आप पढ़ रहे हैं तन्हाई का अंधा शिगाफ़। मीना कुमारी की ज़िंदगी, काम और हादसात से जुड़ी बातें, जिसे लिख रही हैं विपिन चौधरी। आज पेश है पाँचवां भाग – त्रिपुरारि ========================================================
सपनों के राजकुमार के हाथों में कलम थी
मीना कुमारी का जीवन बेहद जटिल और अनुभवों का खासा धनी था. कुछ ऐसा ही मिज़ाज़ उनके प्रेम का भी रहा, जो एक दुर्घटना की रास्ते पर चल कर उनके सामने आया. 1951 के दौरान बन रही फिल्म ‘तमाशा’ के सेट पर मीना कुमारी की मुलाकात कमाल अमरोही से हुयी, इस मुलाकात के मध्यस्त थे प्रसिद्ध अभिनेता अशोक कुमार.
इससे पहले बीच में एक कहानी और जुडती है, सोहराब मोदी अपनी फिल्म ‘जेलर’ में छोटे से रोल के लिए एक बच्ची की तलाश थी. इसी फिल्म के सिलसिले में इस फिल्म के लेखक, कमाल अमरोही, अली बक्श के घर गए. वहां पिता के बुलाने पर एक बच्ची चेहरे पर केले का मास्क लगाये हुए, नंगे पाँव मेहमान के सामने प्रकट हुयी. 1938 में छह साल की इस बच्ची ‘मुन्ना’ की अपने भावी पति के साथ पहली मुलाकात थी. उस समय कौन जानता था बाल कलाकार की खोज में आया यह युवक ही मीना का जीवन-साथी बनेगा।
अशोक कुमार ने जिन अमरोही साहब से मीना कुमारी का परिचय करवाया वे वर्ष 1949 में बनी सफल ‘महल’ के निर्देशक थे. उस समय तक उनकी शोहरत बुलंदी पर थी. कमाल, फिल्म निर्देशक और निर्माता के साथ-साथ पटकथा लेखक और संवाद लेखक तो थे ही, कविता-शायरी भी खूब करते थे. मीना को भी शायरी से बेहद प्रेम था. कमाल अमरोही का कदावर व्यक्तित्व में शायरी की नरमी घुली हुयी थी. मीना कुमारी को कमाल खूब भाए, वह कमाल अमरोही की तरफ झुकती चली गयी. कमाल ने भी मीना के प्रेम में अपने प्रेम का रंग घोल दिया. दोनों के बीच बातचीत और मुलाकातों का सिलसिला आगे बढ़ता गया. इसी दौरान कमाल अमरोही ने मीनाकुमारी को अपनी महत्वपूर्ण फिल्म ‘अनारकली’ के मुख्य किरदार के लिए अनुबंधित किया. उन्हीं दिनों जब मीना के मन में नयी तरंगें जगह बना रही थी कि एक दिन जब मीना कुमारी अपनी बहन के साथ महाबलेश्वर से बम्बई आ रही थी तब उनकी कार भयानक सड़क दुर्घटना का शिकार हुयी. उन्हें बम्बई से 149 दूरी पर स्थित ससून अस्पताल में भर्ती करवाया गया. वहां मीना कुमारी का लगभग चार महीने इलाज़ चला. एक्सीडेंट में हाथ के जख्मी होने के कारण उनके बाएं हाथ दो उँगलियाँ काटनी पड़ी. मीना के लिए यह सब एक वज्रपात से कम नहीं था,उनके स्वर्णिम फ़िल्मी सफ़र की अभी शुरुआत ही हुयी थी, उँगलियाँ कटने की खबर से उनके फ़िल्मी कैरियर पर बुरा असर पड़ सकता था। वे अवसाद में जा चुकी थी, जहाँ से बाहर निकालने में कमाल अमरोही ने उनकी भरपूर मदद की । अस्पताल में मीना को देखने कमाल अमरोही लगातार आते रहे, दोस्ती प्रेम में तब्दील हो ने लगी, रात-रात भर फ़ोन पर दोनों बातें करते रहते और एक दूसरे को ख़त लिखते रहते. अस्पताल से डिस्चार्ज होते ही विवाह का फैसला ले लिया गया.
मंजू-चन्दन की प्रेम कहानी
इस बार मीना कुमारी फ़िल्मी नहीं असल जीवन में एक प्रेमिका थी, जिसका प्रेमी खूबसूरत तो था ही एक कोमल मन का मालिक भी था. वे दिन किसी आहट पर कान रखने के दिन थे । किसी फ़िल्मी प्लाट सी रोचक इस कहानी की नायिका की उम्र 19 साल की थी और नायक की उम्र 34 की थी.
तीन बच्चों के पिता कमाल अमरोही का यह तीसरा विवाह था. पर प्रेम अपने रास्ते में किसी को नहीं देखता. दोनों के लिए यह जीवन की नयी शुरुआत थी, जहाँ उनके नाम भी नए थे. मीना, कमाल की ’मंजू’ थी और कमाल मीना के ’चन्दन’ थे। खतों में भी दोनों एक दूसरे को इसी नाम से संबोधित करते। चूँकि विवाह गुपचुप हुआ था और एक दिन उसका खुलासा भी होना था, खुलासा हुआ .पिता अलीबक्श ने सख्त हिदायत दी कि मीना, कमाल की फिल्म में काम नहीं करेगी,आज तक पिता की आज्ञाका पालन करती आयी मीना कुमारी, एकबारगी उनके कहे को इनकार न कर सकी मगर कुछ ही दिनों में प्रेम जीत गया जिसके फलस्वरूप पिता का दरवाज़ा मीना के लिए बंद हो गया। दरअसल मीना अब एक स्टार थी और पिता उसकी बाग़डोर अपने हाथों में रखना चाहते थे और शादी का मतलब मीना पर उनकी पकड़ का छूट जाना था इस तरहमीना पिता का घर छोड़ कर सायन, मुंबई में अपने पति के घर आ गयी.
meena kumari ji ke jeevan se rubaru karaane ke liye shukriya
बहुत ही बढ़िया लेख लिखा आपने, पढ़कर अच्छा लगा. जिस तरह से आपने मीना कुमारी जी के जीवन से परिचय कराया वाकई काबिले तारीफ है। इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद !
शुक्रिया बहुत ही खूबसूरत लेख लिखा है आपने इससे पहले मीना कुमारी जी के बारे में इतना सब नहीं पढ़ा था एक बार फिर शुक्रिया |