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सुरेन्द्र मोहन पाठक और ‘न बैरी न कोई बेगाना’

हिंदी क्राइम फिक्शन के बेताज बादशाह सुरेन्द्र मोहन पाठक की आत्मकथा ‘न बैरी न कोई बेगाना’ का लोकार्पण जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में हुआ. इसका प्रकाशन वेस्टलैंड ने किया है. अब पाठक जी के पाठकों के लिए ख़ुशी की बात यह है कि 16 फ़रवरी से यह आत्मकथा पाठक जी के पाठकों के लिए बुकस्टोर्स में उपलब्ध हो जाएगी- मॉडरेटर

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भारतीय लोकप्रिय कथा साहित्य हमेशा से मुख्यधारा के लेखन और प्रकाशन से अलग स्वतंत्र रूप से अस्तित्व में रहा है। इसके पाठकों ने भी अपना अलग स्थान बना रखा था। मगर, पचास के दशक में उर्दू लेखक इब्ने सफ़ी की अपराध कथा सीरीज़ जासूसी दुनिया और इमरान सीरीज़ ने सबके दिमाग़ों पर घर कर लिया था। यहां तक कि,  पाकिस्तान चले जाने के बाद भी इब्ने सफ़ी भारत में प्रकाशित होते रहे थे। उनके बाद की पीढ़ी के आकांक्षी लेखक उनके लेखन से अत्यंत प्रभावित थे। उनमें से ही एक थे किशोरवय के सुरेंद्र मोहन पाठक जो जेब में सफ़ी के उपन्यास लिए स्कूल से पहले, बीच में और बाद में दिल्ली के जामा मस्जिद क्षेत्र की गलियों में मंडराते रहते थे। तब किसी ने नहीं सोचा होगा कि वो भारत के सबसे ज़्यादा सफल अपराध लेखक बनेंगे।

पाठक 58 साल से निरंतर लिखते आ रहे हैं, और इस लंबी एवं सफल पारी में, उनके प्रशंसकों की तादाद और उन्हें मिली लोकप्रियता इस बात के सबूत हैं कि पाठक बेहतरीन कथाकार हैं। और इसीलिए अक्सर उन्हें अपराध लेखन का बादशाह कहा जाता है। एसएमपी, जैसा कि हम उन्हें जानते हैं, इस मायने में अनूठे हैं कि वे अपने नए उपन्यासों की भूमिका में अपने प्रशंसकों से प्राप्त फ़ीडबैक पर चर्चा करते हैं, वादा करते हैं कि अगली बार बेहतर लिखेंगे – और अपना वादा पूरा करते हैं।

अब हम पेश करते हैं पाठक के अपने जीवन की बहुप्रतीक्षित कहानी, उनकी 298वीं पुस्तक, उनकी अपनी ज़बानी। उनका लेखन कैरियर, इंडियन टेलीफोन इंडस्ट्रीज में अपनी पूर्णकालिक नौकरी के साथ-साथ 1960 के दशक के आसपास आरंभ हुआ था। उनकी पहली कहानी सत्तावन साल पुराना आदमी उस समय की एक अत्यंत लोकप्रिय पत्रिका मनोहर कहानियां में प्रकाशित हुई थी। उनका पहला उपन्यास पुराने गुनाह नए गुनाहगार 1963 में एक अन्य बहुत पढ़ी जाने वाली पत्रिका नीलम जासूस में प्रकाशित हुआ था। इसके बाद, उन्होंने उपन्यासों की श्रृंखला आरंभ की जिसका हीरो एक जासूसी पत्रकार सुनील चक्रवर्ती था; सुनील सीरीज़ 121 पुस्तकों तक चली। पाठक ने अपनी दूसरी सीरीज़, सुधीर सीरीज़, के लिए एक अन्य पॉपुलर हीरो गढ़ा, प्राइवेट डिटेक्टिव सुधीर कोहली। जीत सीरीज़ में एक चाभी बनाने वाला है जो दिल टूटने पर जुर्म की दुनिया में आ जाता है। मगर पाठक के सबसे पसंदीदा उपन्यास विमल सीरीज़ के रहे जिनका हीरो सरदार सुरेंद्र सिंह सोहल एक ज़मीर वाला ग़ुंडा है।

1977 में प्रकाशित उनका उपन्यास पैंसठ लाख की डकैती ब्लॉकबस्टर था जिसकी आज तक 2,50,0000 के लगभग प्रतियां बिक चुकी हैं। पाठक के उपन्यास कोलाबा कॉन्सपिरेसी को 2014 में Amazon.in पर सबसे ज़्यादा लोकप्रिय पुस्तक चुना गया था। उनका नवीनतम उपन्यास हेरा-फेरी  नवंबर 2017 के नीलसेन हिंदी चार्ट में शीर्ष पर था। उनकी पुस्तकें लाखों की तादाद में बिकी हैं, और पूरे हिंदी प्रदेश में उनके प्रशंसकों की भारी तादाद है।

 
      

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3 comments

  1. लगभग 2,50,000 नहीं बल्कि लगभग 2,50,00,000 प्रतियाँ बिकी थीं।

  2. निश्‍चय ही यह पुस्‍तक भी उनके उपन्‍यासों की तरह एक सांस में खत्‍म करने वाली होगी।

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