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लड़की होना कोई मज़ाक है क्या!

रचना भोला यामिनी के प्यार भरे किस्से हम पढ़ते रहते हैं. यह नया है. बताइयेगा, कैसा लगा- मॉडरेटर

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प्यारऔर क्या

जीवन में प्यार इतने  रंगों और रूपों में बसा है कि इसे देखने के लिए आपको मन की आँखों से देखना होगा.. दिल की धड़कनों से सुनना होगा और रगों में बहते लहू की रवानी सा महसूस करना होगा ..

इस श्रृंखला की कहानियाँ कोई कहानियाँ नहीं.. बस उसी प्यार की लरज़ती ख़ुशबुओं के चंद क़तरे हैं जो ज़िन्दगी को इत्र सा महकाये रखते हैं.

पात्रों को किसी भी नाम से परे केवल लड़का और लड़की का सम्बोधन दिया गया है ताकि किसी भी आयु या रिलेशनशिप का पाठक इनसे जुड़ाव महसूस कर सके.

 1. यह रूप अनूठा

ब्याह हुए पूरे दो माह हो गए। सारे घर ने लड़की को ऐसा दुलार दिया मानो फूल से टूटी कोई गुलाबी पंखुड़ी हो। हरदम हथेली पर धरे रुई के नरम फाहे सा संभाले रखते। जब भी उसे घर की याद सताती तो देवर कॉलेज की बातें बताने लगता तो ननद कोई नया हेयरस्टाइल बनाने की जिद ठान लेती। ददिया सास गोद में खींच कर पीठ सहलाने लगतीं तो ससुर जी मुहल्ले के हलवाई से झट समोसे और इमरती बँधवा लाते। सासू माँ उसकी पसंद का खाना बनवा कर सामने बिठा कर खिलातीं और ममता भरी नज़रों से चुपके से, माँ की तरह मन को सहला देतीं।
फिर लड़के की दूसरे शहर में नौकरी लग गई। दोनों के जाने की तैयारियाँ पूरी कर दी गईं और उन्होंने जाते ही, एक ही दिन में अपनी नई गृहस्थी जमा ली। लड़के ने पूरी होशियारी से सारी भूमिका निभाई।
दिन ढलते-ढलते लड़का अनमना सा हो आया। टी.वी. के रिमोट से कुछ देर खेलने के बाद बाहर का चक्कर लगा आया। बालकनी में गमलों को पानी देने के बाद कुछ देर यूँ ही वहीं खड़ा रहा।
फिर दीवार पर सजी तस्वीरों को उतार कर, नए सिरे से सजाने लगा। अपनी पढ़ने-लिखने की मेज की दिशा बदल दी। सारी क़िताबें सँवार कर रखीं और जब कुछ करने को नहीं बचा तो थकान का बहाना कर, बाजू को आँखों पर रखे, बिस्तर पर जा पड़ा।
लड़की रसोई से बाहर आई तो हाथों में लड़के की मनपसंद उड़द की सूखी दाल के साथ मटर पनीर की भुर्जी और रोटियों से सजी थाली थी। उसने किसी तरह लड़के को उठा कर, बातों में बहला कर खाना खिलाया। फिर रात तीन बजे तक, वह लड़के का सिर गोद में लिए बैठी, उसके बाल सहलाती रही। अपनी जंभाईयों पर जबरन रोक लगाती, उसके बचपन के सारे किस्से और रिश्तेदारों की कहानियाँ सुनती रही। पूरे उल्लास से हुमक-हुमक कर हुँकारे भरती रही…
क्या लड़की नहीं जानती कि लड़का भी पहली बार अपने घर से दूर आया है।

उसे भी तो अपनी माँ की याद सता रही होगी!!!
प्यार का भी कोई एक रूप होता है भला .

  1. पर्देदारी

ससुराल का पहला दिन… लड़की सकुचाई हुई बाथरूम से बाहर निकली। भारी कपड़े बदल कर देह को सुकून मिला पर मन का भार ज्यों का त्यों था। अनजान माहौल, लगभग अनजान दिखते चेहरे और उनकी हँसी-ठिठोली के बीच अपनी व्याकुलता को छिपा औपचारिकतावश मीठी मुस्कानों के अर्घ्य बिखेरती लड़की! उसकी मुट्ठी बंद थी। तौलिये के नीचे, हाथ में पसीज रहे कागज के बीच बदला हुआ सैनेटरी नेपकिन था। शुक्र है कि पर्स में शगुन का खाली लिफाफा मिल गया वरना वह क्या करती।
पैड तो बदल लिया पर अब अगला कदम यह था कि उसे कूड़ेदान के हवाले कैसे किया जाए। पैड छिपाया भी नहीं जा सकता था, उसकी बदबू आती रहती और उस समय कमरे में उसका कोई सामान अपना नहीं था। रिश्ते की ममेरी, फुफेरी, चचेरी और सगी ननदों के अलावा ब्याह-शादियों में जबरन अपना प्यार दिखाने वाले रिश्तेदार भी बड़े ही अधिकार से उसके सारे सामान को उलट-पुलट कर रहे थे। उनके बीच अपना गंदा पैड कहाँ छिपाया जा सकता था!!!! उफ्फ!!! लड़की होना कोई मज़ाक है क्या!

लड़की की आँखें पनिया गईं। तभी दो लड़कियाँ भीतर आईं। उसने इशारे से उन्हें बात समझानी चाही पर जाने वे क्या समझीं कि एक-दूसरे पर गिर कर हँसी से लोटपोट हो गईं। ये संकेत भाषा भी जो न कराए सो थोड़ा। बाहर से तकाज़े आने लगे थे कि दुल्हन को तैयार करवा कर, जल्दी से पेशतर नीचे लाया जाए ताकि कुलदेवता के पूजन की रस्म पूरी हो सके।
एक छोटी बच्ची ने अचानक उसके हाथ से तौलिया छीन लिया और लडियाई, ‘चलो भाबी! आपको छब नीचे बुला लए हैं।’ तौलिया हटते ही मुट्ठी की पकड़ और कस गई। दो बड़ी ननदें भीतर आईं और लड़की उनकी ओर मुड़ी ताकि अपनी बात कह सके पर उनके साथ ही जीजा जी और लड़का भी भीतर आ गए। हो गया कबाड़ा!!!! पहले ही जु़बान नहीं खुल रही थी। अब क्या ख़ाक़ पूछेगी …
‘नई दुलहनिया! चलो जी, तैयार होने को तो उम्र पड़ी है। हमें तो भूखा मत मारो। आपके चक्कर में हमें नाश्ता नहीं मिल रहा।’
लड़की के मुख से बमुश्क़िल फूटा, ‘जी!!’
‘अरे चलो न, भाभी को नीचे ही थोड़ा तैयार कर देंगे। बाबूजी रिसिया रहे हैं।’ गाजियाबाद वाली ननद ने कहा।
लड़का बहुत ध्यान से लड़की को देख रहा था। इतने प्यारे और खुशगवार माहौल के बीच उसके चेहरे पर एक अजीब सी मायूसी और आँखों में बेचारगी क्यों दिख रही थी। जैसे ही ननदों ने लड़की को बाहर चलने का संकेत किया और आगे बढ़ीं। लड़के ने धीरे से लड़की की पीठ के पीछे दुबकी मुट्ठी को छुआ। लड़की का चूड़े से लक-दक करता हाथ सिहर उठा . फिर लड़के ने वहीं खड़े-खड़े उसके हाथ का गंदे पैड वाला लिफाफा अपने हाथ में ले लिया और लड़की को आँखों से दिलासा दिया कि वह उसका काम कर देगा। लड़की लजा कर नीचे चल दी। ससुराल में बहूरानी मुक्तमन से अपना पहला कर्तव्य निभाने जा रही थी।
लड़के और लड़की के बीच भरोसे की पहली नींव रखी जा चुकी थी !!!

प्यार में कैसी पर्देदारी !

  1. यादगार डिनर
    लड़के ने बिजली के बिल के लिए रखे पैसे जेब के हवाले किए और मन ही मन बोला, ‘आज इसे बाहर खाना खिला लाता हूँ! कितने दिन से कह रही है …बिल के पैसों का इंतज़ाम बाद में देखा जाएगा।’
    उसने आवाज़ लगाई, ‘चलो! आज तुम्हें सैर करवाई जाए। डिनर भी बाहर ही कर लेंगे।
    लड़की दस मिनट में साथ चलने को तैयार थी। उसके चेहरे की खु़शी लड़के के लिए किसी नियामत से कम थोड़ी थी।
    ज्यों ही लड़के ने शहर के बड़े रेस्त्राँ के आगे बाइक पार्क की और वे भीतर जाने लगे तो लड़की अचानक पलटी और उसे चाट वाले के ठेले की ओर खींच ले गई।
    लड़की ने ढेर सारी तीख़ी-मीठी बातों के साथ गोलगप्पों और एक प्लेट टिक्की का ऑर्डर कर दिया। खट्टे पानी और हरी चटनी से भरे गोलगप्पे गपागप उसके मुँह में जाने लगे। लड़का धीरे-धीरे सूजी के छोटे गोलगप्पे खा रहा था। लड़की लड़के के मुँह में बड़े साइज़ वाला आटे का गोलगप्पा ठूँसने की ज़िद पर मचली और जब उसका एक गोलगप्पा खाने से पहले ही प्लेट में टूट गया… तो उसने छोटी बच्ची की तरह गोलगप्पे वाले को मुँह चिढ़ाया …..फिर लड़के की किसी बात पर, मुँह में पानी भर कर, इतना हँसी कि आँखों से आँसू छलक उठे और मुँह से पानी बाहर आते-आते बचा। दोनों ने टिक्की की फुल प्लेट में तीन बार हरी चटनी और दो बार मूली के लच्छे डलवाए और टिक्की खाने के बाद भी एक-एक राउंड खट्टा-मीठा पानी पीया। लड़के के लाख कहने पर भी लड़की ने कुछ और खाने से मना कर दिया। जब वह सिसकारी भरते हुए मीठी चटनी वाली पापड़ी खाने लगी तो सारी चटनी होठों पर लग गई। लड़के ने उसके होंठ के कोर पर लगी चटनी टिश्यू से पोंछी और शरारती निगाहों से उसे घूरा….
    लड़की ने आँखों ही आँखों में बरजा और जीभ दिखा कर बाइक की ओर चल दी।
    बिजली के बिल के पैसे ज्यों के त्यों धरे थे…लड़की का डिनर तो उसकी जेब में रखे खुले पैसों से ही पूरा हो गया था….

    कुछ डिनर ऐसे भी होते हैं….!

  अनकहे शब्द

जब लड़की किसी ऊँचे रेस्त्राँ में जा बैठती है कुर्सी पर आलथी-पालथी लगाए, सभी औपचारिकताओं के बीच, पूरी ढिठाई से …. झट से उठा लेती है अपनी गर्म चाय का प्याला क्योंकि वह ठंडी चाय नहीं पी सकती ; जब वह खाने की मेज़ पर दही की कटोरी गिलास में उलट, पानी मिला कर गटकने लगती है छाछ ; जब जान कर शब्दों के गलत उच्चारण के बीच इतराती है ; अपनी किसी बात पर अड़ कर बेमतलब की बहस बढ़ाती है ; जब पी कर पानी, एक लंबा डकार मार कर शान दिखाती है ; एस्केलेटर्स पर चढ़ते-उतरते हिचक कर पकड़ लेती है, लड़के की कमीज़ ; दुकानों पर मोल-तोल करते हुए बन जाती है पूरी कुंजड़िन, सड़क पर अचानक गाड़ी के सामने आ गए किसी वाहन के चालक को सुनाती है कुछ अपशब्दनुमा श्लोक ; जब एक घंटे के फंक्शन में जाने के लिए तैयार होने में लगा देती है पूरे तीन घंटे और कहती है, फिर…‘कोई बात नहीं, बचा हुआ मेकअप रास्ते में कर लूँगी।’ जब डाल देती है सब्जी में नमक ज्यादा और कॉफी में डालनी भूल जाती है चीनी, जब लड़की बालों को बिन सँवारे, टीशर्ट-पायजामे में ही अटेंड कर लेती है गेस्ट; सबके बीच सुनाने लगती है पकाऊ जोक्स और खुद ही हँस-हँस कर होने लगती है दोहरी …

तो लड़का अनदेखा-अनसुना कर देता है सब कुछ….

जब लड़का मुँह पोंछने के तौलिए से पोंछता है अपने धुले पैर, जब नहीं करता कई-कई दिन तक शेव, जब वह सबके बीच पाद कर, कर देता है लड़की को अपदस्थ, जब वह बिन बताए हो जाता है घर से गायब, देर रात लौटता है दोस्तों संग बतियाता, जब लड़का रात की बची दाल को खाने से कर देता है साफ इंकार, किसी दुकान से उठा लाता है घटिया माल, अचानक दे देता है किसी घटना पर तीखी प्रतिक्रिया, जब सुन कर लड़की के किस्से भरने लगता है उबासियाँ, बचे-खुचे चावलों से बनी नई डिश को नहीं देता अपनी मंज़ूरी, जब लड़का बेरहमी से नाक सुकड़ते हुए, सबके बीच मारता है भयावह सुर में गूँजती छीकें…
तो लड़की अनदेखा-अनसुना कर देती है सब कुछ …

पर वे दोनों नहीं करते अनदेखा-अनुसना जब…
दोनों में से कोई भी कर रहा हो महसूस अकेला … किसी एक के भी काम में आ रही हो अड़चन….कोई एक करना चाहता हो मन की बात…. कह कर हल्का करना चाहता हो अपने काम का तनाव….कोई एक कर रहा हो, दूसरे के निकट स्पर्श की कामना, कोई एक करना चाह रहा हो मूड फ्रेश किसी आईसक्रीम या चॉकलेट के स्वाद के साथ, जब कोई एक ले कर बेवक्ती नींद … करना चाहता हो अपनी बैटरी रीचार्ज, जब कोई एक यूँ ही बेवजह चाह रहा हो गले लग कर रोना, एक-दूसरे का हाथ थामे छत पर दूर क्षितिज को तकना, जब कोई सबके बीच कहना चाह रहो हो अपनी आँखों की पुतलियों में झलकते असीम स्नेह के साथ …

 लव यू जान !

  1. प्रेम की मिठास

लड़की ने सारे घर का मुआयना किया और प्रॉपर्टी डीलर से बात कर रहे लड़के के पास जा कर पूछा, ‘वो घर कित्ता बड़ा था। जो आपने कल देखा था? आई वाना डू सम कंपेरीज़न।’
‘जी मैम, वह लगभग सौ गज का है।’ जवाब प्रॉपर्टी डीलर ने दिया।
लड़की ने सवालिया नज़रों से लड़के को देखा तो वह बोला, ‘अरे हमारे मिश्रा जी के घर के बराबर ही लगा लो। बस अंदाज़न उतना ही बड़ा था।’
लड़की संतुष्ट भाव से कमरे खोल-खोल कर देखने लगी। नए बने मकान की गंध सबके नथुनों में घुसी जा रही थी। लड़का प्रॉपर्टी डीलर से घर की कीमत के बारे में बातचीत कर रहा था कि लड़की ने फिर से टाँग अड़ाई, ‘सुनो, उस घर में कमरे कित्ते बड़े थे? आई मीन …।’
प्रॉपर्टी डीलर को लगा कि मैडम को बड़े घर में दिलचस्पी हो रही है इसलिए उसे ही जवाब देना चाहिए। वह बोला, ‘मैम! वहाँ हॉल कमरा तेईस बाई तीस फुट का और बेडरूम क़रीबन तेरह बाई दस फुट के हैं।’
लड़की ने उसकी बात सुन कर सिर हिलाया और फिर बड़े ही लगाव से लड़के को देखा। वह उसके कंधों पर हाथ रख कर बोला, ‘हमारे बरेली वाले घर में दादा जी का कमरा देखा है? बेडरूम तो उतने ही बड़े लगा लो और हॉल, मिसेज़ शर्मा के हॉल कमरे जितना बड़ा था।’
लड़की निश्चिंत भाव से बोली, ‘नहीं जी! मुझे तो यही बेहतर लग रहा है। आप इसकी ही बात कर लो। हमारे बजट में भी है।’
प्रॉपर्टी डीलर लड़की की नादानी पर दाँत निपोरे बिना रह नही सका जो बात-बात पर, छोटी बच्चियों की तरह लड़के से सवाल करने लगती थी। ‘ही-ही-ही… लगता है मैडम को सब समझाना ही पड़ता है.’ लड़के ने उसके चेहरे पर लड़की के प्रति तिरस्कार के भाव देखे तो कड़े सुर में बोला, ‘यह ज़रूरी नहीं कि दुनिया में हर किसी को, हर बात की जानकारी हो। हर इंसान के ज्ञान की एक सीमा होती है।’ प्रॉपर्टी डीलर ने खिसिया कर बात पलट दी।
लड़का अच्छी तरह जानता है कि लड़की अक्सर मापतोल की बातों में कंफ़्यूज़ हो जाती है और उसे उदाहरण सहित समझाना पड़ता है तो क्या इतने से ही वह लड़की को बेवकूफ़ मान लेगा। क्या वह नहीं जानता कि जब लड़की धाराप्रवाह फ्रेंच में बात करती है तो बड़े-बड़े भी दाँतों तले ऊँगली दबा लेते हैं।

प्यार करने वाले अपने साथी के साथ कमियों और अधूरेपन को भी खू़बियों की तरह ही बाँटा करते हैं!!!

प्यार में मीठा – मीठा गप्प और कड़वा – कड़वा थू नहीं होता रे !

 

 
      

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11 comments

  1. मुकेश कुमार सिन्हा

    लाजबाव करती लघु प्रेम कथाएं ……. 🙂

  2. bahut acha article likha hai aapne

  3. yasir apka dhanyvad

  4. kya gajab ki kavita likhate ho

  5. Article to bahut hi badiya hai

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