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सिंगापुर शहर कम है, उपभोक्तावाद का मंदिर है

यात्राओं का मौसम चल रहा है. कोई कहीं जा रहा है, कोई लौट रहा है. युवा लेखिका अनुकृति उपाध्याय की कहानियां हम पढ़ते रहे हैं. इस बार वह सिंगापुर डायरी के साथ आई हैं. सिंगापुर की कुछ छवियाँ उनके सम्मोहक गद्य में पढ़िए- मॉडरेटर
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सिंगापुर – १

“हम सिंगापुर के हवाई अड्डे पर उतरने वाले हैं।” स्टूअरडैस हल्के झुक कर मन्द्र सुरों में कहती है। मैं आँखों पर से काली पट्टी हटा देती हूँ और खिड़की का पट उँचा कर देती हूँ। बाहर के नीलाकाश पर उजाला पुत गया है। पाँच हज़ार मीलों का सफ़र साढ़े पाँच घण्टों में। लेकिन इस सफ़र में दो घण्टे कहीं इधर उधर हो गए हैं। भारत  में सवा छः हुए हैं और सिंगापुर में पौने नौ। ” आप कुछ लेंगी? चाय, कॉफ़ी…?” मैं उसे ग़ौर से देखती हूँ। कल रात वह ‘गैली’ में अपनी सहकर्मिणी से  खुली, खनकती आवाज़ में बातें कर रही थी। उसकी शादी निश्चित हुई है। “लव मैरिज नहीं, अरेंज्ड” माने अपनी पसंद से नहीं, ना तो नापसन्द से ही, बस जोड़ मिला कर। वह चिंतित थी, उसका मंगेतर लंडन में रहता है “लेकिन उसका रहन-सहन शायद ‘कंज़र्वेटिव’ है, मुझ से अलग….मेरे पापा ख़ुश नहीं हैं…’ही इज़ वरीड’…” उसका चेहरा सम है, भवें सधी, मुस्कान यथास्थान। ” नहीं, ‘आए एम फ़ाइन, थैंक्स'” मैं कहती हूँ। वह मेरी ओढ़न बिछावन समेटने लगती है। “एन्ड कांग्रेचुलेशन्स’, शादी के लिए शुभकामनाएँ।” वह क्षण भर को चौंक पड़ती है और फिर खिलखिला कर हँसती है। “‘थैंक्स’… शादी दिसम्बर में है!”

#२
सिंगापुर का हवाई अड्डा। निंदासी आँखों को मलते उतरो और ख़ुद को एक भरेपूरे बाज़ार के बीच पाओ। ज़रूरत, बेजरूरत की सभी चीजें। आप थके हैं, तो काफ़ी पीजिए, या चाय या स्पा में मालिश करवा लीजिए या क्लान्त चेहरे को फलां क्रीम से कांतिवान कर लीजिए और बासीपन को ढिमाका ख़ुशबू से ताज़ा, ख़रीदिए, ख़रीदिए, कुछ तो ख़रीदिए, अच्छा, कुछ नहीं तो चॉक्लेट्स ही ले जाइए, नहीं? कोई बात नहीं, फिर आइए। हवाईअड्डे के बाहर का सिंगापुर भी एक बड़ा, सामान से सजा बाज़ार है। दुनिया भर की ब्रांड्स, तरह तरह का असबाब, किस्म किस्म की जिन्सें। एक देखने जाओ तो दस से ललचा जाओ। शहर कम है, उपभोक्तावाद का मंदिर है।
#३
सड़क के दोनों ओर ‘रेन ट्री’ की कतारें हैं। हमारे शिरीष के फूलहीन बन्धु हैं यह, हरी पत्तियों के छत्रों से बादलों से धुँधले आकाश को हरिया रहे हैं। जहाँ तहाँ ‘फ़र्न’, ‘ऑर्किड’ और दीगर पौधे उनकी लहीम शहीम शाखों से लटक रहे हैं। हर छः महीनों में इन्हें काटा छाँटा जाता है, देख रेख में इतनी धन राशि, साज संभाल को इतने लोग, हमारा ड्राइवर बताता है। ट्रैफ़िक कुछ धीमा है आज, वह कहता है, ट्रम्प और किम जोंग उन आए हैं, एक सेंट रीजिस में ठहरा है, दूसरा शांग्रीला में, आर्चर्ड रॉड पर। जगह जगह सड़कें बन्द, बीस मिनट का रास्ता पैंतालीस मिनट में तय हुआ। ऐसा कभी नहीं हुआ। वह भर्त्सना में सिर हिलाता है। लेकिन सिंगापुर की छवि बढ़ी है, नक़्शे पर एक छोटी लाल बिंदी हैं हम, अब विश्व के लोग हमारे बारे में बात कर रहे है। हम सबसे सुरक्षित, सबसे कुशल देश हैं कि इतने बड़े सम्मिट के लिए हमें चुना। उसके स्वर में गर्व है। आकाश में बादलों का कम्बल एक कोने पर जर्जर हो गया है, सुनहरी किरणें झर रही हैं।
#४
मैं एक प्रवासी की निरपेक्ष दृष्टि से सिंगापुर का महानगर देखती हूँ। पचास वर्षों का जवान नगर-देश। एक व्यक्ति के प्रयत्नों और कल्पना से बना।  उन्नीसवीं सदी के आरम्भ तक एक सौ पचास निवासियों वाला दलदल कैसे आज के आधुनिक सिंगापुर में बदला, कैसे ली क्वान यू ने मलेशिया में से ये ज़रा सा समुद्र तटीय टुकड़ा तराश लिया, कैसे सालों आगे की सोच से इसे जोड़ा-सँजोया। मनुष्य की कर्मठता का नमूना है सिंगापुर। हर दृश्य-वस्तु यहाँ मानव-निर्मित है, सेंटोसा के क्रीड़ा-द्वीप से ले कर तरह-तरह की जलवायु के पेड़-पौधों वाले ‘गार्डन्स बाए द बे’ तक। हर चीज़ का दाम नियत, सरकारी पहचानपत्र लेने अपने मनचाहे समय पर जाना हो या दोपहर को आर्चर्ड रोड पर गाड़ी ले जानी हो। साफ़ सुथरा, समृद्ध, सधा बँधा खिलौना-नगर। देश-देश के, अनेक नस्लों के निवासी-प्रवासी, एशिया में हांगकांग के बाद वित्त का दूसरा मक्का। देश कम, एक सुचारू, नफ़ा कमाने वाला व्यावसायिक प्रतिष्ठान अधिक।
#५
टॉन्गलिन मॉल का स्टारबक्स सड़क की कुहनी पर है। कॉफ़ी के घूँटों के साथ लोगों का प्रवाह – माँएँ और बच्चे, कुत्ते टहलाती घर-काम करने वाली फिलिपीनो, इण्डोनेशियाई, बर्मी औरतें, युवा जोड़े, कामकाजी जन, आवाजाही, अफ़रा तफ़री, सड़क पर दौड़ती तीव्रगामी गाड़ियाँ और सड़क के उस ओर, पहली मंज़िल पर काँच की दीवार के उस पार अनसुने संगीत पर बैले नाचती छोटी लड़कियाँ, पैरों के पंजों पर देह साधती, बाँहों को मंद गरिमा से उठाती-गिरातीं। सिंगापुर के आकाश में संझा फूल रही है। भूमध्यरेखीय भंगुर गोधूलि जावक सी झर रही है। हर खोजता, आत्मस्थ, सायास सधा चेहरा रंगारंग है।
#६
बोटैनिकल गार्डन में धूप में भी छाया है। शिरीष, सेमल, राधाचूड़ा, चंपा, कपूर, ताड़ और जाने कितनी नस्लों के पेड़ों से हरा, शहर के बीचोंबीच साठ एकड़ में फैला यह उपवन साँवली सुंगधित लुभावनी राहों से भरा है। जगह जगह “हैरिटेज’ वृक्ष हैं। दीर्घ काल से धरती पर डटे ये अतिकाय वृक्ष, इस नगर की और अब विश्व भर की भी विरासत हैं, यूनेस्को ने 2015 में इस उपवन को ‘वर्ल्ड हेरिटेज’ घोषित किया है। मैं टेम्बुसु के विशद वृक्ष की छतनार शाखों में खुँसे आकाश को देखती हूँ। टेम्बुसु फुनगियों तक नन्हें हरिताभ फूलों से खचा है। उनकी महक से अनाम मीठे दुःख याद आते हैं। हरी झील में श्वेत हंस हैं और सरसराहट भरी झाड़ियों में मुर्ग़े, मुर्गियाँ और चूज़े। पेड़ के तनों पर गिलहरियाँ की सरगर्मी है। वे कत्थई भूरे रंग की हैं, चमकती मनकों सी आँखें और पंख सी फरैरी पूँछें, वे एक पेड़ से दूसरे पर यों कूदती हैं मानो उड़ रही हों। घनी जिज्ञासु हैं और फुर्तीली इतनी कि पलक झपकते ग़ायब। बाग़ में बड़ी भारी गोह छिपकलियाँ भी हैं। घास के टुकड़ों पर छाँव के धब्बों में जहाँ तहाँ पड़ी वे प्रागैतिहासिक काल के सरीसृपों की याद दिलाती हैं। हवा बाँसों में गा रही है और काले-सफ़ेद लहीम-शहीम धनेश पक्षी पुकार रहे हैं। जाने कौन सा मौसम है।
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