युवा शायर सीरीज में आज पेश है सग़ीर आलम की ग़ज़लें – त्रिपुरारि ======================================================
ग़ज़ल-1
कैसे कैसे मंज़र मेरी आँखों में आ जाते हैं,
यादों के सब खंजर मेरी आँखों में आ जाते हैं।
मेरी प्यासी आंखें फिर भी रह जाती हैं प्यासी ही,
यूँ तो सात समंदर मेरी आँखों में आ जाते हैं।
किसकी याद का दरिया मेरे दिल से हो कर बहता है,
किसके दर्द पिघलकर मेरी आँखों में आ जाते हैं।
किसकी याद की ख़ुश्बू से मैं दिन भर महका रहता हूँ,
किसके ख़्वाब संवरकर मेरी आँखों में आ जाते हैं।
जब भी सोचने लगता हूँ मै तेरे मेरे बारे में,
आटा, दलिया, दफ़्तर मेरी आँखों में आ जाते हैं
ग़ज़ल-2
उसकी जानिब यूँ मोड़ दी आँखें,
उसके चेहरे पे छोड़ दी आँखें।
फिर तेरे ख़्वाब देखने के लिए,
हमने बिस्तर पे छोड़ दी आँखें
वो जो आये तो जाग जाती हैं,
उसकी आहट से जोड़ दी आँखें।
अबके बिल्कुल भुला दिया उसको,
अबके बिल्कुल निचोड़ दी आँखें।
ग़ज़ल-3
वो जो मुझसे मिलता नईं,
शायद मुझको समझा नईं।
उसका ग़म है मेरा ग़म,
मेरा ग़म क्यों उसका नईं।
अब तो ऐसा लगता है,
सच भी जैसे सच्चा नईं।
उसको कैसे भूलूँ में,
अब ये मेरे बस का नईं।
अब तो सब ही करते हैं ,
प्यार किसी को होता नईं।
मुझको ज़िंदा रखता है,
वो जो मुझपे मरता नईं।
ग़ज़ल-4
दिल का खोना बहुत ज़रूरी है,
इश्क़ होना बहुत ज़रूरी है
इतना आसाँ नहीं है पा लेना,
पहले खोना बहुत ज़रूरी है।
जिसके सीने में दर्द ठहरा हो,
उसका रोना बहुत ज़रूरी है।
उनसे होनी हैं ख़्वाब में बातें,
मेरा सोना बहुत ज़रूरी है।
सिर्फ यादों से घर नहीं बनता,
तेरा होना बहुत ज़रूरी है।
ग़ज़ल-5
उसकी यादें महकती रहती हैं,
मेरी सांसे महकती रहती हैं।
उसको देखा था ख़्वाब में एक दिन,
अब भी आंखें महकती रहती हैं।
वो मेरे साथ तो नहीं है मगर,
उसकी बातें महकती रहती हैं।
उसकी चाहत के फूल खिलते हैं,
दिल की शाख़ें महकती रहती हैं।
यूँ धड़कता है कोई सीने में,
मेरी रातें महकती रहती हैं