युवा कवि शुभम अग्रवाल (उम्र 27 वर्ष) हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लिखते हैं. उनकी कविताएँ इन दोनों भाषाओं में साहित्यक पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं. हिन्दी में उनका पहला कविता संग्रह लगभग तैयार है. वे गुड़गाँव में सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं.
1.
कवि
नहीं हूँ मैं
अगर होता
तो लिखता उन शब्दों को
जिन्हें चुना था ह्रदय में
मगर शब्द मायावी थे
उन्हें जोड़ने पर
वो था ही नहीं अर्थ
जिसकी की थी कल्पना मैंने
उन्हें स्वायत्त छोड़ने पर
निरर्थक थे वे
और उन्हें विभाजित करते-करते
अब सिर्फ रेखाएँ, बिन्दु और प्रतीक
ही शेष बचे हैं
कैसे बनूँगा कवि
अगर नहीं लिख पाया
इन शब्दों को।
2.
प्रेम
एक विचार था
सुन्दर
जिसे भोगना रहेगा बाकी
वास्तव में मैं
निर्लिप्त था
असहाय
निष्क्रिय
इस असहाय सृष्टि को
दे सकता था
अपनी असहायता।
3.
मैं
अमलतास के पेड़ के नीचे
खड़ा होकर
बुहारता हूँ
झड़े हुए फूलों के ढेर को
और सोचता हूँ
कि
लिखूँगा एक और कविता
मगर फिर
सोचता हूँ
कि
अपनी निरर्थकता को प्रमाणित करने का
यह मौसम ठीक नहीं।
4.
आँख
खुलती है
किस बेला में
नहीं जान पाती
तंग गलियारों में चलती
श्वासें
टोह लेती हैं
आगंतुकों की
स्मृति से/ का
नक़्शा लिए
फिरता है
हाथियों का समूह
संसार
भाषा
बूझती
अपरिचित
क्या तुम यहाँ से हो?
पूछता है कोई मुझसे
बार बार।
5.
क्रन्दन
रात का
भंग करने की चेष्ठा
उतर जाता है
ठहरा हुआ जल
निर्मोही
जागती है पिपासा
किवाड़
खुलते
बन्द होते
खुल जाते हैं
कोई था
जो बसता था इधर
पैरों के चिह्न
उकेरता हुआ
देह पर
पार करता नहर
आत्म की
भुला देता अर्थ
होने का।
6.
निर्लिप्त
बहता हुआ
मुड़ जाता है
उन्माद
चाँद
देखते ही देखते
पड़ जाता है ठण्डा
देह
छुपती
होठों की आड़ में
आँखें
कौंध जाती हैं
उजास की कल्पना से
किनारों पर जीता
ठहर जाना चाहता है
जीवन।
7.
शब्द
नहीं बचे हैं
अब कोई
निरस्त्र
हार जाता है
अस्त होता सूरज
फेर
रात दिन का
बदलता कुछ भी नहीं
बूढ़ा वृक्ष
गले हुए
तैरते तख़्ते
नाविक
बन्द कर देता है
खेना
आत्मा
डूब जाती है
उथली झील में।
8.
कोने में
ठण्डी उँगलियाँ उड़ रही है
सिगरेट जलाकर भूल जाता है
अँधेरा
घूंट उतरता हलक़ से
बरसाती जल फिसलता चला जाता है
जूतों के नीचे से
वह व्यक्ति जो पूछ रहा था
मेरी ध्वनि से
भाग जाते हैं निरीह परिंदे
आँखें
प्रयास करती हैं पहचानने का
सड़क पे
चलते हैं पाँव आदिम लहजे में
कोई जाता है
या
ले जाया जाता है
निर्णय नहीं हो पाता।
9.
भूल जाना सहसा
कि वह छुपा जाता है
प्रवृत्ति जो जंगली थी
चम्मच का थाली से टकराना
वह खो जाता है उस व्योम में
जहाँ नहीं पहुँच पाती
अनुभूति
वह बारीकी से गिनता है क़दम
हँसी के टुकड़े
पीछे कहीं
वह मुड़ेगा
या नहीं
वह देखेगा या नहीं
निरुत्तर
जैसे रेत के ढेर।
10.
एक ही क्षण में
भंग हो जाएगा
तिलिस्म
होंठ हिलते रहते हैं
पर कोई सुन नहीं पाता
प्रेत
जो मेरे अपने थे
निराकार
उन्हें बाँधे रखना
भूल भी हो सकती थी
शाखों का हिलना
शाखों का हिलना नहीं था
वह संकेत था
उस ऋतु का
जो कभी नहीं आती।
11.
आदमी
प्रतीक्षा करता है
प्रतीक्षारत आदमी की
बिखरे हुए टुकड़ों को
पंक्ति में लाना
एक असम्भव प्रक्रिया है
माटी में से
रिस आया जल
बहते-बहते
लुप्त हो जाता है
नदी
मोड़ पर आकर
लचीली कम
उत्तेजित अधिक हो जाती है
बह जाने की
कल्पना का विचार
डूब जाता है
एड़ियों को
पूरा उठा लेने पर भी
हाथ
कहीं नहीं पहुँचता।
12.
प्रेम
बढ़ता है
और कर लेता है
परिग्रहण
भेड़ों के ह्रदय का
उग आती है काई
पाषाणों पर
उसके छोटे कान
छुप जाते हैं
दो उँगलियों के दायरे में
उस विस्तार को
जिसे समेटा था
शैय्या पर
उस सूक्ष्म अवसाद को
जिसके लिए
छोटा था
आकाश
नाखुनों में
उतर आया नीला
नहीं छूटता
किसी तरह।
13.
कन्धों तक
उतर आये केश
छुपा जाते हैं
कोई बोलता है
और बोलता ही रहता है
मुख के मुहाने पे खड़े
हम देखते रहते हैं
रुके हुए
वक्तव्य तक
कौन लेकर जायेगा
पाँव
चलते रहते हैं
किसी अपरिचित गन्ध
की खोज में
समयकाल से उठती
मुस्कान
धुन्धलाती है
और लुप्त हो जाती है
डूबता ह्रदय
उभरने में प्रयासरत
उभरना नहीं चाहता।
14.
कहाँ है वह आसक्ति
जब चाहता हूँ
डूबना
पड़ना
मोहपाश में
एक खुला आमंत्रण
लौट आता है
बन्द
अधखुला
खुला
अस्वीकृत
मन
सोखता है अवसाद
जैसे सोखता है जल
लट्ठ
लकड़ी का
शिराएँ
पत्ते की
पंख
पाखी का।
15.
एकस्वर
निकलताहुआ
चीख़कीतरह
लौटआतीहै
ढूँढतेहुए
बिल्ली
बच्चेको
वर्षाजल
टकराताहैवस्त्रोंसे
औरउतरजाताहै
देहमें
संवादोंमेंसे
टूटकर
अलगहोजातेहैं
शब्द
अतार्किकताकेपरे
कराहताहैसांध्यगीत,
जिसेगुननेका
प्रयत्नकरतेहोंठ
हारजातेहैं
थककर।
Great! लगे रहो…