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प्रेम और रूमान के इस गीतकार ने जैसे अन्तस छू दिया हो

कवि-गीतकार नीरज का कल निधन हो गया. जिस तरह से सोशल मीडिया, मीडिया में उनको याद किया जा रहा है उससे लगता है कि वे सच्चे अर्थों में जनकवि थे. समाज के हर तबके में उनके प्रेमी थे. कल वे ट्विटर पर भी ट्रेंड कर रहे थे और आज ‘दैनिक हिन्दुस्तान’ ने उनके निधन की खबर को अखबार की पहली खबर के रूप में जगह दी है. उनको यह छोटी-सी श्रद्धांजलि कवि-लेखक यतीन्द्र मिश्र ने अपने फेसबुक वाल पर दी है. आपके लिए- मॉडरेटर

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उनसे हमारा पारिवारिक रिश्ता था। अस्सी के दशक में तकरीबन हर साल वो अयोध्या आते थे हमारे यहाँ। हमारे इंटर कालेज में उनकी ही सरपरस्ती में देर रात तक चलने वाला मुशायरा होता था। वे और बेकल उत्साही, एक ज़रूरी उपस्थिति रहे लगभग एक दशक तक। बाद में धीरे-धीरे उनका आना कम होता गया। मुझे अपने बचपन के वो दिन याद हैं, जब घर में बैठे हुए मेरी तन्नू बुआ के आग्रह पर न जाने कितने गीत उन्होंने अपनी आवाज़ में रेकॉर्ड करवाए। मुझे याद है कि एक बार बड़े तरन्नुम में ‘नयी उमर की नयी फसल’ का अपना ही लिखा हुआ गीत ‘ देखती ही रहो आज दरपन न तुम, प्यार का ये मुहूरत निकल जाएगा’ ऐसा गाकर रेकॉर्ड करवाया, कि हर एक अपनी सुध भुला बैठा। मेरी बुआ ने न जाने कितनी नज़्मों को उनकी आवाज़ में सहेजा। आज, सब बस कल की ही बात लगती है।
हालाँकि मेरे लिए उनकी कविता का असर तब आया , जब इंटर में पढ़ते हुए एक दिन ‘तेरे मेरे सपने’ फ़िल्म का उनका गीत ‘ जैसे राधा ने माला जपी श्याम की’ मुझे सुनने को मिला। उस गीत में जाने कौन सा जादू था, जिसने एकबारगी नीरज जी की कविता के सम्मोहन में ऐसा डाला, जिससे अब इस जीवन में निकलना सम्भव नहीं। प्रेम और रूमान के इस गीतकार ने जैसे अन्तस छू दिया हो..
फिर तो उनकी कविता और उसके मादक सौंदर्य ने कभी आसव तो कभी मदिरा का काम किया.. उनके सारे गीत, जैसे भीतर की पुकार बनते चले गए। उन गीतों के अर्थ को पकड़ना ,जैसे कुछ अपने ही अंदर कस्तूरी के रंग को खोजने की एक तड़प भरी कोशिश रही हर बार… सबके आंगन दिया जले रे/ मोरे आंगन हिया/हवा लागे शूल जैसी/ ताना मारे चुनरिया/ आयी है आँसू की बारात /बैरन बन गयी निंदिया… इस गीत में लता जी की आवाज़ ने, राग पटदीप की सुंदर मगर दर्द भरी गूंज ने और नीरज की बेगानेपन को पुकारती कलम ने जैसे मेरे लिए हमेशा के वास्ते दुःख को शक्ल देने वाली एक इबारत दे दी। आज तक सैकड़ों बार सुने जा चुके इस गीत के रूमान से अब भला कोई क्यों बाहर निकलना चाहेगा ?वो जैसे नीरज को समझने की भी दृष्टि दे गया, जिसके पीछे कानपुर में छूट गया उनका असफल प्रेम शब्द बदल -बदलकर उनकी राह रोकता रहा। कानपुर पर उनकी मशहूर नज़्म के बिखरे मोती आप उनके फिल्मी गीतों में बड़ी आसानी से ढूंढ सकते हैं। ‘प्रेम पुजारी’ में उनका कहन देखिए- ‘न बुझे है किसी जल से ये जलन’, जैसे सारी अलकनंदाओं का जल भी प्रेम की अगन को शीतल करने में नाकाफ़ी हो। उन्होंने ये भी बड़ी खूबसूरती से कहा-‘चूड़ी नहीं ये मेरा दिल है, देखो देखो टूटे ना..’ हाय, क्या अदा है, प्रेयसी की नाज़ुक कलाइयों के लिए अपने दिल को चूड़ी बना देना.. फिर, शोखियों में घोला जाए फूलों का शबाब’ में नशा तराशते हुए प्यार को परिभाषा देने का नया अंदाज़… गीतों में तड़प, रूमान, एहसास, जज़्बात, दर्द, बेचैनी, इसरार, मनुहार, समर्पण और श्रृंगार सभी कुछ को नीरज के आशिक़ मन ने इबादत की तरह साधा। शर्मीली का एक गीत ‘आज मदहोश हुआ जाए रे मेरा मन’ सुनिए, तो जान पड़ेगा, कि कवि नीरज के लिखने का फॉर्म और उसकी रेंज कितनी अलग, बड़ी और उस दौर में बिल्कुल ताजगी भरी थी.. ओ री कली सजा तू डोली/ ओ री लहर पहना तू पायल / ओ री नदी दिखा तू दरपन / ओ री किरन ओढ़ा तू आँचल/ इक जोगन है बनी आज दुल्हन हो ओ/ आओ उड़ जाएं कहीं बन के पवन हो ओ/ आज मदहोश हुआ जाए रे मेरा मन…. नीरज जैसा श्रृंगार रचने वाला दूसरा गीतकार मिलना मुश्किल है, जो सपनों के पार जाती हुई सजलता रचने में माहिर हो..

हालाँकि,नीरज बस इतने भर नहीं है। वो इससे भी पार जाते हैं। दार्शनिक बनकर। एक बंजारे, सूफ़ी या कलन्दर की तरह कुछ ऐसा रचते, जो होश उड़ा दे.. -‘ए भाई ज़रा देखके चलो’, ‘ ‘ दिल आज शायर है, ग़म आज नगमा है,’ ‘ कारवां गुज़र गया, ग़ुबार देखते रहे’, ‘ सूनी -सूनी
सांस के सितार पर’ और ‘काल का पहिया, घूमे भैया…’
भरपूर दार्शनिकता, लबालब छलकता प्रेम, भावुकता में बहते निराले बिम्ब, दर्द को रागिनी बना देने की उनकी कैफ़ियत ने उन्हें हिन्दी पट्टी के अन्य गीतकारों पं नरेंद्र शर्मा, गोपाल सिंह नेपाली, भरत व्यास, इंदीवर, राजेन्द्र कृष्ण और योगेश से बिल्कुल अलग उनकी अपनी बनाई लीक में अनूठे ढंग से स्थापित किया है।
आज, जब वो नहीं हैं तो बहुत सी बातें, याद आती हैं। उनके गीत सम्मोहित करने की हद तक परेशान करते हैं.. मेरे पिता से कही उनकी बात जेहन में कौंधती है कि ‘मेरे गीत हिट होते गए और फिल्में फ्लॉप, इसलिए जल्दी ही मुझसे गीत लिखवाना लोगों ने बन्द कर दिया’…

मगर, फूलों के रंग से, दिल की कलम से पाती लिखने वाले इस भावुक मन के चितेरे को कभी भी भुलाया नहीं जा सकेगा…
उनकी कविताएं और गीत ऐसे ही दुखते मन को तसल्ली दे, भिगोते रहेंगे.. शब्दों की नमी से अंदर- बाहर को गीला बनाते हुए…
मैं आज भी, ‘तेरे मेरे सपने’ के पूरे साउंडट्रैक में खोया हुआ नीरज जी को बड़े अदब से याद करता रहूँगा…

नमन , आदर और श्रद्धांजलि…

 
      

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