आप पढ़ रहे हैं तन्हाई का अंधा शिगाफ़। मीना कुमारी की ज़िंदगी, काम और हादसात से जुड़ी बातें, जिसे लिख रही हैं विपिन चौधरी। आज पेश है तीसरा भाग – त्रिपुरारि ========================================================
बैजू की ‘गौरी’ ने जीवन के किनारे पर जड़ दी सुनहरी गोट
विजय भट्ट द्वारा निर्देशित फिल्म ‘बैजू बावरा’, तानसेन के समकालीन गायक बैजनाथ मिश्रा (1542-1613) के जीवन पर आधारित थी. बैजनाथ मिश्रा को स्थानीय ग्रामीण प्रेम से ‘बैजू’ पुकारते थे. बैजू के लिए उसकी प्रेमिका ‘गौरी’ सबसे बड़ी प्रेरणा स्त्रोत थी. गौरी के इसी किरादर को मीना ने अपने पूरे भावनात्मक मनोवेग से निभाया। हर सफल फिल्म की कहानी आने में वर्षों में बड़े चाव से सुनाई जाती हैं.
शकील बदायूनी के गीत, नौशाद द्वारा रचित लोक-संगीत में रचा-बसा संगीत, अकबर के दरबार की शान,उसके दरबार के सात रत्नों में से एक तानसेन से टक्कर लेता बैजू, गुरु हरिदास की खोज में निकला बैजू और उसका इंतज़ार करती गौरी इन सबने मिलकर पर्दे पर एक जादू का काम किया. निर्देशक विक्रम भट्ट खुद संगीत और साहित्य प्रेमी थे, यही कारण था कि इस फिल्म में उन्होंने इन दोनों पक्षों की तरफ ध्यान दिया. गीतकार डी एन मधोक ने विजय भट्ट को उस समय संघर्षरत, संगीत निर्देशक नौशाद का नाम सुझाया. विक्रम भट्ट और उनके निर्माता भाई ने नौशाद जी की कुछ धुनों को सुना, उनकी वे धुन बहुत पसंद आयी और उन्होंने नौशाद जी को 250 रूपये प्रति माह के लिए अनुबंध कर लिया. सारी टीम प्रतिभाशाली थी और सबने बड़े मन से काम किया। इस फिल्म के लिए कला निर्देशक और कलाकार कनु देसाई ने सीन दर सीन रेखा चित्र भी बनाये थे॰विजय भट्ट पहले ऐसे निर्देशक थे जिन्होंने इस फिल्म में दो उस्तादो आमिर खान और पंडित डी वी पलुस्कर और शहनाई उस्ताद बिस्मिल्ला खान के अद्भुद फन का इस्तेमाल किया. बम्बई के नज़दीक पान्वेल नदी पर ‘तू गंगा की मौज़’ गीत की शूटिंग की गयी. इस फिल्म को पूरा होने में एक साल लगा. फिल्म गोल्डन जुबली हिट रही और फिल्म की सफलता ने दोनों मुख्य किरदारों को हिंदी सिनेमा जगत में स्थापित कर दिया.
इसी फिल्म ने मीना कुमारी को उनका पहला फिल्म फेयर दिलवाया. चारों तरफ से मिलने वाली प्रशंसा से मीना कुमारी अभिभूत थी. इस फिल्म के साथ ही स्टारडम की राह उनके लिए आसान हो गयी थी. अब सबकी निगाहें उनकी आने वाली फिल्मों पर थी।