मीटू अभियान से प्रेरित यह कविता युवा लेखिका अनुकृति उपाध्याय ने लिखी है. आपके लिए- मॉडरेटर
=========
अभी ठहरो
अभी ठहरो
अभी हमने उठाए ही हैं
कुदालें, कोंचने , फावड़े
हमें तोड़ने हैं अभी कई अवरोध
ढहाने हैं मठ और क़िले
विस्फोटों से हिलाने हैं
पहाड़-सरीख़े वजूद
तुम्हारे पैरों-तले की धरती
अभी हमें खींचनी है
अभी ठहरो
चुप रह कर सुनो
तुम्हारे कानों में ये गरज हमारी नहीं है
ये तुम्हारे अपने दिल की
डर से धमकती धड़कन है
हमारी गरज
अभी हमारे कंठों में पक रही है
अब हम दर्द नहीं पैना रहे हैं
उनकी निशित धार
कब से हमारी आँखें चौंधिया रही है
अब हम उन्हें हाथों में उठा तौल रहे हैं
हवा में ये सनसनी
उनके भाँजे जाने की है
अभी ठहरो
लेकिन ये सोच कर नहीं
कि हम सागर में
मिट्टी के ढेलों से गल जाएँगे
बल्कि ये जान कर
कि हम सेतु-बंध की चट्टानें हैं
हम पर पाँव धर कर
आएगी आग और
तुम्हारी लंका को लील जाएगी
हम कँटीली बबूल डालों पर
उल्टा लटक
सदियों से साध चुके हैं कृच्छ
तपते सूए और दाग़ने वाला लोहा
अब हमें डराता नहीं
उकसाता है
अभी ठहरो
हमारी शुरुआत को
हमारा अंत मत समझो
अभी तो बस दोष-रेखाएँ उघड़ी हैं
भूचाल अभी आया नहीं है
बाँध की दरारों से
टपकती बूँदों से
भाँप सको तो भाँपों
धार का ध्वंसशाली वेग
4 comments
Pingback: Public Health Degree in Africa
Pingback: Library
Pingback: where to buy psilocybin denver
Pingback: click resources