अलेक्सांद्र कूप्रिन (1870-1938) एक प्रसिद्ध रूसी लेखक थे. यहाँ दिया गया हिस्सा कूप्रिन के सबसे प्रसिद्ध उपन्यास द डुअल से लिया गया है। इस हिस्से को पढ़ते हुए आपको अहसास होगा कि टाल्सटाय ने क्यों कूप्रिन को चेखब का सही उत्तराधिकारी कहा था। चारुमति रामदास के द्वारा इस तर्जुमा को पढ़िए जानकीपुल पर।
– अमृत रंजन
द्वंद्व–युद्ध – 22
लेखक : अलेक्सान्द्र कूप्रिन
हिंदी अनुवाद : आ. चारुमति रामदास
अपने घर के पास आते हुए रोमाशोव ने अचरज से देखा कि उसके कमरे की छोटी खिड़की में गर्मियों की रात के गर्माहट भरे अंधेरे के बीच, मुश्किल से दिखाई दे रही लौ फड़फड़ा रही है. ‘इसका क्या मतलब है?’ उसने उत्तेजनापूर्वक सोचा और अनचाहे अपनी चाल तेज़ कर दी. ‘हो सकता है, मेरे गवाह लौटे हैं द्वन्द्व–युद्ध की शर्तें निश्चित करके?’ ड्योढ़ी में वह गैनान से टकरा गया; उसे देखा नहीं, डर गया; थरथर काँपने लगा और गुस्से से चिल्लाया, “क्या शैतानियत है! ये तू है, गैनान? वहाँ कौन है?”
अंधेरे के बावजूद वह महसूस कर रहा था कि गैनान, अपनी आदत के मुताबिक, एक ही जगह पर नाच रहा था.
“तुम्हारे लिए मालकिन आई है, बैठी है.”
रोमाशोव ने दरवाज़ा खोला. लैम्प का कैरोसीन कब का ख़त्म हो चुका था, और अब, चटचटाते हुए, वह आख़िरी लपटें फेंक रहा था. पलंग पर किसी औरत की निश्चल आकृति बैठी थी, जो आधे अँधेरे में अस्पष्टता से दिखाई दे रही थी.
“शूरोच्का!” रोमाशोव ने गहरी साँस लेते हुए कहा और, न जाने क्यों, पंजों के बल सावधानी से पलंग की ओर आया. “शूरोच्का, ये आप हैं?”
“धीरे; बैठिए,” उसने जल्दी से, फुसफुसाहट से जवाब दिया. “लैम्प बुझा दीजिए.”
उसने काँच में ऊपर से फूँक मारी. भयभीत नीली लौ मर गई, और फ़ौरन कमरे में अँधेरा और ख़ामोशी छा गए; और उसी समय शीघ्रता से और ज़ोर से मेज़ पर रखी हुई अलार्म घड़ी बज उठी, जिस पर अब तक किसी का ध्यान नहीं गया था. रोमाशोव अलेक्सान्द्रा पेत्रोव्ना की बगल में बैठ गया – झुक कर, और उसकी ओर न देखते हुए. भय का, परेशानी का, दिल में एक जम जाने का अजीब एहसास उस पर हावी हो गया, जो उसके बोलने में बाधा डाल रहा था..
“तुम्हारे यहाँ, बगल में कौन है, इस दीवार के पीछे?” शूरोच्का ने पूछा, “वहाँ सुनाई देता है?”
“नहीं, वहाँ ख़ाली कमरा है…पुराना फर्नीचर…मालिक – बढ़ई है. ज़ोर से बोल सकते हैं.”
मगर फिर भी वे दोनों फुसफुसाकर ही बोलते रहे, और इन ख़ामोश, टूटे–टूटे शब्दों में, बोझिल, घने अँधेरे के बीच काफ़ी कुछ डरावना सा, सकुचाहटभरा और रहस्यमय ढंग से छिपा हुआ सा था. वे लगभग एक दूसरे से सटे हुए बैठे थे. रोमाशोव के कानों में ख़ून निःशब्दता से हिलोरें मार रहा था.
“क्यों…आपने ऐसा क्यों किया?” अचानक वह हौले से मगर उदासीनतापूर्ण भर्त्सना से बोली.
उसने उसके घुटने पर अपना हाथ रखा. रोमाशोव ने अपने वस्त्रों से होते हुए उसकी सजीव, तनावपूर्ण गर्माहट का अनुभव किया; और गहरी साँस लेकर आँखें सिकोड़ लीं. मगर इससे अँधेरा गहराया नहीं, बस आँखों के सामने तैरने लगे परीलोक के तालाबों जैसे नीली चमक से घिरे हुए वक्राकार घेरे.
“याद है, मैंने आपसे विनती की थी कि उसके साथ संयम बरतना. नहीं, नहीं; मैं उलाहना नहीं दे रही हूँ. आपने जानबूझ कर झगड़े की वजह पैदा नहीं की – मुझे ये बात मालूम है. मगर उस समय, जब आपके भीतर जंगली जानवर जाग उठा, क्या एक मिनट के लिए भी आप मुझे याद करके रुक नहीं सकते थे? आपने मुझसे कभी प्यार ही नहीं किया!”
‘मैं आपसे प्यार करता हूँ,” हौले से रोमाशोव ने कहा और हौले से सकुचाहटभरी, थरथराती उँगलियों से उसका हाथ छू लिया.
शूरोच्का ने उसे छुड़ा लिया, मगर फ़ौरन नहीं, धीरे धीरे, जैसे कि उस पर तरस खा रही हो और उसे अपमानित करने से डर रही हो.
“हाँ, मुझे मालूम है कि न तो आपने, न ही उसने मेरा नाम लिया, मगर आपका शिष्टतापूर्ण व्यवहार बेकार गया: शहर में तो अफ़वाह फैल ही रही है.”
“माफ़ कीजिए, मुझे अपने आप पर काबू न रहा…ईर्ष्या ने मुझे अंधा कर दिया था,” मुश्किल से रोमाशोव कह पाया.
वह कटुता से देर तक हँसती रही.
“ईर्ष्या? कहीं आप ये तो नहीं सोच रहे हैं कि मेरा पति इतना उदार दिल वाला है कि आपसे हाथापाई होने के बाद उसने स्वयँ को मुझे यह बताने की ख़ुशी से महरूम रखा होगा कि आप कहाँ से मेस में आए थे? उसने नज़ान्स्की के बारे में भी मुझे बताया.”
“माफ़ कीजिए,” रोमाशोव ने दुहराया, “मैंने वहाँ कोई बेहूदगी नहीं की. माफ़ कीजिए.”
वह अचानक ज़ोर से, निर्णयात्मक और संजीदा फुसफुसाहट से बोल पड़ी, “ सुनिए, गिओर्गी अलेक्सेयेविच, मेरे लिए हर पल क़ीमती है. मैं घंटे भर से आपका इंतज़ार भी कर रही हूँ. इसलिए संक्षेप में, और केवल काम के बारे में बातें करेंगे. आप जानते हैं कि वोलोद्या की मेरी ज़िन्दगी में क्या जगह है. मैं उसे प्यार नहीं करती, मगर उस पर मैंने अपनी रूह का एक हिस्सा निछावर कर दिया है. मेरे पास अधिक आत्मसम्मान है उसके मुक़ाबले में. दो बार वह अकादमी की प्रवेश परीक्षा में फेल हो गया. इससे मुझे उससे कहीं ज़्यादा दुख पहुँचा है, अपमान का अनुभव हुआ है. जनरल–स्टाफ़ का ये पूरा ख़याल सिर्फ मेरा है; मेरे अकेले का. मैंने अपने पति को पूरी ताक़त से इसमें घसीटा; उसे उकसाती रही; उसके साथ साथ रटती रही, दुहराती रही, उसके आत्मसम्मान को कसती रही. ये – मेरा अपना, सर्वाधिक प्रिय उद्देश्य है; मेरी कमज़ोरी है. अपने दिल की इस ख़्वाहिश को मैं निकाल कर फेंक नहीं सकती. चाहे कुछ भी क्यों न हो जाए; मगर वह अकादमी में प्रवेश ज़रूर पाएगा.”
रोमाशोव हथेली पर सिर टिकाए झुक कर बैठा था. उसे अचानक महसूस हुआ कि शूरोच्का ख़ामोशी से, धीरे धीरे उसके बालों पर हाथ फेर रही है. उसने विषादयुक्त अविश्वास से पूछा: “मैं क्या कर सकता हूँ?”
उसने गले में बाँहें डालकर उसका आलिंगन किया और प्यार से उसका सिर अपने सीने पर रख लिया. उसने चोली नहीं पहनी थी. रोमाशोव अपने गाल से उसके शरीर की लोच को महसूस करता रहा और उसकी गर्म, तीखी, मीठी मीठी ख़ुशबू को सूँघता रहा. जब वह बोलती तो अपने बालों पर वह उसकी रुकी रुकी साँस महसूस करता.
“तुम्हें याद है, तब…शाम को…पिकनिक पर. मैंने तुम्हें पूरा सच बताया था. मैं उसे प्यार नहीं करती. मगर सोचो: तीन साल, पूरे तीन साल उम्मीद से भरे, कल्पना से भरे, जीवन की योजनाओं से भरपूर; और ऐसा घृणित काम! तुम्हें तो मालूम है कि मुझे बेहद नफ़रत है भिखमंगे अफ़सरों के इस तंग दिमाग़, फूहड़, नीच समाज से. मुझे हमेशा बढ़िया कपड़े पहने; ख़ूबसूरत, सलीकापसन्द होना अच्छा लगता है; मैं चाहती हूँ लोगों के झुक झुक कर किए गए सलाम, सत्ता! और अचानक – भद्दी, नशे में धुत होकर की गई मारपीट, अफ़सरों का स्कैण्डल; और सब ख़त्म, सब धूल में मिल गया! ओह, कितना भयानक है ये! मैं कभी भी माँ नहीं बनी, मगर मैं कल्पना करती हूँ: मेरा बच्चा बड़ा होगा – प्यारा, दुलारा; उस पर सारी उम्मीदें हैं, उसके लिए दी गई हैं चिंताएँ, आँसू, जागती रातें…और अचानक – फूहड़पन, एक घटना, जंगली, प्राकृतिक घटना: वह खिड़की में बैठा खेल रहा है; दाई पलटती है; वह नीचे गिरता है, पत्थरों पर. मेरे प्यारे, सिर्फ इसी मातृत्व की बदहवासी से मैं तुलना कर सकती हूँ अपने दुर्भाग्य की और कटुता की. मगर मैं तुम्हें दोष नहीं देती.”
झुककर बैठना रोमाशोव को असुविधाजनक लग रहा था, और उसे डर लग रहा था कि शूरोच्का को भार न महसूस हो. मगर वह ख़ुश था इसी तरह घंटों बैठने और एक विचित्र, उमस भरे नशे में उसके छोटे से दिल की धड़कनें सुनने में.
“तुम मेरी बात सुन रहे हो?” उसने उसकी ओर झुकते हुए पूछा.
“हाँ, हाँ…बोलो, अगर मेरे बस में हो तो मैं वह सब करूँगा जो तुम चाहती हो.”
“नहीं, नहीं. पहले मेरी पूरी बात सुनो. अगर तुम उसे मार डालोगे; या उसे इम्तिहान देने से रोका जाता है – सब ख़त्म हो जाएगा! मैं उसी दिन, जब इस बारे में सुनूँगी, उसे छोड़कर चली जाऊँगी – कहीं भी – पीटर्सबर्ग या ओडेसा, या कीएव. ये न सोचना कि ये किसी अख़बारी उपन्यास का झूठा वाक्य है. मैं ऐसे सस्ते प्रभाव डालकर तुम्हें डराना नहीं चाहती. मगर मुझे मालूम है कि मैं जवान हूँ, ज़हीन हूँ, पढ़ी लिखी हूँ. ख़ूबसूरत नहीं हूँ, मगर मैं अन्य कई सुन्दरियों से ज़्यादा दिलचस्प होना जानती हूँ, जिन्हें बाल–नृत्यों में पुरस्कार के तौर पर अपनी ख़ूबसूरती के लिए कोई जर्मन–सिल्वर की ट्रे या संगीत वाली अलार्म घड़ी मिलती है. मैं अपने आप पर अन्याय करती हूँ, मगर मैं एक पल में जल जाती हूँ – पूरी चमक से, आतिशबाज़ी की तरह!”
रोमाशोव ने खिड़की से बाहर देखा. अब उसकी आँखें, जो अंधेरे की आदी हो गई थीं, खिड़की की अस्पष्ट, मुश्किल से दिखाई देने वाली फ्रेम की चौखट देख सकती थीं.
“ऐसा न कहो…ऐसा नहीं कहना चाहिए…मुझे तकलीफ़ होती है,” उसने दयनीयता से कहा. “ठीक है, क्या तुम चाहती हो कि मैं कल द्वन्द्व युद्ध से इनकार कर उससे माफ़ी माँग लूँ? ऐसा करूँ?”
वह कुछ देर चुप रही. अलार्मघड़ी अपनी धातुई बड़बड़ाहट से अंधेरे कमरे के सभी कोनों को भर रही थी. आख़िर में उसने मुश्किल से सुनाई देने वाली आवाज़ में, मानो सोच में डूबी हो, कुछ ऐसे भाव से कहा जिसे रोमाशोव पकड़ नहीं पाया, “मैं जानती थी कि तुम यही कहोगे.”
उसने सिर उठाया और, हालाँकि शूरोच्का ने उसकी गर्दन को हाथों से थाम रखा था, वह पलंग पर सीधा हो गया.
“मैं डरता नहीं हूँ!” उसने ज़ोर से, बिना आवाज़ किए कहा.
“नहीं, नहीं, नहीं, नहीं,” उसने आवेगपूर्ण, शीघ्र, विनती करती हुई फुसफुसाहट से कहा. “तुम मुझे समझे नहीं. मेरे नज़दीक आओ…जैसे पहले…आओ न!…”
उसने दोनों हाथों से उसका आलिंगन किया और फुसफुसाने लगी, उसके चेहरे को अपने नर्म, पतले बालों से सहलाते हुए और उसके गाल पर गर्म गर्म साँस छोड़ते हुए:
“तुम मुझे समझ नहीं पाए. मैं कुछ और ही कहना चाहती हूँ, मगर तुम्हारे सामने मुझे शर्म आती है. तुम इतने पाक–साफ़, इतने भले, और मुझे तुमसे यह कहने में सकुचाहट हो रही है. मैं चालाक हूँ, नीच हूँ…”
“नहीं. सब कह दो. मैं तुमसे प्यार करता हूँ…”
“सुनो,” वह कहने लगी, और वह शीघ्र ही उसके शब्दों को सुनने के बदले भाँपने लगा. “अगर तुम इनकार कर दोगे, तो कितना अपमान, शर्म और मुसीबतें झेलनी पडेंगी तुम्हें. नहीं, नहीं, मैं फिर…वो नहीं कह पा रही. आह, मेरे ख़ुदा, इस पल मैं तुम्हारे सामने झूठ नहीं बोलूँगी. मेरे प्यारे ये सब मैंने बहुत पहले ही सोच रखा था, और इस पर भली–भाँति विचार भी कर लिया था. मान लेते हैं, तुमने मना कर दिया. पति का सम्मान पुनर्स्थापित हो जाता है. मगर, समझो, द्वन्द्व युद्ध में, जो समझौते से समाप्त हो जाता है, हमेशा कुछ रह जाता है…कैसे कहें?…वो, याने कि, संदेहास्पद, कुछ कुछ ऐसा जो अविश्वास एवं निराशा को उकसाता है…तुम मुझे समझ रहे हो?” उसने शोकपूर्ण नर्मी से पूछा, और सावधानीपूर्वक उसके बालों को चूमा.
“हाँ. तो फिर क्या?”
“फिर ये, कि इस हालत में पति को परीक्षा लगभग देने ही नहीं दी जाएगी. जनरल–स्टाफ़ के अफसर की प्रतिष्ठा पर ज़रा सा भी धब्बा नहीं होना चाहिए. मगर, यदि आप सचमुच में एक दूसरे पर गोली चलाते हैं, तो इसमें कुछ वीरतापूर्ण, शक्तिशाली होगा. उन लोगों के लिए कई, कई सारी चीज़ें माफ़ हो जाती हैं, जो गोलियों की बौछार में स्वयं की गरिमा बनाए रखते हैं. फिर…द्वन्द्व युद्ध के बाद…तुम, अगर चाहो तो, माफ़ी भी माँग सकते हो…ख़ैर, ये तुम्हारा फैसला है.”
कस कर एक दूसरे का आलिंगन करते हुए वे षडयंत्रकारियों की भाँति फुसफुसाते रहे; एक दूसरे के चेहरों को और हाथों को छूते हुए; एक दूसरे की साँसें सुनते हुए. मगर रोमाशोव महसूस कर रहा था कि उनके बीच अदृश्य रूप से कोई रहस्यमय, नीचतापूर्ण, चिपचिपी चीज़ रेंग गई है, जिससे उसकी आत्मा में ठंड की लहर दौड़ गई. उसने फिर से स्वयं को उसके हाथों से आज़ाद करना चाहा, मगर वह उसे छोड़ नहीं रही थी. समझ में न आने वाली, बहरी चिड़चिड़ाहट को छिपाने की कोशिश में उसने रूखेपन से पूछा, “ख़ुदा के लिए, सीधे सीधे समझाओ. मैं हर बात का वादा करता हूँ.”
तब उसने हुकूमत के स्वर में, उसके ठीक मुँह के पास कहना आरंभ किया; उसके शब्द शीघ्र, थरथराते हुए चुंबनों जैसे थे:
“तुम्हें कल किसी भी हाल में गोली चलानी होगी. मगर तुममें से कोई भी घायल नहीं होगा. ओह, मुझे समझने की कोशिश करो, मुझे दोषी न समझो! मैं ख़ुद भी कायरों से नफ़रत करती हूँ, मैं एक औरत हूँ. मगर मेरी ख़ातिर यह करो, गिओर्गी! नहीं, पति के बारे में कुछ न पूछो, उसे मालूम है. मैंने सब, सब, सब, कर लिया है.”
अब वह झटके से सिर हिलाकर उसके मुलायम और शक्तिशाली हाथों से स्वयं को छुड़ा सका. वह पलंग से उठ कर दृढ़ता से बोला, “ठीक है, ऐसा ही होने दो. मैं राज़ी हूँ.”
वह भी उठ गई. अँधेरे में उसकी गतिविधियों से वह देख नहीं पाया, मगर उसने अंदाज़ लगाया, महसूस किया कि वह शीघ्रता से अपने बालों को ठीक कर रही है.
“तुम जा रही हो?” रोमाशोव ने पूछा.
“अलबिदा,” उसने क्षीण आवाज़ में कहा. “मुझे आख़िरी बार चूमो.”
रोमाशोव का दिल दया और प्यार से थरथराने लगा. अँधेरे में टटोलते हुए उसने हाथों से उसका सिर ढूँढा और उसके गालों और आँखों को चूमने लगा. शूरोच्का का चेहरा गीला हो रहा था ख़ामोश, सुनाई न देने वाले आँसुओं से. इसने उसे परेशान कर दिया, उसके दिल को छू लिया.
“मेरी प्यारी…रो मत…साशा…प्यारी…”उसने सहानुभूतिपूर्वक, नर्मी से दुहराया.
उसने अचानक रोमाशोव की गर्दन में बाँहें डाल दीं, हवस और शक्ति से पूरी तरह उससे चिपक गई और उसके मुँह से अपने जलते हुए होठों को बिना हटाए रुक रुक कर, पूरी तरह थरथराते हुए और गहरी गहरी साँसें लेते हुए कहा, “मैं इस तरह तुमसे बिदा नहीं ले सकती…अब हम फिर कभी नहीं मिलेंगे. इसलिए किसी बात से नहीं डरेंगे…मैं, मैं चाहती हूँ वो…एक बार…अपनी ख़ुशी का लुत्फ उठा लें…मेरे प्यारे, आओ मेरे पास, आओ, आओ…”
और वे दोनों, और पूरा कमरा, और पूरी दुनिया एकदम परिपूर्ण हो गई किसी बेक़ाबू, खुशगवार, कँपकँपाते उन्माद से. एक सेकंड के लिए तकिये के सफ़ेद धब्बे के बीच रोमाशोव ने परीकथा की स्पष्टता से अपने निकट – अति निकट, अपने क़रीब शूरोच्का की आँखों को देखा, जो बदहवास ख़ुशी से चमक रही थीं, और वह लालची की तरह उसके होठों से चिपक गया…
“क्या मैं तुम्हें छोड़ने आऊँ?” उसने शूरोच्का के साथ दरवाज़े से आँगन में निकलते हुए पूछा.
“नहीं, ख़ुदा के लिए, कोई ज़रूरत नहीं है, प्यारे…ये मत करो. मैं वैसे भी नहीं जानती कि तुम्हारे यहाँ मैंने कितना समय गुज़ार दिया. कितने बजे हैं?”
“मालूम नहीं. मेरे पास घड़ी नहीं है. ठीक ठीक नहीं जानता.”
वह जाने में देरी करती रही और दरवाज़े से टिक कर खड़ी रही. हवा में ख़ुशबू थी मिट्टी की; और पत्थरों से सूखी, लालसायुक्त गंध थी गर्म रात की. अँधेरा था, मगर अँधेरे के बीच रोमाशोव ने देखा, जैसे तब, बगिया में देखा था कि शूरोच्का का चेहरा विचित्र, श्वेत प्रकाश से दमक रहा है, मानो संगमरमर के पुतले का चेहरा हो.
“तो, अलबिदा, मेरे प्यारे,” आख़िरकार थकी हुई आवाज़ में उसने कहा, “अलबिदा.”
उन्होंने एक दूसरे का चुंबन लिया, और अब उसके होंठ थे ठंडे और निश्चल. वह जल्दी से फाटक के पास गई, और रात का गहरा अँधेरा फ़ौरन उसे खा गया.
रोमाशोव खड़े होकर तब तक सुनता रहा, जब तक फाटक की चरचराहट न सुनाई दी और शूरोच्का के हल्के क़दम ख़ामोश न हो गए.
गहरी, मगर प्यारी थकान ने अचानक उसे दबोच लिया. वह मुश्किल से अपने कपड़े उतार पाया – इतनी उसे नींद आ रही थी. और अंतिम सजीव अनुभूति जो नींद से पहले थी वह थी हल्की, मीठी मीठी ख़ुशबू, जो तकिए से आ रही थी – शूरोच्का के बालों की ख़ुशबू, उसके सेन्ट की और ख़ूबसूरत, जवान जिस्म की ख़ुशबू.
23
2. जून. 18.. महामहिम
शहर Z N पैदल कम्पनी के कमांडर
की सेवा में,
इसी कम्पनी के स्टाफ कैप्टेन
दीत्स की ओर से.
रिपोर्ट
एतद् द्वारा महामहिम को सूचित करने का सम्मान प्राप्त करता हूँ कि आज 2 जून को, आपके द्वारा कल, 1 जून को, नियत की गई शर्तों के अनुसार लेफ्टिनेंट निकोलाएव और सेकंड लेफ्टिनेंट रोमाशोव के बीच द्वन्द्व–युद्ध हुआ. विरोधी 6 बजने में पाँच मिनट पर ‘दूबेच्नाया’ नामक बगिया में मिले, जो शहर से 3 ½ मील दूर है. द्वन्द्व–युद्ध, सिग्नल देने के समय को मिलाकर, 1 मिनट और 10 सेकंड चला. द्वन्द्व–युद्ध करने वालों की जगहें टॉस द्वारा नियत की गईं. “आगे बढ़” कमांड के अनुसार दोनों विरोधी एक दूसरे की ओर बढ़े; मगर लेफ्टिनेंट निकोलाएव द्वारा दाग़ी गई गोली ने सेकंड लेफ्टिनेंट रोमाशोव के पेट के ऊपरी दाहिने हिस्से को घायल कर दिया. गोली के जवाब के इंतज़ार में निकोलाएव उसी तरह खड़ा रहा. जवाबी फ़ायर के लिए निर्धारित आधे मिनट के अंतराल के बाद यह पाया गया कि सेकंड लेफ्टिनेंट रोमाशोव अपने प्रतिद्वन्द्वी को जवाब देने की स्थिति में नहीं है. इसके फलस्वरूप सेकंड लेफ्टिनेंट रोमाशोव के गवाहों ने प्रस्ताव रखा कि द्वन्द्व–युद्ध को ख़त्म हुआ समझा जाए. सर्वसम्मति से यह किया गया. सेकंड लेफ्टिनेंट रोमाशोव को गाड़ी में ले जाते समय उसे ज़ोर का दौरा पड़ा और सात मिनटों के पश्चात् आंतरिक रक्तस्त्राव के कारण वह ख़त्म हो गया. लेफ्टिनेंट निकोलाएव की ओर से गवाह थे: मैं और लेफ्टिनेंट वासिन; सेकंड लेफ्टिनेंट रोमाशोव की ओर से गवाह थे सेकंड लेफ्टिनेंट बेग–अगामालोव और वेत्किन. द्वन्द्व–युद्ध का निर्देशन सर्वसम्मति से मुझे सौंपा गया. जूनियर डॉक्टर ज़्नोयको का प्रमाणपत्र इस पत्र के साथ संलग्न करता हूँ.
1905 स्टाफ–कैप्टेन दीत्स.
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शाब्दिक अनुवाद है और सम्पादन की बेहद ज़रूरत है।
Nice article
Sir.
इतनी कठिन हिन्दी, कुछ शब्द तो मेरे समझ में ही नही आएं
Very nice artical.