारण कई जगहों पर पाठक भ्रमित भी होजाता है, अच्छा होता कम से कम भारतीय संस्करण में शेर-कविता हिंदी में दे दिए जाते. पुस्तक एक साथ 30 देशों में रिलीज़ हुई है, अच्छी  बात है. लाखों प्रतियाँ छपी हैं- खूब बिक्री होगी. हिंदी  में तो यह सपना ही है.

पुस्तक में काफ़ी महंगा कागज –शायद बेल्जियम पल्प पेपर लगाया गया है, कवर सीधा,सच्चा सरल सफ़ेद है ,मगर प्रभावशाली है. बाइंडिंग गीली होने के कारण कमजोर. कवर पर एम्ब्रोस किया गया है, जो आजकल मुश्किल काम हो गया है. ४३८ पन्नों में सम्पूर्ण कहानी है, किस्सागोई में अरुन्धती अपने समकालीनों से काफी आगे हैं, चेतन या अमीश कहीं नहीं टिकते.

मैं  जानता हूँ मेरी यह समीक्षा कोई नहीं पढ़ेगा,  न लेखिका न प्रकाशक न साहित्य एजेंट, केवल वे समीक्षाएं पढ़ी लिखी जाएँगी जो निशुल्क पुस्तक भेजने पर लिखी जाती हैं. फिर भी…

========================

यशवंत कोठारी 86,लक्ष्मी नगर ब्रह्मपुरी बाहर जयपुर -३०२००२  मो-९४१४४६१२०७

 

 
      

About Prabhat Ranjan

Check Also

अनुकृति उपाध्याय से प्रभात रंजन की बातचीत

किसी के लिए भी अपनी लेखन-यात्रा को याद करना रोमांच से भरने वाला होता होगा …

6 comments

  1. अरुंधति रॉय जैसा गद्य लिखने के लिए जिस उदात्त भाव-विवेक भूमि की ज़रूरत है वह विरल है, शायद समझने के लिए भी। कहीं से भी समीक्षा में वह प्रयास नहीं दिख रहा। पुस्तक प्रमोशन के पब्लिशर के प्रयास का समीक्षा के केन्द्र में आ जाना पता नहीं कितना अनायास या सायास है।
    बिल्कुल पसंद नहीं आयी।

  2. समीक्षा का प्रयास तो सही नहीं लग रहा। अरुंधति राय को समझने के लिए जिस भाव विवेक भूमि की आवश्यकता होती है वह दिख नहीं रही। ऐसे में यह प्रयास आरोप ज्यादा दिख रहा है समीक्षा कम। पब्लिशर द्वारा पुस्तक के प्रमोशन के प्रयास को समीक्षा से गड्डमड्ड कर दिया गया।
    बिल्कुल पसंद नहीं आई समीक्षा।

  3. महेशजी की डबल समीक्षा.आभार महेशजी नोटिस लेने का.

  4. पुस्तक २ माह में ही ५२%कमिशन में मिलरहीं है ,समीक्षण सही सिद्ध हुयी .

  5. समीक्षा सही .
    अरुंधती का यह उपन्यास बुकर पुरस्कार की पहली पायदान पर ही रह गया

  1. Pingback: 티비위키

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *