आप पढ़ रहे हैं तन्हाई का अंधा शिगाफ़। मीना कुमारी की ज़िंदगी, काम और हादसात से जुड़ी बातें, जिसे लिख रही हैं विपिन चौधरी। आज पेश है नौवाँ भाग – त्रिपुरारि ========================================================
गहरी खाई थी अभिनेत्री मीना कुमारी और स्त्री मीना कुमारी के बीच
अभिनेत्री मीना कुमारी और स्त्री मीना कुमारी के बीच गहरा अंतर था. यह अजीब बात थी कि एक सक्षम अभिनेत्री के तौर पर मीना कुमारी की इच्छाओं का पूरा सम्मान किया जाता था, फिल्म की पटकथा से लेकर परिधान के चयन पर मीना जी से बकायदा सलाह ली जाती थी ‘दिल अपना और प्रीत पराई’ में अंत को मीना में अपने हिसाब से मोड़ा और अंत लाजवाब हो गया, मगर जब अभिनेत्री मीना कुमारी , अपने स्त्री होने की तरफ रुख करती तो उनपर लाख पहरे होते। उनके पति ने अपने सेक्रेटरी बकार को मीना कुमारी पर नज़र रखने की ड्यूटी सौंप दी थी. मीना कुमारी जैसी स्वाभिमान से लबरेज़ स्त्री को यह कैसे गवारा होता।
इसी तरह मीना कुमारी को अपने ही कमाए गए पैसे को खर्च करने के लिए कमाल से पूछना पड़ता था. जिसने स्त्री सुलभता के चलते अपनी सम्पति को अपने पति की देख रेख में रख छोड़ा था. इस तरह अपने प्रभावशाली अभिनेत्री के रौब से लौटकर मीना कुमारी एक नारी के रंग रूप में होती तो उन्हें कष्ट देने के लिए कई लोग होते, जिसमें पति के अलावा उनके रिश्तेदार भी थे. जिस लड़की को मीना अपने घर काम पर लायी थी उससे मीना के पिता इश्क करने लगे थे और शादी की ओर बढ़ रहे थे. मीना के घर पर ही रहने वाली सौतली बहन ने बहस होने पर मीना कुमारी को धक्का दे दिया था जिसके कारण मीना कुमारी के हाथ की हड्डी टूट गयी थी, उसी चोटिल स्थिति में मीना कुमारी ने वहीदा रहमान को फिल्म फेयर अवार्ड दिया। जब वह अपने जीवन के सबसे बुरे दौर में गुज़र रहती थी तब भी उन घर में रहने वाले रिश्तेदारो में कोइ ऐसा नहीं था जिसके कंधे पर मीना कुमारी सिर रख कर रो लेती। वो मीना कुमारी को शराब पीते हुए देखते और उन्हें लेकर किस्सों के गढ़ने को देखते रहते लेकिन चुप्पी के साथ.
ऐसे ही एक बार एक प्रसिद्ध निर्देशक जो उनके पडोसी थे ने बताया कि देर रात फिल्म की शूटिंग से लौटने पर मीना कुमारी के नौकर ने उनके घर का दरवाज़ा खटका कर उनसे मीना के खाने के लिए पाँव- रोटी मांगी. अपने समय की नामचीन अभिनेत्री को अपने घर में ही वाज़िब ठौर नहीं मिली जबकि इक्कीस रिश्तेदारों की परवरिश मीना कुमारी के हाथों की हुयी थी. मीना कुमारी अपने जीवन में अँधेरे और उजालें को अपने अलग-बगल ही रखती थी. लाइट कैमरा एक्शन के बाद का उनका जीवन सच में काफी भयावह था क्योंकि वहां था अकेलापन, उदासी और आंसू।
जैसे-जैसे समय गुज़रता जायेगा मीना कुमारी का अभिनय और रंगत अपने विस्तार में सामने आएगा क्योंकि उनके अभिनय की जड़ें, संवेदनशीलता की धरती में धंसी हुयी थी जिसका वास्ता ग्लैमर की चमक-दमक से दूर परदे के पीछे की उदासी से था.
‘छोटी बहू’ का बड़ा दिल
अपने अभिनय कैरियर में किसी भी पात्र ने मीना कुमारी को इतना परेशान नहीं किया जितना ‘साहब बीवी और गुलाम’ की ‘छोटी बहू ‘ ने. बंगला साहित्यकार बिमल मित्र के उपन्यास की बंगाली जमींदार परिवार की छोटी बहू जीवन का किरदार करते हुए मीना कुमारी उसमें ऐसा डूबी की फिर ताउम्र उससे बाहर नहीं आ सकी. दरअसल छोटी बहू अपने स्त्रियोचित गुणों के बावजूद वह पति का दिल जीतने में असफल रही थी तब उसने वह कदम उठाया जिसकी उसने उस समय कि स्त्री कल्पना भी नहीं की थी. वह शराब पीने में अपने पति का साथ देने लगी जो उसके धनाढ्य परिवार या उस समय के परिवारो में किसी दूसरी बहू ने कभी नहीं किया था. मीना कुमारी इस फिल्म की दिल और आत्मा थी, उनके असली जीवन में भी एक आत्मघाती विद्रोह, घर कर रहा था और वह विद्रोह शराब पीकर खुद को दुनिया से अलग कर देने का था. यह कुछ-कुछ देवदासनुमा सा विद्रोह, अपने समाज और अपनी परिस्थितियों से था, जिसमें मीना कुमारी को सुकून मिलता तो शराब से या अपने लेखन से. मीना कुमारी खुद नहीं जानती थी कि वह भारतीय फ़िल्मी इतिहास में इस किरदार के जरिये सदा के लिए
अस्विमर्णय हो जाएंगी बल्कि अपने जीवन की भी यही हालत बना लेंगी. मीना कुमारी ने छोटी बहू के रोल को बहुत कुछ दिया बदले में मीना कुमारी से उस किरदार ने बहुत कुछ ले लिया।
फिल्म के अंत से खुद मीना कुमारी बुरी तरह से हिल गयी थी, उन्हें लगने लगा की छोटी बहू की मृत्यु की तरह मेरी मृत्यु भी नज़दीक है.
गीत भी कभी उनकी ज़ुबान थे
फ़िल्मी जगत में मीना कुमारी का नाम जो किसी को भी एक पल के लिए स्तब्ध कर सकता है. अपने बहुमुखी अभिनय, आकर्षक नृत्य और उसे सुंदर अभिव्यक्ति और संवेदनशील नज़्मों के लिए तो जानी ही गयी, इसके अलावा वे बेहतरीन गायिका भी रही हैं। बहुत कम लोग जानते होंगे कि महज़ आठ साल की उम्र में उन्होंने बीना कुमारी के साथ फिल्म बहन( 1941) में एक गीत गाया था जिसके बोल थे, ‘तोरा कजरा लगाऊं मोरी रानी’ इस गीत के बोल लिखे थे सफ़दर सीतापुरी ने और संगीतकार थे अनिल विश्वास। मीना के प्रौढ़ अभिनय के साथ उसकी मधुर आवाज़ का इस्तेमाल भी निर्माता निर्देशक कर रहे थे. इसके सात साल बाद ही 1947 में बनी फिल्म ‘दुनिया एक सराय’ में मीना कुमारी ने तीन गीत गाये थे, इस फिल्म का संगीत हंसराज बहल ने दिया था. इसी साल 1947 में ‘पिया घर आजा’ में बेबी मीना ने चार गीत गाये फिल्म का संगीत बुलो सी रानी ने दिया था। मीना कुमारी ने 1966 में ‘पिंजरे के पंछी’ फिल्म में मन्ना डे के साथ गुलज़ार के लिखे गीतों को अपनी आवाज़ दी. इस फिल्म में संगीतकार सलिल चौधरी थे. गीत के बोल थे ‘ऐसा भी कभी होगा’.
शायरा मीना कुमारी की बहुत इच्छा थी कि उनके लिखे गीतों को कोई आवाज़ मिले तब उनकी पहली पसंद बनी जगजीत कौर. तब जगजीत कौर और खय्याम ने उन्हें यह सलाह दी कि गायन पर मीना कुमारी की अच्छी पकड़ है वह पहले भी गीत गा चुकी हैं. सुरों की बेहतर समझ के कारण वे खुद अपनी रचनाओं के साथ अच्छी तरह से न्याय कर सकती हैं. तब मीना कुमारी ने उनका यह सुझाव स्वीकार लिया और मीना कुमारी के गायन और खय्याम साहब के संगीत के साथ 1970 में एक एल्बम आयी जिसका शीर्षक था ‘आई राईट, आई रिसाइट’. ये उनके लन्दन से वापिस लौटने की बात है. स्वास्थ्य अब भी ख़राब था लेकिन वे चाहती थी कि उसका एल्बम रिलीज़ हो सो उन्होंने पूरे लगन से इस अल्बम की आठ ग़ज़लों को गाया। उनकी दैवीय आवाज़ में इस एल्बम के गीत अलग ही अहसास जागते हैं.
बहुत अच्छी स्टोरी
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