युवा शायर सीरीज में आज पेश है अक्स समस्तीपुरी की ग़ज़लें – त्रिपुरारि ======================================================
ग़ज़ल-1
जुदाई में तेरी आंखों को झील करते हुए
सबूत ज़ाया किया है दलील करते हुए
मैं अपने आप से खुश भी नहीं हूँ जाने क्यों
सो खुश हूँ अपने ही रस्ते तवील करते हुए
न जाने याद उसे आया क्या अचानक ही
गले लगा लिया मुझको ज़लील करते हुए
कहीं तेरी ही तरह हो गया न हो ये दिल
सो डर रहा हूँ अब इसको वकील करते हुए
तमाम उम्र दिया मैं ने खुद को ही धोका
गुज़ारी उम्र ये चेहरा शकील करते हुए
हुआ ये हस्र लगी रक़्स करने तन्हाई
तुम्हारी यादों को फिर से खलील करते हुए
ग़ज़ल-2
अब यहां कोई भी मेहमान नहीं होता है
दिल तेरे बाद परेशान नहीं होता है
तुम मुझे भूल गए कैसे यूँ आसानी से
इश्क़ में कुछ भी तो आसान नहीं होता है
हिज्र का ज़ायक़ा लीजे ज़रा धीरे धीरे
सबकी थाली में ये पकवान नहीं होता है
कोई किरदार मज़ा देता नहीं है उसका
जिस कहानी का तू उन्वान नहीं होता है
ग़ज़ल-3
उसने यूँ रास्ता दिया मुझको
रास्ते से हटा दिया मुझको
दूर करने के वास्ते खुद से
खुद का ही वास्ता दिया मुझको
मौत ही कुछ सुकून दे शायद
ज़िन्दगी ने थका दिया मुझको
जब मिरे बाल ओ पर शिकस्ता हुए
तब कफ़स से उड़ा दिया मुझको
जिस हवा ने मुझे जलाये रखा
फिर उसी ने बुझा दिया मुझको
ग़ज़ल-4
क्योंकि मिट्टी से ही बना हूँ मैं
इसलिए रोज़ टूटता हूँ मैं
ठीक वैसे ही लग रहे हो तुम
जैसे ख़्वाबों में देखता हूँ मैं
तेरी यादों की बर्फबारी में
रफ़्ता रफ़्ता पिघल रहा हूँ मैं
यानि अब उम्र हो चली मेरी
यानि अब बड़बड़ा रहा हूँ मैं
अपने घर में ही अज़नबी सा हूँ
लग रहा कोई दूसरा हूँ मैं
एक दिन खुद को भूल जाऊंगा
खुद से बरसों नही मिला हूँ मैं
जितना सोचू तुझे न सोचूंगा
उतना ही तुझको सोचता हूँ मैं
ख़त्म पहली हुई नहीं सिगरेट
दूसरी भी जला रहा हूँ मैं
ग़ज़ल-5
तुझसे मैं दिल की बात तो कह दूँ, मगर नहीं
वो रात हूँ, वो रात के जिसकी सहर नहीं
जिसके लिए ये ज़िंदगी बर्बाद मैंने की
सबको पता है और उसे ही ख़बर नहीं
मय्यत पे मेरी देखना वो आएगी ज़रूर
क़ातिल है मेरी जान मगर बेख़बर नहीं
किरदार थोड़ी देर का है इस कहानी में
फिर उसके बाद आऊंगा मैं लौटकर नहीं
अब सुब्ह शाम राह मेरी देखती है वो
कहती थी जो कभी मुझे आना नज़र नहीं
माँ बाप को भी मुझसे है तेरी तरह उमीद
शादी करूँगा तुझसे ही पर भागकर नहीं
ग़ज़ल-6
हमने ले दे के ये कमाई की
उम्रभर अपनी जगहँसाई की
इक नदी का गुमान टूट गया
जब किनारों ने बेवफाई की
लौट आई मिठास रिश्तों में
हमने इस तौर से लड़ाई की
जब दवा मिल सकी न इसकी हमें
दर्द से दर्द की दवाई की
वस्ल का सब गुरूर टूट गया
हमनें जब हिज्र से सगाई की
रूह का फासला बढ़ाया गया
ज़िस्म को छोड़कर जुदाई की
भूक थी घर का मसअला पहला
हमने उस दौर में पढाई की
यूं ही हमको संभलना आया नहीं
चार सू खुद की हमने काई की
ग़ज़ल-7
ख़्वाब जब रक़्स करने लगते हैं
नींद हम दौड़कर पकड़ते हैं
हम तेरे बाद हँसना सीख गये
ख़त तेरे पढ़ के ख़ूब हँसते हैं
टूटकर प्यार करने वाले लोग
एक दिन खुद भी टूट सकते हैं
वैसे भी फोन रख ही देगा वो
इससे अच्छा है खुद ही रखते हैं
ये समर्पण के हस्र हैं इनके
रोटियों में जो दाग़ दिखते हैं
दर्द से इस क़दर मुहब्बत है
ज़ख्म पे हम नमक छिड़कते हैं