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‘चीखती हुई चीं-चीं ‘दुश्चरित्र महिलाएं, दुश्चरित्र महिलाएं…’

अनामिका जी को देखता हूँ, उनसे मिलता हूँ तो करुणा शब्द का मतलब समझ में आता है. इतनी करुणामयी महिला मैंने जीवन में नहीं देखी. उनके लिए जो भी अपमानजनक भाषा का प्रयोग करेगा वह अपना चरित्र ही दिखाएगा. हिंदी में इतनी विराट और विविधवर्णी उपस्थिति किसी लेखिका का नहीं है. यह अलग बात है कि उनके लेखन का सम्यक मूल्यांकन अभी तक ठीक से हुआ नहीं है. हिंदी समाज ने एकजुट होकर यह जता दिया है कि किसी लेखक-लेखिका के मान में भले हम साथ न हों लेकिन अपमान का विरोध हम मिलकर करते हैं. फिलहाल एक छोटी सी टिप्पणी युवा लेखिका अणुशक्ति सिंह की पढ़िए- मॉडरेटर

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फेसबुक को ऊपर से नीचे देखते हुए सोच रही हूँ, कल रात से कितना कुछ कहा जा चुका है. लाँछन-युक्त विरोध से लेकर उस विरोध का सघन विरोध तक. सुबह से अब तक तमाम लोग उनको फेसबुक पर ढूँढ चुके होंगे. कुछेक ने उनका तात्कालिक फेसबुक पेज भी बना दिया होगा. कुछ लोग लकीर के उस पास खड़े होकर कहकहे लगा रहे होंगे, कुछ इस ओर से उन कहकहेबाज़ों को कोस रहे होंगे.

इस दरमियाँ वह क्या कर रही होंगी? सोशल मीडिया के गंधीले युद्धक्षेत्र से बहुत दूर कुछ नया सृजित कर रही होंगी. अपने पौधों को पानी दे रही होंगी. घर-पड़ोस के किसी बच्चे के साथ खेल रही होंगी. या फिर, कुछ सुंदर पढ़ रही होंगी.

उनसे मेरी कोई पहचान नहीं. मैंने उन्हें जब भी देखा है, दूर से ही देखा है, परंतु उनको जानती हूँ मैं. उनकी कविताओं को पढ़ते हुए उस कवि-मन को खूब समझ गयी हूँ, जो उनके अंदर बसता है. न जाने क्यों,मुझे भरोसा है, उनकी हँसी सा उज्ज्वल उनका कवि-हृदय अफवाहों को हवा नहीं देता होगा. न ही किसी के प्रलाप से दुखी होकर अपने आप को जलाता होगा.

वहाँ एक अलग आबोहवा होगी, सौम्यता के धूप से सुगंधित. जहाँ पहुँचने से पहले ही सारे बद-ख़याल अपनी मौत स्वयं मर जाते होंगे.

फिर भी कुछ उन तक पहुँच जाता होगा तो उसे देख कर उनके चेहरे पर उनकी वही धवल हँसी तिर जाती होगी.

वह गुनगुनाने लगती होंगी अपनी कविता ‘स्त्रियाँ’ का अंतिम हिस्सा.

एक अदृश्य टहनी से

टिड्डियाँ उड़ीं और रंगीन अफ़वाहें

चीखती हुई चीं-चीं

‘दुश्चरित्र महिलाएं, दुश्चरित्र महिलाएं–

 
      

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