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युवा शायर #21 सिराज फ़ैसल ख़ान की ग़ज़लें

युवा शायर सीरीज में आज पेश है सिराज फ़ैसल ख़ान की ग़ज़लें – त्रिपुरारि ======================================================

ग़ज़ल-1

हमीं वफ़ाओं से रहते थे बेयकीन बहुत
दिलो निगाह में आये थे महज़बीन बहुत

वो एक शख़्स जो दिखने में ठीक-ठाक सा था
बिछड़ रहा था तो लगने लगा हसीन बहुत

तू जा रहा था बिछड़ के तो हर क़दम पे तेरे
फ़िसल रही थी मेरे पाँव से ज़मीन बहुत

वो जिसमें बिछड़े हुए दिल लिपट के रोते हैं
मैँ देखता हूँ किसी फ़िल्म का वो सीन बहुत

तेरे ख़याल भी दिल से नहीं गुज़रते अब
इसी मज़ार पे आते थे ज़ायरीन बहुत

तड़प तड़प के जहाँ मैंने जान दी “फ़ैसल”
खड़े हुए थे वहीं पर तमाशबीन बहुत

ग़ज़ल-2 

तेरे एहसास में डूबा हुआ मैं
कभी सहरा कभी दरिया हुआ मैं

तेरी नज़रें टिकी थीं आसमाँ पर
तेरे दामन से था लिपटा हुआ मैं

खुली आँखों से भी सोया हूँ अक्सर
तुम्हारा रास्ता तकता हुआ मैं

ख़ुदा जाने के दलदल में ग़मोँ के
कहाँ तक जाऊँगा धँसता हुआ मैं

बहुत पुरख़ार थी राहे मुहब्बत
चला आया मगर हँसता हुआ मैं

कई दिन बाद उसने गुफ्तगू की
कई दिन बाद फिर अच्छा हुआ मैं

ग़ज़ल-3

तअल्लुक तोड़कर उसकी गली से
कभी मैँ जुड़ न पाया ज़िन्दगी से

ख़ुदा का आदमी को डर कहाँ अब
वो घबराता है केवल आदमी से

मिरी ये तिश्नगी शायद बुझेगी
किसी मेरी ही जैसी तिश्नगी से

बहुत चुभता है ये मेरी अना को
तुम्हारा बात करना हर किसी से

ख़सारे को ख़सारे से भरूंगा
निकालूँगा उजाला तीरगी से

तुम्हें ऐ दोस्तो, मैँ जानता हूँ
सुकूँ मिलता है मेरी बेकली से

हवाओं में कहाँ ये दम था ‘फ़ैसल’
दिया मेरा बुझा है बुज़दिली से

ग़ज़ल-4

माना मुझको दार पे लाया जा सकता है
लेकिन मुर्दा शहर जगाया जा सकता है

लिक्खा है तारीख़ सफ़हे सफ़हे पर ये
शाहों को भी दास बनाया जा सकता है

चाँद जो रूठा राते काली हो सकती है
सूरज रूठ गया तो साया जा सकता है

शायद अगली इक कोशिश तक़दीर बदल दें
ज़हर तो जब जी चाहें खाया जा सकता है

कब तक धोखा दे सकते है आईने को
कब तक चेहरे को चमकाया जा सकता है

पाप सभी कुटिया के भीतर हो सकते है
हुजरे के अंदर सब खाया जा सकता है

ग़ज़ल-5

वो बड़े बनते हैं अपने नाम से
हम बड़े बनते हैं अपने काम से

वो कभी आगाज़ कर सकते नहीं
ख़ौफ़ लगता है जिन्हे अंज़ाम से

इक नजर महफ़िल में देखा था जिसे
हम तो खोये है उसी मे शाम से

दोस्ती, चाहत, वफ़ा इस दौर में
काम रख ऐ दोस्त अपने काम से

जिनसे कोई वास्ता तक है नहीं
क्यों वो जलते है हमारे नाम से

उसके दिल की आग ठंडी पड गयी
मुझको शोहरत मिल गयी इल्ज़ाम से

महफ़िलों में ज़िक्र मत करना मेरा
आग लग जाती है मेरे नाम से

 
      

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Poet, lyricist & writer

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