Home / Featured / ख़ला के नाम पर जितने ख़ुदा थे, मर चुके हैं

ख़ला के नाम पर जितने ख़ुदा थे, मर चुके हैं

निस्तब्ध हूँ. त्रिपुरारि की इस नज्म को पढ़कर- मॉडरेटर

================================

 

गैंग-रेप / त्रिपुरारि

ये मेरा जिस्म इक मंदिर की सूरत है
जहाँ पर रोज़ ही अब रूह का गैंग-रेप होता है
मुझे महसूस होता है—
दयार-ए-आँख में कुछ ख़्वाब जो आधे अधूरे रह गए थे
सोचते हैं अब कि नफ़रत को नई सीढ़ी बना कर के
पहुंच जाएँगे उस मन के मकानों तक
जहाँ पर रोशनी का राज चलता है
जहाँ पर ज़िंदगी
ख़ुशरंग आँचल ओढ़ती है, रक़्स करती है
जहाँ पर इक तबस्सुम
रात-दिन होंठों के आँगन में बरसता है
जहाँ पर धमनियों में
ख़ुशबुओं का कारवाँ आबाद रहता है
मगर कैसे बताऊँ मैं
कि जब भी देखता हूँ मन के उन कच्चे मकानों को
तो यूँ लगता है—
जैसे सिसकियों की खुरदुरी आवाज़
दीवारों के सीने में मुसलसल घुट रही है
दरीचों पर सितारों का कटा सिर भी लटकता है
वहीं कुछ दूर ड्योढ़ी पर
सुनहरी चाँदनी का गोश्त बिकता है
वो नन्ही साँस
जो रंगीं ख़यालों के किसी टब में नहाती थी
किसी ने घोंट डाला है गला उसका
किसी ने छील डाला मौसम-ए-दिल को
लहू पानी में घुलता जा रहा है
और अब इस बात की ज़िंदा गवाही दे रहा है
कहकशाओं में
ख़ला के नाम पर जितने ख़ुदा थे, मर चुके हैं
जो पहरेदार थे, ख़ुद की तिजारत कर चुके हैं

 
      

About Prabhat Ranjan

Check Also

ज़ेरी पिंटो के उपन्यास ‘माहिम में कत्ल’ का एक अंश

हाल में ही राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित उपन्यास ‘माहिम में क़त्ल’ का मुंबई में लोकार्पण …

2 comments

  1. इतना वक्त नहीं खुदा के पास कि आकर मिलें नन्हीं जान से उसके शहर मे दरिंदें इतने हो गये कि उसे शक खुद कि शख्सियत पर हो गया।

  2. ख़ला के नाम पर जितने ख़ुदा थे, मर चुके हैं
    जो पहरेदार थे, ख़ुद की तिजारत कर चुके हैं
    बेहतरीन नज़्म है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *