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सीता की विद्रोह कथा और ‘मैं जनक नंदिनी’

 

आशा प्रभात जी के उपन्यास ‘मैं जनकनंदिनी’ पर मेरी यह समीक्षा ‘कादम्बिनी’ में आई है- प्रभात रंजन

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मिथक सतत कथाओं को तरह होती हैं। हर युग उन कथाओं को अपने युग सन्दर्भों के अनुकूल बनाकर अपना लेती है। इसीलिए देवी-देवताओं की कथाओं की अनंत कथाएं लिखी जाती रही हैं, आने वाले समय में भी लिखी जाती रहेंगी। कुछ दशक पहले राम की कथाओं के नए नए संस्करण सामने आये थे, फिर शिव-कथाओं का दौर आया। आजकल सीता की कथाओं का दौर चल रहा है। अंग्रेजी में अमीश त्रिपाठी ने ‘सीता: वारियर ऑफ़ मिथिला’ नामक उपन्यास लिखा, जिसमें सीता को वीरांगना के रूप में दिखाया गया है। एक ऐसी स्त्री की तरह जिसको विदेहराज जनक ने गोद लिया था। एक गोद ली हुई संतान रघुकुल की महारानी बनती हैं। कथा में अनेक ऐसे प्रसंग जो मिथकीय कथाओं को एकरेखीय मानने वालों को असहज लग सकती हैं। जैसे सीता का हनुमान को भाई कहना। लेकिन युवा पाठकों द्वारा इस किताब को खूब पसंद किया जा रहा है.

अमीश त्रिपाठी के इस उपन्यास के प्रकाशित होने से पहले हिंदी लेखिका आशा प्रभात का उपन्यास ‘मैं जनक नंदिनी’ प्रकाशित हुआ। सीता द्वारा आत्मकथात्मक शैली कही गई इस कथा में भी सीता को एक मजबूत विद्रोहिणी स्त्री के रूप में दिखाया गया है। लेखिका ने उपन्यास की भूमिका में इस बात का उल्लेख किया है कि आज तक जनमानस में सीता का आदर्श रूप ही दिखाया गया है- आदर्श बेटी, आदर्श पत्नी और आदर्श माँ के रूप में। तीनों ही रूपों में उसे बहुत संघर्ष करना पड़ा लेकिन उसने एक कर्त्तव्यपारायण स्त्री के रूप में सभी भूमिकाओं का निर्वहन बेहद गरिमा के साथ किया। जाहिर है, आशा प्रभात की सीता ऐसी होती तो सीता की अनंत कथाओं के होते हुए एक और कथा की जरुरत ही नहीं पड़ती।

उपन्यास लिखते हुए आशा जी ने सीता के इसी रूढ़ किरदार को खंडित करने का प्रयास किया है। सीता के जिस मूक रूप, जिस समर्पित रूप को अभी तक हिन्दू आदर्श स्त्री के रूप में दिखाया जाता रहा है लेखिका ने सीता के निशब्द, प्रतिबद्ध समर्पण को उनके विद्रोह की तरह देखा है। यह बहुत मौलिक व्याख्या लगी और आम मध्यवर्गीय गृहिणी के जीवन के अधिक करीब लगी, जो कभी अपने असंतोष को प्रकट नहीं करती, बल्कि मौन रहकर विद्रोह करती हैं और पत्नी, माँ के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वाह करती रहती हैं। यह महज संयोग है कि अमीश सीता को वीरांगना रूप में दिखाते हैं और आशा जी भी सीता के किरदार के शौर्य की चर्चा करती हैं। अपने निर्णय खुद लेती हैं।

यहीं पर आज के सबसे चर्चित मिथक कथा लेखक देवदत्त पट्टनायक की पुस्तक ‘सीता के पांच निर्णय’ का ध्यान हो आता है। ‘सीता के पांच निर्णय’ उपन्यास नहीं है बल्कि शास्त्रीय कथा में लेखक ने लोक के अलग अलग स्रोतों में प्रचलित कथाओं को सीता की मूल मिथकीय कथा के साथ इस तरह मिलाया है कि उनकी पुस्तक का स्वरुप गल्पात्मक लगने लगता है। उन्होंने लिखा है कि राम की कथा में सीता के निर्णयों की ऐसी अमिट छाप है कि वाल्मीकि रामायण को ‘सीता चरितम’ भी कहा जाता है। बहरहाल, देवदत्त पट्टनायक ने लिखा है कि सीता किसी भी तरह से विक्टिम नहीं थी। बल्कि सीता ने अपने जीवन में पांच ऐसे निर्णय लिए जिन्होंने राम कथा का निर्धारण किया। कहने का मतलब है कि उनके मुताबिक़ सीता किसी भी लिहाज से कमजोर स्त्री नहीं थी, बल्कि एक सशक्त मुखर स्त्री थी।

आशा प्रभात की सीता-कथा ‘मैं जनक नंदिनी’ में भी अनेक मौलिक उद्भावनाएँ, मौलिक प्रसंग हैं। आशा जी की सीता कथा में मुझे यह नवीनता लगी कि इसमें जो कथा कही गई है वह जनक पुत्री सीता की है, राम की पत्नी सीता की नहीं। उनके पुत्री रूप को लेखिका ने विस्तार से दिखाया है. असल में, उपन्यास-लेखिका आशा प्रभात मूल रूप से सीतामढ़ी की रहने वाली हैं. सीतामढ़ी के बारे में यह मान्यता रही है कि राजा जनक को सीता यहीं मिली थीं. इसलिए सीतामढ़ी के लोक में जनक पुत्री, जनक दुलारी, जनक नंदिनी की कथाएं ही कही-सुनी जाती रही हैं. कहीं न कहीं लेखिका को जनक पुत्री की कथा कहने की प्रेरणा लोक की इन्हीं कथाओं से मिली होगी. मुझे जो प्रसंग सबसे मार्मिक लगा वह यह है कि उपन्यास में सीता के विवाह के अवसर पर मिथिला में गाये जाने वाले विवाह गीतों का इस्तेमाल किया गया है। मिथिला की धरती पर सीता के गीत गाये जाते हैं, विवाह का हर गीत में सीता के विवाह के प्रसंग को उठाया जाता है। लेखिका ने उसकी याद दिला दी।

लेकिन जो सबसे मौलिक, क्रांतिकारी उद्भावना है वह सीता-राम की कथा को बेहद क्रांतिकारी आयाम देता है। उपन्यास के अंत में सीता भरी सभा में इक्ष्वाकु वंश की धरोहर लव-कुश को राम को सौंप देती है। जब राम उससे वापस आने के लिए कहते हैं तो सीता राम से कहती है कि आपने अपने पति धर्म का निर्वाह नहीं किया इसलिए मैं जनक नंदिनी जानकी आपका परित्याग करती हूँ। सीता को इस रूप में कभी सोचा नहीं गया होगा। लेकिन आशा प्रभात का यह उपन्यास बहुत तार्किक तरीके से इस चरम सत्य के उद्घाटन तक पहुँचता है।

उपन्यास की कथा सीता के माँ रूप के वर्णन से शुरू होता है और माँ की जिम्मेदारी पूरी करते ही सीता विद्रोह कर देती है। यह सीता का समकालीन रूप है। सीता समकालीन नारी लगने लगती है। संघर्षों के बीच अपने जीवन के कर्तव्यों को पूरा करने वाली। 319 पृष्ठ का यह उपन्यास सीता की अनंत कथाओं में एक नया एंगल देने वाला है।

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मैं जनक नंदिनी; आशा प्रभात; राजकमल प्रकाशन; पृष्ठ-319; मूल्य- 299(पेपरबैक)

 
      

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