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प्लास्टिक-पुस्तकों के प्रकाशन की रोचक कहानी

जैसे-जैसे लोगों की जीवन शैली बदल रही है किताबों के रूप भी बदल रहे हैं. फोन ऐप पर किताबों के साथ एक नया ट्रेंड जापान से शुरू हुआ है नहाते समय पढने के लिए प्लास्टिक के पन्नों पर छपी किताबें. आज ‘दैनिक हिन्दुस्तान’ में महेंद्र राजा जैन का लेख इसी विषय पर है. सोचा साझा किया जाए- मॉडरेटर

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यूरोपीय देशों के जनजीवन में स्नान का एक अलग ही स्थान है, लेकिन यह भी एक सत्य है कि वहां के 25 प्रतिशत से अधिक घरों में स्नानघर नहीं हैं। ऐसे लोगों को स्नान करने की सुविधा देने के लिए सरकारी या सार्वजनिक स्नानघर हैं, जहां तयशुदा शुल्क देकर एक निश्चित समय तक नहाने के लिए एक निश्चित मात्रा में गरम पानी लिया जा सकता है। वैसे तो वहां सामान्यत: सप्ताह में केवल एक दिन ही नहाने की ‘प्रथा’ सी बन गई है, गरीब तबके के तमाम ऐसे लोग भी हैं, जो महीने में एक बार भी नहीं नहाते। इसके विपरीत सम्पन्न वर्ग या सामान्यत: अच्छी आर्थिक स्थिति वाले लोग प्राय: प्रतिदिन नहाते हैं, लेकिन उनका यह स्नान हमारे यहां के समान सुबह नहीं, वरन प्राय: रात को सोने के पहले होता है। गरमी हो या सर्दी, वहां गरम पानी की ही जरूरत पड़ती है, क्योंकि इतनी गरमी नहीं पड़ती कि घर के अंदर ठंडे पानी से नहाया जा सके। यह इसलिए भी संभव नहीं है कि वहां नहाने का मतलब एक-आध घंटे तक बाथ टब में रहना तो होता ही है और यह गरम पानी के बिना संभव नहीं है। ऐसे में, यह जिज्ञासा स्वाभाविक है कि जो लोग पानी से भरे टब में आधा-एक घंटे तक बैठे या लेटे रहते हैं, वे आखिर इतनी देर तक वहां करते क्या हैं? और चूंकि नहाने में इतना अधिक समय लगता है, अत: आमतौर पर बाथरूम में टेलीफोन भी रहता ही है।

अब पानी में डूबे रहकर लेटे-लेटे पुस्तक पढ़ने का अपना आनंद तो है ही, लेकिन अक्सर ऐसा भी होता है कि पढ़ते-पढ़ते पुस्तक हाथ से छूटकर पानी में गिर जाती है या फिर पेज पलटते समय गीले हाथ पुस्तक खराब कर देते हैं। इसी परेशानी से बचने के लिए जापान के एक प्रकाशक ने प्लास्टिक की पुस्तकें खोज निकाली हैं। यूरोपीय देशों की तरह ही जापानी जीवन में भी स्नान का विशेष स्थान है,और वहां भी प्राय: लोग नियमित रूप से अपनी दिनचर्या की समाप्ति के बाद रात को गरम पानी के टब में बैठकर गुजारते हैं। इसलिए वहां ऐसी खोज स्वाभाविक ही है। अब वहां यह समय किताबें पढ़ते हुए बीतता है।

जापान में प्लास्टिक-पुस्तकों के प्रकाशन की कहानी भी कम रोचक नहीं है। वहां की एक पत्रिका की पाठिका ने संपादक के नाम पत्र लिखकर शिकायत की कि वह जब बाथरूम में होती है, तो अपने बच्चे, पति और रसोई आदि की चिंता के तनाव से मुक्त रहती है। घर के कामकाज से छुट्टी पाने पर वहां बाथरूम में ही कुछ समय मिल पाता है, जब वह कुछ पढ़ पाती है। कितना अच्छा होता यदि पुस्तकें वाटरप्रूफ होतीं, तब वे इस तरह खराब न होतीं।

बस यह सुझाव प्रकाशक कंपनी के मैनेजर को जंच गया और शुरू में केवल कंपनी के कर्मचारियों को नि:शुल्क वितरण के लिए पहली पुस्तक की दस हजार प्रतियां छापी गईं। एक पुस्तक विक्रेता ने जब यह पुस्तक देखी, तो उसने ऐसी पुस्तकों को व्यावसायिक ढंग से प्रकाशित करने का सुझाव दिया। कंपनी को यह सुझाव भी पसंद आया और शुरू में केवल 16 पृष्ठों की ऐसी पुस्तकें प्रकाशित की गईं, जिनसे लोगों को सामान्य ज्ञान की जानकारी प्राप्ति हो या जो उनके लिए उपयोगी हों, जैसे जापानी संविधान की मुख्य-मुख्य बातें या राष्ट्र संघ के सदस्य देश। इन पुस्तकों की सफलता से उत्साहित होकर प्रकाशकों ने बाद में अन्य विषयों की पुस्तकें प्रकाशित कीं, जिनमें अंग्रेजी वार्तालाप या गोल्फ का खेल जैसे विषय भी हैं। प्रकाशकों का कहना है कि स्नानगृह अब केवल वह स्थान नहीं रहा, जहां लोग शरीर साफ करने मात्र के लिए जाते हैं।

इसके बाद एक अन्य जापानी प्रकाशक ने बच्चों और बूढ़ों के लिए कुछ ऐसी पुस्तकें प्रकाशित कीं, जिन्हें वे नहाने के समय निश्चिंतता के साथ बिना पुस्तक गीली किए पढ़ सकते हैं। इस प्रकार की पुस्तकों की पहली सीरीज में छह पुस्तकें प्रकाशित की गईं, जिनकी देखते ही देखते तीन लाख से अधिक प्रतियां बिक गईं। उसके बाद तो अन्य प्रकाशकों ने भी बहती गंगा में हाथ धोना शुरू किया और आज स्थिति यह है कि वहां प्लास्टिक के पन्नों पर छपी हुई प्राय: किसी भी विषय की पुस्तक आसानी से मिल जाती है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

 
      

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