युवा शायर सीरीज में आज पेश है शहबाज़ रिज़वी की ग़ज़लें – त्रिपुरारि ======================================================
ग़ज़ल-1
उदासी ने समां बांधा हुआ है
खुशी के साथ फिर धोका हुआ है
मुझे अपनी ज़रूरत पर गई है
मेरे अंदर से अब वो जा चुका है
कहानी से अजब वहशत हुई है
मेरा किरदार जब पुख़्ता हुआ है
मैं हर दर पर सदाएं दे रहा हूं
कोई आवाज़ दे कर छुप गया है
मौत तो चलिए फिर भी आनी है
नींद कमबख्त को हुआ क्या है
ग़ज़ल-2
ख्वाब के आस पास रह रह कर
थक गया हूं उदास रह रह कर
बढ़ रहे हैं ये फूल तेज़ी से
घट रहे हैं लिबास रह रह कर
आ रहीं हैं सदाएं कट कट के
मिल रही है मिठास रह रह कर
है मुहब्बत निसाब के बाहर
बंक कीजे क्लास रह रह कर
आमने-सामने हुए दोनों
उड़ रहे हैं हवास रह रह कर
हिज्र की शब है और रिज़वी है
भर रहे हैं गिलास रह रह कर
ग़ज़ल-3
यादों की दिवार गिराता रहता हूँ
मैं पानी से आंख बचाता रहता हूँ
यादों की बरसात तो होती रहती है
मैं आंखों से ख्वाब गिराता रहता हूँ
साहिल पे कुछ देर अकेले होता हूँ
फिर दरिया से हाथ मिलाता रहता हूँ
साहिर की हर नज़्म सुना कर मजनू को
मैं सेहरा का दर्द बढाता रहता हूँ
पत्थर वत्थर मुझसे नफरत करते हैं
मैं अंधों को राह दिखाता रहता हूँ
मेरे पिछे क़ैस की आंखें पड़ गई हैं
दरिया दरिया प्यास बुझाता रहता हूँ
मुझको दशत-ए सकूत सदाएं देता है
सेहरा सेहरा खाक उड़ाता रहता हूँ
मुझको मेरे नाम से जाना जाता है
मैं रिज़वी का ढोंग रचाता रहता हूँ