आप पढ़ रहे हैं तन्हाई का अंधा शिगाफ़। मीना कुमारी की ज़िंदगी, काम और हादसात से जुड़ी बातें, जिसे लिख रही हैं विपिन चौधरी। आज पेश है सातवाँ भाग – त्रिपुरारि ========================================================
बच्चों की आपा– मीना कुमारी
मीना कुमारी को बच्चों से बहुत प्रेम था, फिल्मों में वह ममतामयी माँ और बहन तो थी ही, असल जिंदगी में भी बच्चों से असीम लगाव था उन्हें। बच्चे बमुश्किल ही किसी से अपनी मासूम रूह को जोड़ पाते हैं, शायद मीना जी के नर्म स्वभाव के कारण ही वे उनके नज़दीक जाते थे. मीना कुमारी के साथ फिल्म में काम करने वाले बाल कलाकार आज भी उन्हें याद करते हुए एक नर्म अहसास में गुम हो जाते हैं. मीना कुमारी के साथ कई फिल्मों में बाल कलाकार के रूप में काम कर चुकी डेज़ी ईरानी का उनसे असीम लगाव इतना था. उन्होंने अपनी असली माँ से अधिक मीना कुमारी का प्रेम पाया. बचपन में डेज़ी मीना कुमारी को ही अपनी माँ समझती रही. एक बार किसी फिल्म के सीन पर मीना कुमारी डेज़ी के गाल पर चपत लगाने में हिचकती रही क्योंकि उन्होंने वादा किया था कि वे डेज़ी को नहीं सचमुच में नहीं मारेंगी। लेकिन मीना कुमारी ने चपत लगाया और डेज़ी खूब रोई .कई बार रिटेक होने के बाद वह सीन फ़ाइनल हुआ. सीन के पूरा होते ही मीना कुमारी ने डेज़ी को गोदी में उठा कर खूब प्यार किया।
बाल-कलाकार के रूप में तबस्सुम, मीना कुमारी का स्नेह पाती रही. एक बार कमाल अमरोही के छोटे बेटे ताजदार अमरोही के साथ खेल-खेल में मीना जी के कीमती कालीन पर ढेरों चीनी गिरा दी थी पर मीना जी ने उनकी सभी बाल- सुलभ शरारतों से भी प्रेम किया। मीना कुमारी, बेबी तबस्सुम को अक्सर अपने घर ले जाती और अपने हाथों से खाना खिलाती, नहलाती और सुला देती। हनी ईरानी के साथ ‘चिराग कहीं रोशनी कहीं’ के एक सीन के वक़्त उन्हें रोना था मगर वह हंसती रही तब मीना कुमारी ने उन्हें एक चुंटी काटी और वह रोने लगी इस तरह से सीन पूरा हुआ. ‘उसके बाद मांफ करना मेरे बच्चे’ कह कर मीना कुमारी ने हनी को खूब सारी चीज़ें दी. इसी तरह सचिन भी फिल्मों में बाल कलाकार की भूमिका करते हुए मीना कुमारी की प्रेमिल छाँव में रहे.
जब कमाल अमरोही का छोटा बेटा अपने गाँव से मीना कुमारी के बंगले पर आया तो मीना कुमारी ने उसे खूब दुलार किया और अपनी माँ सा स्नेह ही मीना कुमारी से पाया. उसे बाद जब ताज़दार अपनी ग्रेजुएशन पूरी करके आए अपने पिता के घर आए तो उन्होंने घर आते ही देखा कि उनके पिता जी को बुखार है और मीना कुमारी सफ़ेद चुद्दीदार में उनके पिता के सिर पर ठंडी पट्टियाँ रख रही हैं. अपने पिता से छोटी माँ का बेहद लगाव देखते हुए ही वे बड़े हुए.
मीना कुमारी अपना बच्चा चाहती थी, लेकिन पहले से ही बाल-बच्चेदार कमाल अमरोही और बच्चा नहीं चाहते थे. कुछ खबरे यह कहती है कि मीना कुमारी सुन्नी थी इसलिए वे मीना कुमारी से बच्चा नहीं चाहते थे.
एक साक्षात्कार में कमाल अमरोही की बेटी रुखसार अमरोही ने एक साक्षात्कार में बताया कि जब उनके पिता ने एक दिन अखबार में यह खबर पढ़ी कि कमाल अमरोही ने दबाव देकर मीना कुमारी का दो बार गर्भपात करवाया तो गुस्से में उन्होंने मीना कुमारी को एक तमाचा लगा दिया। मीना की शायरी में भी बच्चे की लिए मातृत्व की पुकार सुनाई पड़ती है.
शानदार फ़िल्में और लाज़वाब अभिनय
जिन तीन फिल्मों में कमाल अमरोही ने निर्देशक में रूप में मीना कुमारी से अभिनय करवाया वे तीनों ही फ़िल्में कालजयी हैं. उन्होंने मीना कुमारी के नैसर्गिक सुन्दरता को बहुत मेहनत के साथ अपनी फिल्मों में इस्तेमाल किया. तीनों ही फिल्मों का कला पक्ष बेहद खूबसूरत था. 1953 में बनी फिल्म ‘दायरा’ अपनी संवेदनशीलता के कारण कभी न भुलाई जाने वाली फिल्म है. ‘दायरा’ पूर्ण रूप से कमाल अमरोही की फिल्म थी वे इस फिल्म के लेखक, निर्माता और निर्देशक थे. कहानी एक नवयुवती की है जो एक वृद्ध व्यक्ति की पत्नी है, जिसके पास चुप्पी और कर्तव्यपरायणता के अलावा कुछ नहीं, कैसे एक मासूम प्रेम को अपने सीने में छुपाये हुए है. यह मीना का अभिनय ही था जो शांत चेहरे पर मन के तूफ़ान को दर्शा सकता था वो भी इस इस बखूबी से कि देखने वाला जड़ हो जाये.
इसी तरह फिल्म ‘दिल अपना और प्रीत पराई’ में मीना की गंभीरता को बड़े परदे में जिस खूबसूरती से दर्शाया उसका कोई मुकाबला नहीं है.
फिल्म के द्रश्यों में मीना का मौन रुदन, पर्दे पर बेहद मार्मिकता से उभरता है.
इसी तरह फिल्म ‘पाकीज़ा’ में लखनऊ की तवायफ की मार्मिक कहानी, जो उसके घुंघरुओं के जरिये बयान होती है.
‘पाकीज़ा’ को मीना कुमारी की शानदार अदाकारी ने अमर बना दिया. यह फिल्म उनके फ़िल्मी कैरियर में मील का पत्थर ठहराई गयी. फिल्म पूरी होने पर मीना ने जैसे चैन की साँस ली, वह अपने पति की इस ख्वाईश को हर हाल में पूरा करना चाहती थी। शुरू में फिल्म नहीं चली लेकिन मीना कुमारी की मृत्यु की खबर सुन कर लोग फिल्म परदे पर टूट पड़े.
यहाँ गौरतलब है कि प्रेम की गहरी संवेदनशीलता को इस असीमता से समझने वाला निर्देशक अपनी पत्नी के प्रति कैसे क्रूर हो गया, यहाँ फिर पितृसत्ता का दोहरा रूप सामने आता है, फिर एक बात ध्यान में आती है कि घोर रचनात्मकता में डूबा इंसान अपनी कला में इतना डूब जाता है कि अपने करीब के रिश्तों के प्रति लापरवाह और खुश्क हो जाता है.